इंदौर। खंडवा में बैंक कर्मचारी अधिकारी संगठनों ने केंद्र द्वारा बैंकों के निजीकरण के विरोध में शनिवार को धरना प्रदर्शन किया।
नगरपालिक निगम के सामने गांधी प्रतिमा के समक्ष यह धरना दिया गया। निजीकरण की योजना को आम लोगों के हित के विपरीत बताया। कर्मचारियों ने कहा यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे मार्च में संसद का घेराव करेंगे।
पिछले छह दिनों से कर्मचारी रोजाना शाम के समय अलग-अलग जगहों पर जाकर कैंडल मार्च निकाल रहे हैं। शनिवार को उन्होंने तीन घंटे धरना दिया। इस दौरान 100 से अधिक कर्मचारियों ने विरोध में नारेबाज़ी किए।
एमपीबीए खंडवा के उपाध्यक्ष प्रमोद चतुर्वेदी ने कहा वित्त मंत्री ने बजट भाषण के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी।
जिसके विरोध में यूनाइटेड फोरम ऑफ यूनियंस के बैनर तले पूरे देश में नौ यूनियन एआइआइबीए, एआइबीओसी, एनसीबीई, एआइबीओए, बीईएफआइ, आइएनबीईएफ, आइएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ के लगभग दस लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी मिलकर सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
मांगे नहीं माने जाने पर दस मार्च को बजट सत्र के दौरान संसद के समक्ष धरना प्रदर्शन करेंगे। इसके बाद 15-16 मार्च को कर्मचारी और अधिकारी दो दिन की हड़ताल करेंगे।
हम मांग करते हैं कि सरकार अपने फैसले पर फिर से विचार करें। चतुर्वेदी ने कहा सरकारी बैंकों के सामने एकमात्र समस्या खराब ऋणों की है जो अधिकांश कॉरपोरेट और अमीर उद्योगपतियों द्वारा लिए जाते हैं। सरकार उन पर कार्रवाई करने के बजाय, बैंकों का निजीकरण करना चाहती है।
उन्होंने बताया निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थिति भी ठीक नहीं है। हाल ही में एक बैंक मुसीबत में थी। जिससे ग्राहकों को भी परेशानी हुई। वहीं एक अन्य बैंक का अधिग्रहण एक विदेशी बैंक ने किया है।
निजी बैंकों में सिर्फ अनुबंध पर नौकरियां
एआइबीईए से अरुण त्रिपाठी ने कहा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने युवा बेरोजगारों को स्थायी नौकरियां दी हैं, जबकि निजी बैंकों में केवल अनुबंध की नौकरियां हैं।
एआइबीओ से संतोष शर्मा कहा हमने प्राइवेट बैंकों में समस्याओं को देखा है। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता है कि निजी क्षेत्र की बैंकिंग बहुत कुशल है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आम लोगों, गरीब लोगों, कृषि, छोटे स्तर के क्षेत्रों को ऋण देते हैं।