महू: अंबेडकर जयंती की तैयारी पर उठे सवाल, बैठक में समाजसेवी नदारद, सिर्फ नेताओं की मौजूदगी


डॉ. अंबेडकर जयंती 2025 को लेकर महू में बुलाई गई बैठक में एक भी समाजसेवी नहीं पहुंचा। केवल नेता मौजूद रहे, लेकिन किसी ने भी आयोजन की जिम्मेदारी नहीं ली। आयोजन की योजना भी स्पष्ट नहीं की गई, जिससे अनुयायियों में असमंजस की स्थिति है।


अरूण सोलंकी
इन्दौर Published On :

देश की सामाजिक चेतना के प्रतीक डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती नजदीक है, लेकिन इस वर्ष के आयोजन की तैयारियों को लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक विवादों में घिर गई है। एसडीएम कार्यालय में बुलाई गई इस बैठक का उद्देश्य समाजसेवियों से सुझाव लेना था, लेकिन दुर्भाग्यवश बैठक में एक भी समाजसेवी नहीं पहुंचा। इसके उलट, बैठक में केवल राजनेताओं की मौजूदगी रही, जो भी प्रमुखतः सत्ताधारी पार्टी बीजेपी से जुड़े थे।

 

दिखावे की बैठक, नहीं मिला कोई ठोस दिशा

बैठक में एसडीएम राकेश परमार, एसपी रूपेश द्विवेदी, तहसीलदार विवेक सोनी, एसडीओपी दिलीप चौधरी, टीआई राहुल शर्मा सहित विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी मौजूद थे। हालांकि, जिस समाजसेवी सहभागिता की उम्मीद की जा रही थी, वो पूरी तरह नदारद रही। बैठक के दौरान नेताओं ने सिर्फ सुझाव देने की भूमिका निभाई, पर किसी ने भी कार्यक्रम की जिम्मेदारी लेने की हिम्मत नहीं दिखाई।

अंबेडकर स्मारक सोसायटी के पदाधिकारी बैठक से वॉकआउट

बैठक में तब असहज स्थिति बन गई जब अंबेडकर स्मारक सोसायटी के कार्यालय सचिव राजेश वानखेड़े अपने एक साथी के साथ बैठक बीच में ही छोड़कर चले गए। यह घटनाक्रम न केवल मौजूद लोगों को अखरा, बल्कि इससे यह भी संकेत मिला कि आयोजन की तैयारी में समन्वय की गंभीर कमी है।

 

आयोजन को लेकर कोई स्पष्ट योजना नहीं

बैठक का सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि आयोजन को लेकर न कोई ठोस जानकारी दी गई, न ही यह बताया गया कि कार्यक्रम में कौन मुख्य अतिथि होंगे या क्या गतिविधियां होंगी। इससे आम नागरिकों और अंबेडकर अनुयायियों में असमंजस की स्थिति है। विशेष रूप से यात्रा की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। इस बार यात्रा 12 अप्रैल को निकाले जाने की बात कही जा रही है, जबकि पारंपरिक रूप से यह 14 अप्रैल को होती आई है। पिछले कुछ वर्षों में यह क्रमशः 13 और 14 अप्रैल को आयोजित होती रही है, लेकिन 12 तारीख को अनुयायियों की कम उपस्थिति एक प्रमुख चिंता का विषय है।

पहली बार दिखा ऐसा माहौल

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह पहली बार है जब डॉ. अंबेडकर की जयंती को लेकर ऐसा असहज माहौल देखने को मिल रहा है। आमतौर पर समाजसेवियों की सक्रिय भागीदारी रहती थी, लेकिन इस बार सब कुछ नेताओं के निर्देशों और अधिकारियों की परंपरागत कार्यशैली पर छोड़ दिया गया है।

 


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