NCERT में शामिल हुई आदिवासी समाज की हलमा परंपरा; समाज को जोड़ने का नया रास्ता


हलमा परंपरा ने झाबुआ के 300 से अधिक गांवों में जल संरक्षण और पर्यावरण सुधार के प्रयासों को नई दिशा दी है, जिससे गांवों की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।


डॉ. संतोष पाटीदार डॉ. संतोष पाटीदार
इन्दौर Updated On :

आज का समाज अकेलेपन, दरकती सामाजिक संवेदनाओं और टूटते रिश्तों की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। यह समस्या सिर्फ भारत की नहीं बल्कि वैश्विक (global) स्तर पर भी है। कोई किसी की मदद के लिए तैयार नहीं, चाहे सरकार हो या समाज। आधुनिक विकास (modern development) के चलते मानवीय संवेदनाएं कमजोर हो रही हैं और रिश्ते टूट रहे हैं।

 

भारत के ग्रामीण आदिवासी समुदाय की एक अनूठी परंपरा “हलमा” (Halma), आज की इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। हलमा की सामाजिक सहयोग की यह परंपरा अब एनसीईआरटी (NCERT) के माध्यमिक पाठ्यक्रम में शामिल की गई है। कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में हलमा पर एक अध्याय जोड़ा गया है।

प्रसिद्ध कन्नड़ पत्रिका ‘आदिके पत्रिके’ ने अक्टूबर 2024 के संस्करण में हलमा को कवर स्टोरी बनाया है। इस परंपरा के महत्व को समझाते हुए दिव्या अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के ट्राइबल स्टडी सेंटर के प्रभारी प्रो. सखाराम मुजाल्दे इसे सामूहिक श्रमदान की अद्भुत परंपरा बताते हैं।

हलमा परंपरा के तहत सामूहिक श्रमदान

कहानी झाबुआ की और परंपरा हलमा की

प्रो. मुजाल्दे कहते हैं, जब झाबुआ में गंभीर जल संकट उत्पन्न हुआ, तो 20 लाख से अधिक लोगों के लिए पानी की कमी एक जीवन-मृत्यु का सवाल बन गई। तब कुछ जागरूक समाजसेवियों और युवाओं ने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए हलमा की परंपरा अपनाई।

 

हलमा एक परंपरा है, जिसमें लोग सामूहिक श्रमदान (collective labor) से किसी व्यक्ति या गांव की समस्या का समाधान करते हैं। यह विचार था कि अगर हलमा किसी व्यक्ति की मदद कर सकती है, तो यह गांवों के लिए क्यों नहीं? इस परंपरा को आधुनिक तकनीक (modern technology) के साथ मिलाकर जन-जन तक पहुंचाया गया, जिससे गांवों की स्थिति में सुधार हुआ।

 

जल संवर्धन बना जल अभियान

हलमा परंपरा ने झाबुआ के 300 से अधिक गांवों में जल संरक्षण (water conservation) के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। इस परंपरा के तहत तालाब, स्टॉप डेम, हेंडपंप रिचार्ज जैसी जल संरचनाओं का निर्माण हुआ। यह अभियान न केवल जल संरक्षण तक सीमित रहा, बल्कि वन संवर्धन, जैविक कृषि, सामाजिक उद्यमिता और स्वच्छ गांव-स्वस्थ परिवार जैसे आयामों को भी समाहित करता गया।

 

हलमा परंपरा आज देश-दुनिया के लिए एक सशक्त समाधान बनकर उभर रही है। हजारों आदिवासियों ने सामूहिक श्रमदान से बंजर गांवों में हरियाली की जाजम बिछा दी है और जल संरक्षण में उत्कृष्ट परिणाम हासिल किए हैं।

 



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