आंबेडकर जन्मभूमि स्मारक समिति समदस्यों में खूनी संघर्ष, कब्ज़े के लिए छिड़ी है जंग


महू में अंबेडकर स्मारक पर वर्चस्व को लेकर हिंसक झगड़ा हुआ, जिसमें चार लोग घायल हो गए। विवाद ताले लगाने और खोलने को लेकर था, जिसके बाद एसडीएम ने कार्यालय को सील कर दिया। समिति के सदस्य आर्थिक अनियमितताओं के आरोप लगा रहे हैं, और दान की राशि को लेकर भी विवाद चल रहा है। स्थानीय प्रशासन पर निष्क्रियता का आरोप है।


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

महू में अंबेडकर स्मारक पर वर्चस्व को लेकर लंबे समय से चल रहे विवाद ने एक बार फिर शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है। समिति के भीतर आपसी विवाद और आर्थिक अनियमितताओं के आरोपों के चलते रविवार को अनुयायियों के बीच गंभीर झगड़ा हुआ। इस दौरान यहां एक यात्रा भी पहुंची थी जिसके स्वागत की तैयारी की जानी थी लेकिन इसी दौरान हिंसा हो गई।

विवाद इस हद तक बढ़ गया कि पथराव और हाथापाई की नौबत आ गई, जिसमें करीब दस लोग गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। इस दौरान लाठी डंडे तो चले ही पत्थर बाजी भी हुई। इस दौरान आंबेडकर स्मारक समिति के लोग और उनके समर्थक आपस में झगड़ रहे थे। काफी देर तक विवाद के बाद मामला पुलिस थाने तक पहुंचा जहां लोग थाने को ही घेरने लगे।

समिति सचिव पर हैं कई आरोप

एसडीएम चरणजीत सिंह हुड्डा ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कार्यालय को सील कर दिया। इस दौरान स्मारक समिति के सदस्यों के बीच का विवाद जारी रहा। स्मारक समिति के सचवि राजेश वानखेड़े इस विवाद के केंद्र में रहे। जिन पर बड़े पैमाने पर स्मारक समिति से वित्तीय अनियमितता करने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि वानखेड़े इससे इंकार करते हैं लेकिन मुश्किल ये है कि उनके ही लाए हुए सदस्य तक इस बार उनके खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं और लगातार उनकी शिकायत प्रशासनिक अधिकारियों से कर रहे हैं। वानखेड़े पर फर्जी तरीके से समिति बनाने और समिति के बजाए दूसरे बैंक खातों में दान लेने के आरोप भी लगते रहे हैं हालांकि सहकारिता विभाग और पुलिस आदि ने इस पर कोई ठोस जांच नहीं की है। इसकी एक वजह वानखेड़े का कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला जैसे ताकतवर नेताओं के करीबी होना भी है।

(स्मारक पर सचिव राजेश वानखेड़े के खिलाफ लोगों ने खासा गुस्सा नजर आया, लोगों ने उनके खिलाफ नारेबाजी भी की।)

आंबेडकर स्मारक पर राजेश वानखेड़े पिछले तीन वर्षों से अचानक चर्चाओं में आ गए हैं। हालांकि उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत की है। राजेश वानखेड़े पुरानी समिति में भी सदस्य थे लेकिन उस समय उन्हें इतनी पूछ परख हासिल नहीं होती थी ऐसे में उन्होंने पुरानी समिति के अध्यक्ष बौद्ध भिक्षु के साथ साथ मिलकर समिति को भंग कर दिया और नई समिति बना दी। पुरानी समिति में मोहन राव वाकोड़े जो कि स्मारक समिति में सचिव की भूमिका में थे अक्सर चर्चाओं में रहते थे। स्मारक की पूरी जवाबदेही उनकी होती थी और माना जाता है कि उन्होंने संतोषजनक काम किया। वाकोड़े को स्मारक पर आने वाले अनुयायियों के बीच खासी लोकप्रियता मिली और वे तमाम वीआईपी दौरे के इंतजाम भी करते थे। ऐसे में समिति के कई दूसरे सदस्य उनके पद पर आना चाहते थे। कहा जाता है कि इन्हीं वजहों से पुरानी स्मारक समिति भंग की गई और नई समिति बनाई गई। इस समिति में पहले पुराने सदस्यों को जगह तो दी गई लेकिन जल्द ही उन्हें अलग अलग कारणों से निकाल दिया गया।

होटल की तरह चलाते हैं जन्मभूमि स्मारक!

अब स्मारक समिति के सचिव राजेश वानखेड़े के नियंत्रण में स्मारक का पूरा कामकाज होता है। वानखेड़े इंदौर शहर के रहने वाले हैं और एक होटल संचालक भी रहे हैं, कहा जाता है कि उन्होंने स्मारक को इसी तरह चलाने की कोशिश की। स्मारक संचालन में उन पर व्यवसायिक तरीके अपनाने के विवाद भी उन पर लगते रहे हैं लेकिन राजनीतिक तौर पर फिलहाल मजबूत होने के कारण इस पर प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की और वानखेड़े और उनकी टीम के कई विवाद अनुयायियों के साथ भी होते रहे हैं।

करोड़ों की अनियमितता का आरोप…

स्मारक समिति के सदस्यों का आरोप है कि वानखेड़े ने अपने परिवार को समिति में स्थापित कर लिया है और वे अब तक एक से दो करोड़ रुपए की अनियमितता कर चुके हैं। सदस्यों के मुताबिक हर साल यह अनियमितता हो रही है लेकिन प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है। दान की राशि को लेकर भी काफी विवाद है, कहा जाता है कि स्मारक को लोगों के द्वारा मिलने वाला दान बिना प्रशासनिक मौजूदगी के ही ताले खोलकर निकाल लिया जाता है। स्मारक के कार्यालय को भी वानखेड़े अपने निजी भवन की तरह उपयोग करते हैं। इस पर भी स्मारक सदस्य आपत्ति जता चुके हैं।

कमिश्नर से भी कर चुके हैं शिकायत

पिछले दिनों ही इंदौर संभागायुक्त कार्यलय में स्मारक समिति के खिलाफ कई समाजजनों ने ज्ञापन दिया था। इस दौरान उन्होंने स्मारक में नियम विरुद्ध कामकाज पर भी सवाल उठाए थे और जांच की मांग की थी। समाजजनों ने कहा था कि हर साल बड़े पैमाने पर होने वाले घोटाले के बावजूद प्रशासन इसे लेकर आंंख मूंदकर बैठा है।

दान की राशि को लेकर भी विवाद बढ़ गया है, जिससे यह साफ हो गया कि लड़ाई का मुख्य कारण आर्थिक लाभ है। स्थानीय प्रशासन और जिला प्रशासन ने इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, और चर्चा है कि स्मारक समिति के सचिव पर इंदौरी नेता का हाथ है, जिससे कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।


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