इंदौर। कोरोना का हॉट स्पॉट बन चुके इंदौर शहर के सबसे बड़े दवा बाजार में कोरोना के इलाज में कारगर बताई जा रही रेमडिसिवर इंजेक्शन को लेकर भीड़ लगी हुई है। दवा बाजार में लगी इस भीड़ ने ये अहसास करा दिया है कि कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर के मुकाबले कितनी खतरनाक है।
इसके कारण ही शहर के आरएनटी मार्ग छावनी स्थित दवा बाजार में हालात के बेकाबू होने के बाद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को यहां बैरिकेडिंग करनी पड़ी।
इसके कारण यहां लगभग चक्काजाम की स्थिति पैदा हो गई, जिसे कंट्रोल करने में पुलिस के पसीने छूटने लगे। इस दौरान लोगों ने न अपना आक्रोश दवा बाजार प्रबंधन पर जताया बल्कि पुलिस से भी लोगों की तगड़ी कहासुनी हो गई।
दरअसल, जिनके परिजन अदृश्य वायरस के कारण जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं वो लोग डॉक्टर्स के कहने पर जिंदगी बचाने वाले व आसानी से मिलने वाले रेमडिसिवर इंजेक्शन के लिए तड़प रहे हैं।
जो इंजेक्शन आसानी से अस्पतालों में उपलब्ध हो जाना चाहिए था, उसके लिए लोगों को अपनी जान दांव पर क्यों लगानी पड़ रही है। ये अब भी बड़ा सवाल है क्योंकि जनता के सहयोग के लिए सरकार और प्रशासन दोनों ही अपने-अपने दावे कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर है।
पीड़ितों के परिजनों के मुताबिक, जब सरकार के नेता और प्रशासन के किसी अधिकारी को वाहवाही लूटनी होती है तो वो आगे आते हैं लेकिन वास्तविक हालात खराब होते हैं तो उनके पास किसी के लिये कोई समय नहीं है।
दवा और ऑक्सीजन दोनों की ही कमी है जो जल्द पूरी होते नहीं दिख रही है। ऐसे में परेशान लोग मुख्यमंत्री को कोस भी रहे हैं। सुनिये इंदौर की एक महिला मुख्यमंत्री से किस कदर नाराज़ हैं।
हालांकि, देशगांव महिला द्वारा इस्तेमाल की गई ऐसी भाषा का समर्थन नहीं करता, लेकिन हालातों को समझने के लिए चीजों को उनके खुले परिदृश्य में आना जरूरी है।
कई परिजनों ने बताया कि मरीज अस्पताल में भर्ती है और हर रोज 50 हजार रुपये का बिल बन रहा है। इसके बाद डॉक्टर हमसे कह रहे हैं कि इंजेक्शन लाओ। ऐसे में हम क्या करें। सुबह 5 बजे से लाइन में लगे हैं और ड्रग हाउस द्वारा फालतू में कूपन बांटकर झूठा दिलासा दिया गया है। ऐसे में हम क्या करें और क्या न करें। कुछ समझ नहीं आ रहा है। दवा बेचने वालों ने सुबह का वादा किया था, लेकिन अब हम बीमार हो जाएंगे तो हमारे परिजनों को कौन देखेगा।
इधर, जाम जैसी स्थिति के बाद दवा बाजार और प्रशासन की पैरवी करने आई विशाखा नामक महिला अधिकारी ने इंजेक्शन की आपूर्ति का आश्वासन भर दिया और बात अगले दिन पर टाल दी जिस पर भी सवाल उठना लाजिमी है।
कई परिजनों का सवाल ये भी है कि इंदौर से सटे पीथमपुर में सिप्ला और मायलान जैसे बड़े प्लांट बड़े पैमाने पर रेमडिसिवर इंजेक्शन का उत्पादन करते हैं तो फिर क्यों प्रदेश की आर्थिक राजधानी को गुजरात और महाराष्ट्र का मुंह देखना पड़ रहा है।