इंदौर। जिले में इन दिनों भूमाफिया के खिलाफ मुहिम चल रही है। इस बीच एक पुराने भूमाफिया बॉबी छाबड़ा का नाम भी चर्चाओं में है। छाबड़ा को पिछली सरकार कमलनाथ के कार्यकाल में पकड़ा गया था। जिसके बाद उसके मामले का अब खात्मा कर दिया गया है।
बिना पूरी जांच के खात्मा कैसे हुआ इसे लेकर दैनिक भास्कर अखबार ने लगातार सवाल उठाए थे जिसके बाद अब छाबड़ा एक बार फिर मुश्किल में हैं।
भूमाफिया बॉबी छाबड़ा और उसके साथी संजय रमानी को सहकारिता विभाग के कूट रचित दस्तावेज के मामले क्लीन चिट दिए जाने को इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह खासे नाराज़ है।
दरअसल, छाबड़ा और रमानी के खिलाफ 20 संस्थाओं में जमीन की धोखाधड़ी मामले में सहकारिता विभाग द्वारा क्लीन चिट दे दी गई थी। जिसके बाद भंवरकुआ पुलिस ने मामले में खात्मे की कार्यवाही कर दी। बताया जाता है कि अफसरों की मिलीभगत के चलते यह संभव हो सका।
पुलिस का इस मामले में कहना है कि सहकारिता विभाग द्वारा बनाई गई कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने कार्यवाही की है और इसमें उनका कोई दोष नहीं है।
भंवरकुआ थाना प्रभारी ने बताया कि यह प्रकरण 2019 में दर्ज हुआ था और उप अंकेक्षण अधिकारी ईश्वर चंद वर्मा ने प्रतिवेदन दिया था कि सहकारी संस्था संबंधित दस्तावेज संस्था के कार्यालय में नहीं है और बॉबी छाबड़ा के ऑफिस में उनको फोटोकॉपी मिली थी।
उसी आधार पर प्रारंभिक रूप से प्रकरण पंजीबद्ध किया था। लेकिन जब जांच की गई तो पता चला कि सहकारिता विभाग द्वारा एक कमेटी बनाई गई थी जिसमे जांच अधिकारी संजय कौशल थे।
इस कमेटी द्वारा जांच करने पर पाया कि जो फोटोकॉपी मिली थी वो कूट रचित दस्तावेज नहीं है और न ही किसी संस्था का रिकार्ड बॉबी छाबड़ा द्वारा तैयार किया गया था।
भंवर कुआ थाना प्रभारी संतोष दूधी ने बताया कि सहकारिता विभाग अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर ही पुलिस ने खात्मे की कार्रवाई की थी। एक ही प्रकरण में बॉबी छाबड़ा और संजय रमानी आरोपी थे।
फिलहाल, इस पूरे मामले को लेकर अब कभी सहकारिता विभाग के अफसरों पर गाज गिर सकती है। इसे लेकर कलेक्टर मनीष सिंह काफी नाराज बताए जाते हैं। संभव है कि कलेक्टर आने वाले दिनों में वे जांच में दोषी साबित होने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश करें।
उल्लेखनीय है कि बायपास स्थित 90 करोड़ रुपए कीमत की जिस जमीन पर भूमाफिया बॉबी छाबड़ा ने कब्जा किया था, इस संस्था का अध्यक्ष एक चाय वाले सन्नी जगदीश लश्करी को बना दिया था। संस्था में मनमर्जी से सदस्य बना दिए गए और हथियारों के दम पर चुनाव कराए।
शिकायत करने पर उपायुक्त स्तर के अफसर ने कहा कि बॉबी से बैठक कर लो। उसने प्लॉट देने से इनकार कर दिया और सहकारिता अफसरों ने सुनवाई नहीं की। यह सभी आरोप सेंट्रल गवर्नमेंट ऑफिसर हाउसिंग सोसायटी के सदस्यों ने लगाए थे।
पीड़ित किशोर ठोंबरे ने तत्कालीन डीआईजी रुचिवर्धन मिश्रा को बताया था कि संस्था 1979 में बनी थी। 1980 से इसमें सदस्य बनाना शुरू किए और 1995 तक करीब 200 सदस्य बनाए।
इसके बाद 11 साल तक किसी को भी प्लॉट अलॉट नहीं किए गए। वर्ष 2006 में अचानक बॉबी छाबड़ा सामने आया और अध्यक्ष घनश्याम परमार से संस्था की जमीन खरीद ली।
इसके बाद फिर दो साल के भीतर फर्जी तरीके से 305 सदस्य बना दिए गए। इसके बाद संस्था के पुराने सदस्यों को धमकाना शुरू किया।
इसके बाद सदस्यों का इंतजार और लंबा हो गया। ये लोग सालों तक बॉबी और घनश्याम परमार के चक्कर लगाते रहे। इस दौरान करीब 15 लोगों की तो मौत हो गई।
पुराने सदस्य बताते हैं कि बॉबी बाकी सदस्यों के मरने का इंतजार कर रहा था और जमीन की कीमत बढ़ती जा रही थी।
ठोंबरे के मुताबिक बॉबी सहकारिता नियमों की सारी बारीकियों की समझ है। अफसर उसके इशारे पर काम करते थे।
बॉबी कागजों पर कभी सामने नहीं आया, लेकिन परदे के पीछे हमेशा सक्रिय रहा।
सहकारिता और पुलिस से बॉबी छाबड़ा बेदाग कैसे निकल आया इसके बारे में भी संस्था के पुराने सदस्य किशोर ठोंबरे का अखबारों में दिया गया वह बयान याद किया जाना चाहिये जब उन्होंने आरोप लगाया था कि तत्कालीन उपायुक्त के पाटनकर ने तो बॉबी से उनके बंगले पर बैठक करवाई थी। बॉबी ने कहा कि मैंने परमार से दो करोड़ रुपए में जमीन खरीदी है।
तब सदस्यों ने आरोप लगाया था कि बॉबी से सहकारिता निरीक्षक मिले हुए थे। उन्होंने वर्ष 2016 में सहकारिता रजिस्ट्रार से केस जीत लिया था।
रजिस्ट्रार ने आदेश दिए कि वास्तविक और रुपए जमा कराने वाले सदस्यों को ही प्लॉट आवंटित किए जाएं। निरीक्षक जोशी इस आदेश के विरुद्ध ट्रिब्यूनल कोर्ट चला गया।