मैं आदिवासी डॉ. सखाराम… यहां आकर बहुत गौरवान्वित हूं। मैंने परिश्रम संघर्ष से इस युवावस्था में जो पा लिया वह मेरे लिए पर्याप्त है, वजह मेरे शोषित, उपेक्षित, गरीब अनपढ़ बनाए रखे गए आदिवासी समाज की तुलना में, मैं बहुत समृद्ध जीवन जी रहा हूं!
आदिवासी समुदाय को तथाकथित आधुनिक विकास ने बेरहमी से लूटा है। अंग्रेजी हुकूमत ने जनजातीय समुदाय की ताकत को कुचलने के लिए जंगल कानून का जंगल राज चलाया। आजादी बाद 1960 के दशक से सरकारों की बड़े बांध निर्माण की नीति, सबसे ज्यादा आदिवासियों के विस्थापन, उनके घर, जंगल, जमीन, संस्कृति और संपदा के विनाश का कारण बनी जो आज भी जारी है।
भूमि सुधार के कानून और सरकार के वन संरक्षण कानूनों ने आदिवासी समाज के जंगल, जमीन, आवास, देवी-देवता पूरी तरह हथिया लिए। अंग्रेजों के राज से लेकर लोकतांत्रिक काल खंड मे जंगलों के संरक्षक आदिवासियों को पहले जंगल काटने वाला निरूपित किया गया, फिर जनजातीय समुदाय को खत्म करने वाले कानून थोपे गए।
अभी तक स्कूल-कॉलेज की किताबों में वनवासी को समाज में एक अत्यंत गरीब, अनपढ़, अपराधी, लुटेरा व हाड़ तोड़ परिश्रम करने वाला अधिकार विहीन मजदूर बताया गया है। मानव शास्त्र, समाज शास्त्र, इतिहास आदि की किताबों के लेखक आदिवासी नहीं हैं।
इस तरह के लेखकों ने आदिवासी समाज को विकृत रूप से पेश किया। बीते करीब डेढ़ सौ वर्षों पहले शुरू हुई वनवासियों को कमजोर करने वाली हुक्मरानों की अभी तक चली आ रही नीतियों के कारण प्रकृति आधारित स्वावलंबी जीवन जीने वाले जंगल पूजक आदिवासी समाज का खात्मा ही नहीं किया गया बल्किन उनके तीज-त्यौहार और यहां तक कि भगोरिया जैसे उसके शालीन जातीय पर्व को फूहड़ परिणय पर्व की तरह प्रचारित कर बदनाम कर दिया। इसे दुनिया भर में टूरिज्म का तमाशा बना दिया है!
अब पहली बार नई रोशनी नजर आ रही है। अब शुरुआत हुई है आदिवासियों के त्याग-बलिदान, स्वाभिमान, राष्ट्र रक्षक की वीर गाथाओं की रचना की, संस्कृति सभ्यता के संरक्षक इस समुदाय की गौरव गाथा को नए सिरे से लिखने की।
इस समय यह बताने की जरूरत है कि पर्यावरण/प्रकृति के असल विशेषज्ञ, प्रकृति पूजक आदिवासी ही हैं क्योंकि आज के संकटग्रस्त पर्यावरण से मुसीबत में आ गई दुनिया को बचाने का काम करने में आज भी आदिवासी समाज पूरी तरह सक्षम है।
वनवासियों की जीवनशैली ओर पीढ़ियों के उसके गहन परंपरागत प्रकृति विज्ञान को अपनाने से दुनिया क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण आदि संकटों से निजात पा सकती है।
पूरी बेबाकी और निष्पक्ष भाव से यह विचार राष्ट्रपति के समक्ष इंदौर के आदिवासी अर्थशास्त्री डॉ. सखाराम ने रखे। बीते दिनों राष्ट्रपति भवन में नवयुवक डॉ. सखाराम मुजालदे की मुलाकात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से हुई।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि डॉ. मुजालदे द्वारा अंग्रेज युगीन आलीशान और भव्य देश के राष्ट्रपति भवन में मौजूद राष्ट्रपति और देश के शीर्ष विद्वानों की सभा में यह सच बताया गया।
इस विस्मयकारी अचंभित करने वाले भवन के राजसी प्रोटोकॉल, वैभव और सर्वोच्च वर्गीय डेकोरम एवं सख्त सुरक्षा पाबंदियों के आगे ठेठ मालवा निमाड़ के एक आदिम गांव का एक आदिवासी तो दूर, संभ्रांत व्यक्ति भी इस भवन में प्रवेश करने में सकपका जाए।
इस पर अंग्रेजी राज के मैकाले शिक्षा तंत्र को ढोते देश के शीर्षस्थ सूट-बूट टाई पहने सवा सौ कुलपतियों और शिक्षाविदों के बीच और वह भी राष्ट्रपति द्रौपति मुर्मू के समक्ष निमाड़ के एक युवा निडर, आदिवासी का पूरी तरह जंगल के आदिवासी भील समाज की भीली वेशभूषा में पहुंचकर, बेबाकी से देश के आदिवासियों के जीवन विकास के अतीत, वर्तमान और भविष्य का खांका खीच देना, साहसपूर्ण बात है।
यह शख्स कोई और नहीं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, सामाजिक संघटक, जनजाति युवाओं के मददगार, सामाजिक नेतृत्वकर्ता, राजनितिक मामलों के जानकर और आदिवासियों के जल, जमीन, जंगल पर अधिकार के विशुद्ध पैरोकार, सीधे सच्चे ईमानदार संघर्षशील डॉ. सखाराम मुजालदे हैं।
इतने अलंकरण इसलिए कि आपने अल्पकाल में ही अपने वेतन से बचत की राशि से 250 से ज्यादा युवाओं को आर्थिक मदद कर पढ़ाया ही नहीं शासकीय नौकरी में सम्मानजनक पदों तक पहुंचाया। गरीब आदिवासियो के इलाज का मसला हो या अन्य समस्याएं सखाराम भाई की गुप्त समाजसेवा चलती रहती है।
राष्ट्रपति भवन में देश के 125 कुलपतियों को जनजातीय समाज के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर चर्चा के लिए बुलाया गया था।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाती आयोग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में जनजातियों के बलिदान पर आयोग के अध्यक्ष प्रसिद्ध समाजसेवी हर्ष चौहान के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के कुलपति, प्राध्यापक आदि ने प्रतिनिधित्व किया।
इस ऐतिहासिक कार्यशाला को राष्ट्रपति महोदय द्रौपदी मुर्मू ने संबोधित किया। इस कार्यशाला में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर (मप्र) के कुलपति प्रो. रेणू जैन एवं प्राध्यापक डॉ. सखाराम मुजालदे, डॉ. हितेश निनामा, डॉ. कमलेश चौहान, डॉ. विनोद ठाकुर, डॉ. मोहनसिह बामनिया, डॉ. नितिन उईके, डॉ. चैताली उईके, डॉ. सीमा चौहान एवं डॉ. प्रतिभा उमाले भी शामिल हुए।
राष्ट्रपति के समक्ष अपनी बात रखने के लिए सिर्फ प्रो. मुजालदे को अधिकृत किया गया था। इस अवसर पर वनवासी कल्याण आश्रम के वैभव सुरंगे, तिलकराज दांगी, डॉ. अनुराग पनवेल आदि भी थे।