इंदौर। महू में पकड़े गए पचास करोड़ रुपयों के खाद्यान्न घोटाले में जांच जारी है लेकिन यह जांच कितनी लंबी चलेगी और कितने दोषी पकड़़े़ जाएंगे फिलहाल यह कहना मुश्किल है।
अधिकारियों के अनुसार खाद्यान्न घोटाला करीब बीस साल से जारी था जिसमें कम से कम पचास और अधिक से अधिक सौ करोड़ रुपयों तक के कीमत के अनाज और मिट्टी के तेल की हेराफेरी हुई है।
मामले में महू के व्यापारी मोहन अग्रवाल और उनके बेटों को ही आरोपी बनाकर बलि का बकरा बनाने की बातें भी की जा रहीं हैं।
पूरे प्रकरण में अचरज की बात ये रही कि जांच शुरु होने के करीब दो महीने बाद से अब तक इस मामले में केवल मोहन अग्रवाल, उनके बेटों और इनसे खाद्यान्न खरीदने वाले दो अन्य व्यापारियों के अलावा कोई अन्य सीधा आरोपी नहीं मिला है जबकि प्रशासन ही यह कह चुका है कि इतनी बड़ी अनियमितता बिना सरकारी कर्मचारियों की संलिप्तता के संभव नहीं है।
खबरों की मानें तो केवल मोहन अग्रवाल को ही अब तक इकलौता दोषी बताए जाने के पीछे कई राजनीतिक और व्यापारिक वजहें भी हो सकती हैं। ये व्यापारिक वजहें स्थानीय राजनीति से जुड़े कुछ लोगों के लाभ की बताई जाती हैं। जिनके बारे में कोई बोलने को भी तैयार नहीं है।
इस घोटाले के इन वर्षों के दौरान महू में पदस्थ रहे खाद्य विभाग के अधिकारी और इंदौर में रहे उनके वरिष्ठों में से कई तो नौकरी से रिटायर हो चुके हैं और जो नहीं हुए हैं वे अभी भी चैन से अपनी नौकरी कर रहे हैं।
इन तथ्यों को लेकर अब प्रशासन की जांच पर भी लोग सवाल कर रहे हैं। किसान संघ से जुड़े और पूर्व स्थानीय अध्यक्ष रहे मोहन लाल पांडे के मुताबिक
संभव है कि मोहन अग्रवाल ने यह किया हो लेकिन वे अकेले तो नहीं होंगे। उनके साथ कई और भी सरकारी कर्मचारी शामिल होंगे वे अधिकारी भी शामिल होंगे जिन्होंने इन अनियमितताओं को होते हुए देखा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की।
महू में पदस्थ रहे नागरिक आपूर्ती निगम के एक अधिकारी चंद्रशेखर गोयल का तो कलेक्टर मनीष सिंह तक ने मीडिया के सामने नाम तक कई बार लिया था।
इसके बावजूद गोयल पर काफी समय तक कोई ठोस जांच नहीं की गई और इसी दौरान वे तबादला करवाकर मंडला चले गए। हालांकि अब बताया जाता है कि हालही में उन्हें नोटिस दिया गया है।
कलेक्टर मनीष सिंह पहले ही कह चुके हैं कि राशन की दुकानों में जाने वाले खाद्यान्न में घालमेल करके ही मोहन अग्रवाल और उसके साथी अपना फायदा करते थे।
इन दुकानों की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी स्थानीय खाद्य अधिकारी की होती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि महू के खाद्य अधिकारियों ने पिछले दस या बीस साल से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है।
महू में पदस्थ खाद्य विभाग के अधिकारी जितेंद्र शिल्पी इस बड़े घोटाले की जांच के दौरान भी लगातार अपना काम कर रहे हैं जबकि ऐसे मामलों में अगर सुबूतों से छेड़छाड़ की जाए तो जांच प्रभावित भी हो सकती है।
जांच कर रहे अधिकारी बताते हैं कि सरकारी खाद्यान्न और मिट्टी के तेल के इस बड़े घोटाले की अब सूक्ष्म जांच की जा रही है। इसके लिए तहसील के सभी शासकीय कंट्रोल दुकानों का रिकार्ड खंगाला जा रहा है।
पुलिस इन दुकानों को मिले राशन के साथ खाद्य आपूर्ति निगम के रिकार्ड का मिलान कर रही है। इसके अलावा उपभोक्ताओं को दिए गए राशन की मात्रा की जांच भी की जा रही है।
जांच अधिकारियों के मुताबिक वे फिलहाल बीते एक साल के ही रिकार्ड देख रहे हैं और अगर इनमें कुछ संदिग्ध मिलता है तो वे आगे की कार्रवाई तेज गति व आसानी से हो सकेगी। इस घोटाले संदिग्ध माने जा रहे शासकीय अधिकारियों को जांच से दूर रखा गया है। एएसपी अतिम तोलानी दिन भर अपने कार्यालय में बैठकर इन दस्तावेजों की जांच कर रहे हैं।
एएसपी अमित तोलानी ने कहा कि
इस घोटाले की जांच सूक्ष्म व गोपनीय रूप से की जा रही है जिसमें काफी कुछ हाथ लग गया है। ऐसे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। प्रशासन ने सभी शासकीय कंट्रोल, आपूर्ति निगम के रिकार्ड सौंप दिए हैं। अगर सुबूत मिलते हैं तो पुलिस कड़ी कार्रवाई करेगी।