
महू, जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है, हर साल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के भव्य आयोजनों का गवाह बनता है। लेकिन इस बार तैयारियों की तस्वीर कुछ अलग ही नजर आ रही है। न तो पहले जैसी सक्रियता दिखाई दे रही है, न ही कार्यक्रमों को लेकर प्रशासन में कोई विशेष हलचल है। जयंती में अब कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन ना टेंट लगे हैं, ना भोजनशाला बनी है, और ना ही विशेष विद्युत सज्जा के कोई संकेत हैं।
पिछली वर्षों की तुलना में इस बार की तैयारियां फीकी
पिछले वर्षों में अंबेडकर जयंती के आयोजन की तैयारियां एक सप्ताह पहले ही जोर पकड़ लेती थीं। जिला प्रशासन, स्थानीय प्रशासन और पुलिस विभाग के आला अधिकारी व्यवस्थाओं का निरीक्षण करते थे। बाहर से आने वाले अनुयायियों के लिए पानी, भोजन, टेंट, ठहराव और शौचालय जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं समय रहते पूरी कर ली जाती थीं। परंतु इस वर्ष अभी तक मैदान में केवल भट्टी के लिए गड्ढे खुदे हैं और कोई ठोस कार्य नजर नहीं आ रहा।
बजट पर भी सस्पेंस
इस वर्ष अब तक राज्य सरकार की ओर से आयोजन के लिए किसी बजट की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री द्वारा एक-दो दिन में इस विषय पर बैठक बुलाई जा सकती है, लेकिन तब तक सभी विभाग “जो पहले किया है वही करें” की नीति पर चलते दिखाई दे रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि न तो नई योजना है, न ही उत्साह से भरपूर माहौल।
कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार, पर तैयारी अधूरी
स्मारक समिति के सचिव राजेश वानखेड़े ने बताया कि इस बार की गौरव यात्रा 12 अप्रैल को निकाली जाएगी। 13 अप्रैल को “धम्म देशना” का आयोजन होगा, जिसमें मुंबई से डॉ. राहुल चौधरी, अखिल भारतीय भिक्षु संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शामिल होंगे। 14 अप्रैल को मुख्य कार्यक्रम होगा जिसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के शामिल होने की संभावना है। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आगमन की भी चर्चाएं जोरों पर हैं, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
इस बार आयोजन में क्या बदला?
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अब तक किसी विभाग ने खर्च का विस्तृत बजट नहीं बनाया।
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मैदान की तैयारी अधूरी, सिर्फ गड्ढे खुदे हैं।
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विद्युत सज्जा भी सीमित, स्मारक पर कोई विशेष रोशनी नहीं।
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कार्यक्रम की जानकारी है, लेकिन क्रियान्वयन में सुस्ती।
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स्थानीय प्रशासन पहले जैसी सक्रियता नहीं दिखा रहा।
डॉ. अंबेडकर की जयंती केवल एक धार्मिक या राजनैतिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों का उत्सव है। ऐसे में प्रशासन की धीमी गति और उत्साहहीनता न केवल चिंताजनक है, बल्कि श्रद्धालुओं की भावना के विपरीत भी। अगर जल्द ही सक्रियता नहीं बढ़ी, तो इस बार का आयोजन पहले जितना भव्य नहीं हो पाएगा।