सेना और रहवासियों के बीच जमीन का विवाद: कोर्ट से राहत के बाद भी अफसरों ने लोगों के घरों में खोल दिए सरकारी दफ़्तर!


मंगलवार को न्यायालय ने रक्षा संपदा विभाग की ज़मीन पर बने बंगलों को खाली करने के लिए उनमें रह रहे लोगों के आदेश दे दिये थे और एक तरह से यह फैसला सेना के पक्ष में था।


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

इंदौर। महू छावनी में रक्षा संपदा विभाग द्वारा बुधवार सुबह जोर शोर से शुरु की गई कार्रवाई दोपहर तक चली। इसके बाद रहवासी कोर्ट से 3 जनवरी तक यथास्थिति कायम रखने का नोटिस लाने में कामयाब रहे लेकिन तब तक मौके की कुछ हद तक स्थिति पलट चुकी थी और सुबह तक जिस बंगले में लोग अपने परिवारों के साथ रह रहे थे दोपहर को वहां छावनी परिषद और रक्षा संपदा विभाग ने कुछ ही घंटों में अपने कर्मचारियों बैठाकर अपना औपचारिक कार्यालय लगा दिया। फिलहाल रहवासी और सरकारी अधिकारी दोनों ही इसी परिसर में जमे हुए हैं और रहवासियों के वकील के मुताबिक यह कब्जा गैरकानूनी है।

मंगलवार शाम को न्यायालय ने रक्षा संपदा विभाग की ज़मीन पर बने बंगला नंबर 69 को खाली करने के लिए आदेश दे दिए। यह बंगला अरुणा रोड्रिग्स और उनकी बहन का है। जिन्हें यह उनके पिता से मिला है। बताया जाता है कि रोड्रिग्स परिवार यहां तकरीबन सौ वर्षों से निवासरत है। यह परिवार दावा करता रहा है कि उनका यह बंगला सैन्य जमीन पर नहीं है। हालांकि स्थानीय कोर्ट ने उनका यह दावा नहीं माना।

बताया जाता है कि मंगलवार को कोर्ट की वेबसाइट पर आदेश अपलोड भी नहीं हुआ था कि अगली सुबह साढ़े सात बजे रक्षा संपदा विभाग की गाड़ियां सैन्य दल के साथ मौके पर पहुंच गई और अधिकारी लोगों को इलाका खाली करने के लिए कहने लगे। इस कार्रवाई में छावनी परिषद की भी भूमिका रही।

हालांकि लोग उम्मीद जता रहे थे कि उन्हें घर खाली करने के लिए मानवीय पक्ष के आधार पर कुछ समय दिया जाएगा लेकिन रक्षा संपदा विभाग और छावनी परिषद के अधिकारियों ने इस अपील को नहीं माना और शाम पांच बजे तक अपने आवास खाली करने के लिए लोगों को चेतावनी दी।

 

इस दौरान सेना के जवानों को लगाकर लोगों में डर भी बनाया गया कि अगर वे शाम तक क्षेत्र खाली नहीं करेंगे तो तोड़-फोड़ की कार्रवाई भी हो सकती है जिसमें लोगों का नुकसान होगा।

लोगों को समय शाम पांच बजे का दिया जा रहा था लेकिन खाली करने के लिए दबाव लगातार बनाया जा रहा था। रहवासियों का आरोप है कि रक्षा संपदा के अधिकारी ने आसपास रहने वाले उन लोगों पर भी दबाव बनाया जो इस मामले में शामिल नहीं थे।

बुधवार सुबह सैन्य प्रशासन ने भाई जी मार्ग पर सैनिकों को खड़ा करके रास्ते रोक दिए

इसके बाद लोगों ने अपने मकानों से सामान निकालना शुरु कर दिया था। अधिकारी सपन कुमार ने इन्हें खाली करने के लिए कुछ ही घंटे दिये थे।

हालांकि दोपहर तक रहवासियों ने कोर्ट जाकर कार्रवाई को रोकने की कोशिश की। इसका असर भी हुआ और द्वितीय जिला सत्र न्यायालय के जज राघवेंद्र सिंह ने मामले में स्थगन आदेश जारी कर दिये। यहां रह वासियों की ओर से बताया गया कि रक्षा संपदा और छावनी परिषद के अधिकारियों ने जबरन उनके घर में अपने दफ्तर खोल लिए हैं।

इसके बाद कोर्ट ने वकील स्वदेश दत्त पांडे को कमिश्नर नियुक्त किया और मौके पर जाकर वस्तुस्थिति देखने और रिपोर्ट देने के लिए कहा। पांडे की रिपोर्ट के मुताबिक बरामदे में जहां छावनी परिषद और रक्षा संपदा के अधिकारियों ने टेबल कुर्सी डालकर अपना काम शुरू कर दिया था तो वहीं अंदर कमरों में लोगों का सामान था।

रहवासियों के आरोप!

रहवासियों की ओर से रवि आर्य और रवीन्द्र माहेश्वरी ने इस मामले की पैरवी की है। एडवोकेट रवि आर्य ने बताया कि रक्षा संपदा विभाग का यह कब्जा पूरी तरह गैरकानूनी है क्योंकि कोर्ट ने वस्तुस्थिति बनाए रखने के लिए कहा है और इसके मुताबिक रहवासी वहां अब भी निवासरत हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि रक्षा संपदा के अधिकारियों ने लोगों को गैर ज़रूरी तौर पर धमकाया और उन्हें मानसिक रूप से परेशान किया।

कार्यालय शुरू और कचरा गाडियां पार्क की…

दोपहर साढ़े तीन बजे तक यहां रक्षा संपदा विभाग और छावनी परिषद ने अपने कार्यालय शुरू कर दिए। यहां कंप्यूटर लगाकर कर काम शुरू कर दिया गया। बंगले के बाहर छावनी परिषद के कचरा वाहन और दूसरी गाड़ियां खड़ी कर दी गई।

एडवोकेट आर्य ने बताया कि मौके पर रक्षा संपदा विभाग और छावनी परिषद के गैर कानूनी कब्जे की यह रिपोर्ट कोर्ट को दी गई है।

रक्षा संपदा का पक्ष.

रक्षा संपदा अधिकारी सपन कुमार ने कहा कि यह मामला 1995 से जारी है और रहवासियों का दावा था कि यह जमीन रक्षा संपदा विभाग की नहीं है जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

रहवासियों के आरोपों पर रक्षा संपदा अधिकारी सपन कुमार ने बताया कि उनकी कार्यवाही पूरी तरह कानूनी है और अगर कार्रवाई गलत तरीके से की गई होती तो कोर्ट इसे खारिज कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि 3 जनवरी तक कोर्ट ने स्टे आर्डर दिया है इसके बाद फिर अगला कदम उठाया जाएगा।

इन रहवासियों को यहां से हटने के लिए केवल कुछ घंटों का ही समय दिया गया। इस बारे में सपन कुमार का दावा था कि कोर्ट ने तुरंत ही यह जमीन खाली करने के निर्देश दिए हैं ऐसे में किसी भी तरह से लोगों को समय नहीं दिया जा सकता।

अधिकारी ने दावा किया कि यह जमीन रक्षा संपदा विभाग की है और पूर्व अधिकारियों को रहने के लिए दी गई थी जिसके बाद से इसे नियम विरुद्ध तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा था उन्होंने बताया कि उक्त जमीन का व्यवसायिक इस्तेमाल भी हो रहा था जो रक्षा संपदा विभाग के नियमों के खिलाफ है।

यह भी एक तथ्य है कि महू में सैन्य अधिकार की जमीनों पर बड़े पैमाने पर कब्जा किया गया है। बंगले और बगीचों के रूप में यह जमीनें पूर्व सैन्य अधिकारियों को दी गई थी लेकिन इन अधिकारियों के परिजन उनके बाद भी यहां बनी रहे और इन जमीनों की गैर कानूनी बिक्री और इस्तेमाल करते रहे।

पहले भी हुई है ऐसी कार्रवाई…

कुछ वर्षों पहले सेना के एक बड़े अधिकारी के निवास से लगी हुई है जमीन पर भी इसी तरह की कार्रवाई की गई थी। आजकल वह जमीन एक बगीची के रूप में इस्तेमाल की जा रही है जो सैन्य प्रशासन के अधीन है।

 



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