रेलवे ने शुरू की इंदौर की हैरिटेज ट्रेन


गुरुवार, 5 अगस्त से शुरू होगी हैरिटेज ट्रेन, ऑनलाइन बुकिंग की व्यवस्था


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

महू(इंदौर)। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पश्चिम रेलवे के द्वारा शुरू की गई हैरिटेज ट्रेन पिछले करीब 15 महीनों से बंद है जिसे रेलवे बोर्ड के निर्णय के बाद अब एक बार फिर शुरू किया जा रहा है।

मानसून के दिनों में पातालपानी के झरने और कालाकुंड के जंगलों को देखने जाने वाले पर्यटकों के लिए गुरुवार से यह ट्रेन एक बार फिर उपलब्ध होगी। इस बार ट्रेन में पारदर्शी कोच भी लगाए जाएंगे जिनकी तैयारी पिछले करीब दो वर्षों से जा रही थी।

 

कोरोना के संक्रमण काल के दौरान पश्चिम रेलवे ने पिछले साल मार्च में अपनी इकलौती पर्यटन रेल को बंद कर दिया था और यह निर्णय लंबे समय तक लागू रहा। हालांकि अब हैरिटेज ट्रेन फिर शुरू की जा रही है।

पिछले दिनों ट्रेन शुरू करने से पहले इसका ट्रायल भी लिया गया। इस बार रेल किराए में बढ़ोत्तरी की खबरें भी आ रहीं हैं लेकिन फिलहाल यह तय नहीं है।

 

गुरुवार से महू से पातालपानी और कालाकुंड जाने के लिए हेरिटेज ट्रेन शुरू हो जाएगी।

इसकी टिकट लेने के लिए अब ऑनलाइन व्यवस्था ही रखी गई है। ऐसे में टिकिट खिड़की पर लगने वाली लंबी लंबी लाइनें शायद इस बार नजर ना आएं।

हैरिटेज ट्रेन में 272 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसमें पहले की तरह एक चेयर कोच होगा जिसमें चौबीस पर्यटक बैठ सकेंगे।

वहीं इस बार दो पारदर्शी कोच भी इस गाड़ी में जुड़ेंगे। जिनमें 120 लोग बैठ सकेंगे। इसके साथ ही ट्रेन में करीब 128 लोगों की क्षमता वाले दो जनरल कोच भी होंगे।

 

यह होगी टाइमिंग…

हैरिटेज ट्रेन सुबह सवा ग्यारह बजे महू से रवाना होगी और दोपहर 1.25 बजे कालाकुंड पहुंचेगी। इसके बाद यह ट्रेन वहां से 3.34 बजे कालाकुंड से रवाना होगी और 4.30 बजे महू पहुंचेगी।

हेरिटेज ट्रेन पश्चिम रेलवे का ड्रीम प्रोजेक्ट है। जिसे रेल मंत्री तक ने सराहा है। इस प्रोजेक्ट को तत्कालीन डीआरएम आरएन सुनकर ने शुरू किया था।

सुनकर को इसके लिए कई पुरुस्कार भी दिए गए। महू में चलने वाली यह ट्रेन पश्चिम रेलवे की इकलौती पर्यटन रेल है। यह रेल पातालपानी के सुंदर झरने के साथ कालाकुंड के पहाड़ों और जंगलों को भी दिखाती है। इसमें सवारी के लिए लोग बेहद उत्साहित रहते हैं।

हैरिटेज ट्रेन की टिकिट लेने के लिए महू रेलवे स्टेशन पर लंबी लाइनें लगती थीं और लोग रात को ही टिकिट खिड़की के सामने आकर बैठ जाते थे।

 

 

 

 


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