छात्रों की जान पर भारी 30 लाख का बॉन्ड, हाईकोर्ट ने कहा—दस्तावेज़ तुरंत लौटाओ


इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग से परेशान एक छात्र ने सीट छोड़ दी, लेकिन कॉलेज ने उसके दस्तावेज़ लौटाने के लिए 30 लाख रुपए की मांग की। छात्र की याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 18 नवंबर तक उसके दस्तावेज़ और एनओसी लौटाई जाएं। मामला गंभीर है क्योंकि इसी बॉन्ड शर्त के चलते कई छात्रों ने आत्महत्या की है।


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इंदौर के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएम) में पोस्टग्रेजुएट कोर्स कर रहे एक छात्र ने रैगिंग से तंग आकर अपनी सीट छोड़ने का फैसला लिया। जब छात्र ने कॉलेज प्रशासन से अपनी मूल शैक्षणिक दस्तावेज़ (मार्कशीट्स) वापस मांगी, तो उसे बताया गया कि एडमिशन के समय भरे गए बॉन्ड के अनुसार, सीट छोड़ने पर 30 लाख रुपए की राशि जमा करनी होगी। बिना इस राशि के भुगतान के, कॉलेज उसके दस्तावेज़ वापस नहीं करेगा। इस विवाद को लेकर मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा।

हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस एसए धर्माधिकारी की बेंच ने कॉलेज के डीन को निर्देश दिए हैं कि वे 18 नवंबर तक छात्र को उसकी मूल मार्कशीट्स लौटाएं और एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) भी जारी करें। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि कॉलेज इस कार्रवाई के बारे में कोर्ट को सूचित करे। यह मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि पीड़ित छात्र एक गरीब परिवार से आता है, और दस्तावेज़ न होने के कारण वह अपनी आगे की पढ़ाई जारी नहीं कर पा रहा है।

क्यों मजबूरन छात्र को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा?

इंदौर निवासी अभिषेक मसीह ने अपने वकील आदित्य सांघी के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बताया गया कि एमजीएम कॉलेज सहित मध्य प्रदेश के अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी छात्रों से 30 लाख रुपए का बॉन्ड भरवाया जाता है, जिसके कारण कई छात्र मानसिक दबाव में आत्महत्या कर चुके हैं। अब तक सात छात्रों ने इस अव्यवहारिक नियम के कारण अपनी जान दी है। वकील सांघी ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह स्थिति बेहद गंभीर है और इससे छात्रों की मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ रहा है।

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लोकसभा में भी उठा था मुद्दा

वकील ने बताया कि जनवरी 2024 में लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी, जहां बताया गया था कि मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में छात्रों से जबरन 30 लाख रुपए का बॉन्ड लिया जा रहा है। यदि छात्र किसी भी कारण से अपनी सीट छोड़ते हैं, तो उनके दस्तावेज़ और एनओसी तब तक नहीं लौटाए जाते जब तक यह राशि जमा न की जाए। इस कारण कई छात्रों ने आत्महत्या का प्रयास किया। लोकसभा में बहस के बाद नेशनल मेडिकल कमीशन को निर्देश दिए गए थे कि मध्य प्रदेश सरकार इस नीति को तुरंत रद्द करे, लेकिन इसके बावजूद इसे लागू रखा गया।

 

एमजीएम मेडिकल कॉलेज रैगिंग ने किया परेशान

वकील आदित्य सांघी का कहना है कि एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के कारण छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से टूट चुके हैं। पीड़ित छात्र एसटी कैटेगरी से है और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार से आता है। उसके पिता की आय इतनी नहीं है कि वे 30 लाख रुपए का भुगतान कर सकें। रैगिंग के दबाव के कारण छात्र अवसाद में चला गया और उसे आत्महत्या के विचार आने लगे।

आगे की पढ़ाई कैसे हो बिना दस्तावेज़ों के?

छात्र के वकील ने कोर्ट से अपील की कि जल्द से जल्द उसके मूल दस्तावेज़ उसे लौटाए जाएं ताकि वह अपनी पढ़ाई जारी रख सके। बिना मूल दस्तावेज़ों के छात्र कहीं भी नए सिरे से एडमिशन नहीं ले सकता, जिससे उसका भविष्य अधर में लटक गया है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत दस्तावेज़ और एनओसी जारी करने के निर्देश दिए हैं।

न्याय की उम्मीद

इस आदेश के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि छात्र को उसके दस्तावेज़ समय पर मिल जाएंगे और वह आगे की पढ़ाई जारी रख सकेगा। इस निर्णय से अन्य पीड़ित छात्रों के लिए भी न्याय की एक नई किरण दिखाई दे रही है, जो इसी तरह के दबाव का सामना कर रहे हैं।


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