मरकर भी कई लोगों को जिंदगी दे गईं मनीषा राठौर, पति ने बिंदी लगाई, मांग भरी और विदा किया


इंदौर में एक दुःखद दुर्घटना के बाद ब्रेन डेड घोषित की गई मनीषा राठौर ने अपने अंगदान से चार लोगों को नई जिंदगी दी। उनके परिवार ने इस दुखद समय में भी दूसरों की मदद का फैसला किया। इस नेक कदम के माध्यम से, इंदौर में दो ग्रीन कॉरिडोर स्थापित किए गए, जिससे अंगों को समय पर ट्रांसप्लांट के लिए पहुँचाया जा सका।


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इन्दौर Updated On :

इंदौर शहर में एक दुर्घटना के बाद ब्रेन डेड हुई एक महिला ने अपनी मौत के बाद जीवन की नई उम्मीद जगाई। मनीषा राठौर, उम्र 44 वर्ष, जो शाजापुर की निवासी थीं, उनके द्वारा अंगदान करने की घटना ने न केवल उनके परिवार बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल कायम की।

 

भाई दूज के अवसर पर, मनीषा अपने पति भूपेंद्र राठौर के साथ इंदौर स्थित अपनी ननद के घर आई थीं। 3 नवंबर की शाम को, मक्सी रोड पर हुई दुर्घटना में मनीषा गंभीर रूप से घायल हो गईं। उन्हें तत्काल इंदौर के सीएचएल अस्पताल में भर्ती कराया गया। गंभीर चोटों के कारण 6 नवंबर को उन्हें ब्रेन डेड घोषित किया गया।

 

इस त्रासदी के बावजूद, भूपेंद्र ने अपनी पत्नी की आंखों और किडनीयों को दान करने का निर्णय लिया। उनकी यह कार्रवाई उस वक्त और भी दिल छू लेने वाली बन गई जब उन्होंने अस्पताल में ही मनीषा की माथे पर सिंदूर लगाकर उन्हें विदा किया। इस दौरान अस्पताल के स्टाफ और अन्य लोगों की आंखें भी नम हो गईं।

 

इस मामले को देखते हुए, इंदौर शहर में 58वां ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। यह कॉरिडोर शुक्रवार शाम को सीएचएल अस्पताल से अपोलो और एमिनेंट अस्पताल तक बनाया गया, जहां मनीषा की किडनियां क्रमश: 5 और 7 मिनट में पहुंचाई गईं और वहां ट्रांसप्लांट की गईं।

अंगदान से प्रेरणा

अंगदान के इस नेक काम को देखते हुए, शाजापुर और इंदौर के विभिन्न हिस्सों में लोगों ने अंगदान जागरूकता के पोस्टर लगाए और समुदाय से इस नेक काम में आगे आने की अपील की।

मनीषा के परिवार द्वारा उनकी अंतिम यात्रा को भी विशेष तौर पर सजाया गया, जहां अंगदान को प्रेरित करने वाले संदेश भी दिए गए। उल्लेखनीय है कि देश में अंगदान के प्रति जागरूकता बेहद कम है और ज्यादातर बार लोग इसके इंतजार में ही जान गंवा देते हैं।

भारत में अंगदान की स्थिति: कमी और चुनौतियाँ

भारत में अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता और उपलब्धता के बीच एक बड़ा अंतर है। देश में प्रतिवर्ष हजारों मरीज अंग प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त अंग दाताओं की कमी के कारण समय पर उपचार नहीं मिल पाता।

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अंगों की भारी कमी की स्थिति

  1.  किडनी ट्रांसप्लांट: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.8 लाख लोग किडनी फेलियर से ग्रसित होते हैं, लेकिन केवल 6000 किडनी प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं।
  2. लिवर ट्रांसप्लांट: हर साल लगभग 2 लाख लोग लिवर फेलियर या लिवर कैंसर से मरते हैं। इनमें से लगभग 10-15% को समय पर लिवर ट्रांसप्लांट से बचाया जा सकता है। भारत में प्रतिवर्ष 25-30 हजार लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 1500 ट्रांसप्लांट ही किए जाते हैं।
  3. हार्ट ट्रांसप्लांट: देश में प्रतिवर्ष 50,000 लोग हार्ट फेलियर से पीड़ित होते हैं, लेकिन इनमें से केवल 10-15 हार्ट ट्रांसप्लांट ही संभव हो पाते हैं।
  4. कॉर्निया ट्रांसप्लांट: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 25,000 कॉर्निया प्रत्यारोपण किए जाते हैं जबकि मांग 1 लाख की है।

 

अंगदान का कानूनी ढांचा

भारत में Transplantation of Human Organs Act (THOA) 1994 अंगों की चिकित्सा के उद्देश्य से हटाने, संरक्षित करने और प्रत्यारोपण करने की प्रणाली प्रदान करता है, साथ ही अवैध अंग व्यापार को रोकता है। यह कानून अब सभी राज्यों में लागू है, सिवाय आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के, जिनके अपने कानून हैं।

 

THOA के अंतर्गत अंगदान के स्रोत:

1. नजदीकी रिश्तेदार (माता-पिता, पुत्र, पुत्री, भाई, बहन, जीवनसाथी)

2. अन्य रिश्तेदार: ऐसे दाताओं को केवल विशेष कारणों से दान करने की अनुमति है और इसके लिए अधिकरण समिति की स्वीकृति आवश्यक है।

3. मृत्युपरांत दाता: जैसे कि ब्रेन स्टेम डेथ (सड़क दुर्घटना के पीड़ित), जहां मस्तिष्क का कार्य समाप्त हो गया है लेकिन हृदय और अन्य अंगों को वेंटिलेटर द्वारा जीवित रखा जा सकता है। इस स्थिति में, 37 अलग-अलग अंग और ऊतक दान किए जा सकते हैं।

 

ब्रेन स्टेम डेथ और अंगदान

भारत में ब्रेन स्टेम डेथ को कानूनी मृत्यु के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके बाद, हृदय, किडनी, लिवर और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंगों का दान किया जा सकता है। इसके विपरीत, प्राकृतिक कार्डियक डेथ के बाद केवल कुछ अंग/ऊतक जैसे कॉर्निया, त्वचा और रक्त वाहिकाएं दान की जा सकती हैं।

 

मृत्युपरांत अंगदान की कमी

भारत में, मृत्युपरांत अंगदान अब भी बहुत कम है, जबकि जीवित व्यक्तियों से अंगदान केवल आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकता। इसके कई कारण हैं:

  • जागरूकता की कमी: लोगों में मृत्युपरांत अंगदान के प्रति जागरूकता कम है।
  • जीवित दाताओं के लिए जोखिम: जीवित दानकर्ताओं को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम होते हैं और उचित देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • वाणिज्यिक लेन-देन का खतरा: जीवित दान में अवैध अंग व्यापार का खतरा बना रहता है, जो कानून का उल्लंघन है।

 

THOA संशोधन अधिनियम 2011 के अंतर्गत महत्वपूर्ण संशोधन

भारत सरकार ने THOA 1994 में संशोधन करके इसे और प्रभावी बनाने के लिए कई सुधार किए। Transplantation of Human Organs (Amendment) Act 2011 के तहत कुछ प्रमुख बदलाव किए गए हैं:

1. अधिक पारदर्शिता और निगरानी: अंगदान और प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने और अवैध व्यापार को रोकने के लिए अधिकरण समितियों का गठन।

2. मृत्युपरांत अंगदान को बढ़ावा: ब्रेन स्टेम डेथ के मामलों में अधिक जागरूकता फैलाने और मृत्युपरांत अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए कानून को सख्त बनाया गया।

3. कानूनी स्वीकृति प्रक्रिया को सरल बनाना: विशेष कारणों से गैर-रिश्तेदार दाताओं को दान की अनुमति देने की प्रक्रिया को तेज और सुगम बनाया गया।


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