खरगोन जिले की दुर्गम पहाड़ियों में पनप रहा दुर्लभ पीला पलास


माघ माह में ऋतुराज वसंत का जैस.जैसे आगमन होता है वैसे ही पलाश की शाखाओं पर पुष्प कलिकाएं गुच्छों के रूप में प्रकट होने लगते है। फाल्गुन में जहां सारे लोग भेदभाव मिटाकर रंगों से बसंत का त्यौहार होली मानते है, तो पलाश का यह वृक्ष भी फूलों की चादर ओढ़ प्रकृति को रंगीन कर होलिकोत्सव में शामिल हो जाता है।


kantilal-karma कांतिलाल कर्मा
खरगोन Published On :

खरगोन। जिले की सीमा में फैली सतपुड़ा की दुर्गम पहाडिय़ों में दुर्लभ व विलुप्त होते पीले पलास का अस्तित्व आज भी बरकरार है। वैसे तो केसरिया रंग का पलास पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है, लेकिन पीला पलास दुर्लभ हो गया है। औषधीय गुणों वाला पीला पलास पीपलझोपा रोड़ पर बन्हुर गांव की ढ़लान पर और भीकनगांव के काकरिया से गोरखपुर जाने वाली सड़क पर कमल नारवे के खेत की मेढ़ पर पनप रहे है, जो क्षेत्रवासी सहित राहगिरों का ध्यान बरबस ही अपनी ओंर खिंच रहा है।

माघ माह में ऋतुराज वसंत का जैस.जैसे आगमन होता है वैसे ही पलाश की शाखाओं पर पुष्प कलिकाएं गुच्छों के रूप में प्रकट होने लगते है। फाल्गुन में जहां सारे लोग भेदभाव मिटाकर रंगों से बसंत का त्यौहार होली मानते है, तो पलाश का यह वृक्ष भी फूलों की चादर ओढ़ प्रकृति को रंगीन कर होलिकोत्सव में शामिल हो जाता है।

पलास को टेसू, खाकरा, रक्तपुष्प, ब्रह्मकलश, कींशुक जैसे अनेकों नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटीका मोनास्पर्मा ल्यूटिका है। पलास को उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश का राजकीय पुष्प भी माना जाता है। पलास न सिर्फ देखने में सुंदर और आकर्षक है, बल्कि इसके सभी अंग मानव के लिए औषधीय रूप में काम आते है।

ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण औषधी
पहाड़ी अंचलों में प्रमुखता से पाए जाने वाला केसरिया रंग का पलास ग्रामीणों के जन जीवन में रचा बसा है। इसका उपयोग न सिर्फ रंग के रूप में काम में लिया जाता है, बल्कि स्वास्थ्य वर्धक गुणों के आधार पर कई बीमारियों में ग्रामीणजन अक्सर काम में लाते है। मोतियाबिंद या आंखों की समस्या होने पर काम में लिया जाता है।

पलास की ताजी जड़ों का अर्क निकालकर एक.एक बुंद आंखों में डालने से मोतियाबिंद व रतोंधी जैसी बीमारियों में कारगर साबित होता है। इसी तरह नाक से खुन बहने पर भी इसका उपयोग होता है। वहीं गलगंड या घेंघा रोग में भी इसकी जड़ को घीसकर कान के नीचे लेप करने से लाभ होता है। इनके अलावा भूख बढ़ाने मेंए पेट के दर्द और पेट के कीड़े निकालने में भी इसका उपयोग खासकर ग्रामीण अंचलों में किया जाता रहा है।



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