40 साल बाद 3 जनवरी को नष्ट होगा यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा, पीथमपुर में चिंता


साल 2008 में, इसी तरह 10 टन कचरा पीथमपुर में दफनाया गया था, जिसके कारण स्थानीय नदी और भूजल प्रदूषित हो गए। ग्रामीणों का कहना है कि उस घटना के बाद से खेती और पशुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसी अनुभव के आधार पर स्थानीय लोग वर्तमान योजना का विरोध कर रहे हैं।


आशीष यादव
इन्दौर Published On :

भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद, यूनियन कार्बाइड कारखाने का 337 टन जहरीला कचरा इंदौर के पास पीथमपुर की एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किया जाएगा। इस कचरे को 12 कंटेनरों में भरकर 3 जनवरी तक पीथमपुर पहुंचाने की योजना है। इस प्रक्रिया में भोपाल से पीथमपुर तक 250 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया जा रहा है, ताकि कचरा सुरक्षित और शीघ्रता से अपने गंतव्य तक पहुंचे।

 

कचरे का लोडिंग और ट्रांसपोर्टेशन: 400 कर्मचारी जुटे कार्य में

कचरे को लोड करने की प्रक्रिया भोपाल में कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हो चुकी है। 400 से अधिक कर्मचारी और विशेषज्ञ इस प्रक्रिया में शामिल हैं। कचरे को वैज्ञानिक तरीके से 12 कंटेनरों में भरकर सुरक्षित ट्रांसपोर्ट किया जा रहा है। हर कंटेनर का यूनिक नंबर होगा, और ग्रीन कॉरिडोर के जरिए इसे पीथमपुर भेजा जाएगा।

 

स्थानीय विरोध: ‘मौत का कचरा’ जलाने से खतरा

पीथमपुर में जहरीले कचरे को जलाने की योजना को लेकर स्थानीय लोग आक्रोशित हैं। उन्होंने रैलियां और धरने आयोजित कर अपना विरोध दर्ज कराया। पीथमपुर बचाओ समिति और अन्य संगठनों का कहना है कि इस जहरीले कचरे को देश के सूनसान क्षेत्रों में नष्ट किया जाना चाहिए। स्थानीय लोग इसे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं।

 

कचरे को जलाने की प्रक्रिया: हर घंटे 90 किलो कचरा

रामकी एनवायरो कंपनी की अपशिष्ट निपटान इकाई में इस कचरे को वैज्ञानिक विधियों से नष्ट किया जाएगा। हर घंटे 90 किलो कचरा जलाने की योजना है, जिससे कचरे के निपटान में 150 से अधिक दिन लगेंगे। शुरुआत में, कचरे का एक छोटा हिस्सा जलाकर उसका असर देखा जाएगा। इसके अवशेषों की वैज्ञानिक जांच भी की जाएगी।

 

न्यायालय का निर्देश और सरकार की जिम्मेदारी

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को 4 हफ्तों के भीतर नष्ट करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने कोर्ट में शपथ पत्र देने के लिए 3 जनवरी की समय सीमा तय की है। गैस राहत और पुनर्वास विभाग ने इस प्रक्रिया को तय गाइडलाइंस के तहत संचालित करने का दावा किया है।

 

पूर्व में कचरे के दुष्प्रभाव

साल 2008 में, इसी तरह 10 टन कचरा पीथमपुर में दफनाया गया था, जिसके कारण स्थानीय नदी और भूजल प्रदूषित हो गए। ग्रामीणों का कहना है कि उस घटना के बाद से खेती और पशुओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इसी अनुभव के आधार पर स्थानीय लोग वर्तमान योजना का विरोध कर रहे हैं।

 

सुरक्षा और सावधानी के उपाय

कचरे को लोड और ट्रांसपोर्ट करने वाले कर्मचारियों को सुरक्षात्मक उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं। किसी भी आपात स्थिति के लिए डॉक्टरों की टीम मौके पर मौजूद है। भोपाल और इंदौर के प्रशासन को यातायात व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

केंद्रीय मंत्री ने भी जताई आपत्ति

धार की सांसद और केंद्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर ने भी इस कचरे को पीथमपुर में नष्ट करने पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इसे सूनसान क्षेत्र में नष्ट किया जाना चाहिए, ताकि किसी आबादी को नुकसान न हो।

 


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