इंदौर। छावनी परिषद महू का सौ साल पुराना धर्म अस्पताल जल्न्दी ही निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा। कुछ वर्ष पूर्व ही करोड़ों रूपये खर्च कर इसे नया बनाया गया था।
समाजसेवी संस्थाओं ने सर्वसुविधायुक्त उपकरण व मशीनें यहां के लिए दान दी थी। लेकिन इसके बावजूद लोग अस्पताल की ओर नहीं मुड़े। ऐसे में अब इसे निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली गई है।
छावनी परिषद का नया बना अस्पताल को निजी हाथों में सौप दिया जाएगा। इंदौर शहर के पांच चिकित्सीय संस्थान इसे लेने के लिए तैयार हैं। जिसमें सबसे बड़ा नाम गोकुलदास अस्पताल का सामने आया है। परिषद जल्दी ही टेंडर निकालने वाली है जिसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
कई ट्रस्ट इस अस्पताल का दौरा कर जायजा ले चुके हैं। ऐसे में यह अस्पताल निजी हाथों में चला गया तो नई चिकित्सका सुविधा तो महू वालों को मिलेगी लेकिन वह कितनी महंगी होगी, यह कहना मुश्किल है।
कभी पूरी तहसील में एक मात्र छावनी परिषद का धर्म अस्पताल के नाम से यह अस्पताल था। जिसमें सुबह से लेकर शाम तक रोगियों की लंबी कतारें लगा करती थीं।
हालांकि बाद में आधुनिक सुविधाओं व चिकित्सकों की कमी के साथ-साथ निजी अस्पतालों के खुलने के कारण यहां रोगियों की संख्या लगातार कम होती गई। इस स्थिति को देखते हुए तात्कालिक परिषद की सीईओ निगार फातिमा ने इसे नया बनाने की योजना बनाई थी।
वर्ष 2011 में करीब दो करोड़ रुपये की लागत से इसका भूमि पूजन कर निर्माण् कार्य शुरू किया गया। इसके निर्माण् में कई उतार चढ़ाव आए। दो बार नक्शा बदला गया राशि के लिए भी छावनी परिषद को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इस तरह ये अस्पताल सफेद हाथी साबित हुआ है।
परिषद के सीईओ किसी भी तरह अपने कार्यकाल में इस अस्पताल को पूरा करने के लिए प्रयास करते रहे और आखिरकार 25 मार्च 2020 में इसका शुभारंभ कर दिया गया। परिषद ने अपनी और से कई सुविधा उपलब्ध कराईं जबकि सामाजिक संस्थाओं ने आधुनिक व महंगे चिकित्सक उपकरण भेंट किए ताकि ज्यादा से ज्यादा नागरिकों को इसका लाभ मिल सके।
परिषद ने रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों ने नियुक्ति की तथा न्यूनतम शुल्क रखा ताकि इसकी व्यवस्था और संचालन हो सके। सुविधा, आकार तथा स्वच्छता की दृष्टि से देखा जाए तो छावनी परिषद का यह अस्पताल जिले के किसी भी निजी अस्पताल से कम नहीं है लेकिन इस अस्पताल के खर्च के आगे इसका उपयोग बेहद कमतर साबित हो रहा है।
यहां दिन में तीस से चालीस रोगी ही यहां आ रहे है जिनसे प्रति रोगी तीस रूपये शुल्क लिया जाता है जबकि बिजली बिल से लेकर कर्मचारियों, चिकित्सकों व स्टाफ को प्रति माह लाखों रुपये वेतन दिया जा रहा है। जो कि परिषद के लिए सबसे ज्यादा घाटे का सौदा है।
इस अस्पताल का संचालन करने में परिषद अब पूरी तरह अक्षम हो रही है जिसका मुख्य कारण यहां के जिम्मेदार है जो न तो आम नागरिकों में अस्पताल के प्रति विश्वास पैदा कर सके और ना ही रोगियों को यहां ला सकें।
कई बार ऐसा भी हुआ है कि रोगियों को चिकित्सकों के नहीं हाेने पर अन्य अस्पताल ले जाना पड़ा जबकि प्रभारी को परिषद ने पास ही निवास दे रखा है लेकिन वे भी समय-समय पर ही मौजूद रहते हैं। परिषद ने अस्पताल की असफलता का यही सबसे बड़ा कारण माना है।