आंबेडकर स्मारक समिति में फिर बढ़ा विवाद, इस बार दान पेटियों से चोरी का आरोप


समिति के पूर्व सचिव मोहन राव वाकोड़े ने लगाए हैं आरोप कि नई समिति नियम कानूनों का बना रही मज़ाक।
उठाया सवाल कि आंबेडकर जयंती से पहले ही लाखों रू की जरूरत आख़िर क्यों पड़ रही है…


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :
आंबेडकर जन्मस्थली स्मारक, महू


इंदौर। डॉ. आंबेडकर की जन्मभूमि पर बने स्मारक की समिति पर इन दिनों गंभीर आरोप लग रहे हैं। समिति के सदस्यों में विवाद पिछले दो साल से जारी हैं। हालही में यहां चुनाव हुए हैं और समिति में नए लोग जिम्मेदार बने हैं। समिति से जुड़े कुछ लोगों  ने मंगलवार 9 मार्च को स्मारक पर रखीं कुछ दानपेटियां खोलीं और उनमें से राशि भी निकाली।

स्मारक समिति के पूर्व सचिव मोहन राव वाकोड़े ने कहा है कि इस तरह दान पेटियों के ताले खोला जाना घोर आपत्तिजनक है। वाकोड़े के मुताबिक यह पहली बार हो रहा है कि समिति दान पेटियां जयंती के पहले खोल रही है वह भी समिति के अन्य सदस्यों और प्रशासन को जानकारी दिये बग़ैर।

वाकोड़े के मुताबिक समिति के सदस्यों ने दान पेटियों से निकाली गई राशि सार्वजनिक भी नहीं की है ऐसे में साफ है कि दान पेटियों में से निकाली गई राशि का ब्यौरा अब नहीं मिल पाएगा और यह भी पता नहीं चलेगा कि पेटियों में से कितनी राशि निकली है।

हालांकि समिति के सदस्यों के मुताबिक उन्होंने इसके बारे में प्रशासन को जानकारी दी थी लेकिन यह जानकारी तब दी गई जब ताले खोल कर राशि निकाल ली गई।

वाकोड़े ने आरोप लगाया कि समिति के सचिव आदि पदों पर आसीन लोगों को केवल पांच सौ से हज़ार रुपये ही खर्च करने का अधिकार है। इससे अधिक राशि खर्च करने के लिये उन्हें विधिवत अनुमति लेनी होती है जबकि इस नई समिति के द्वारा सभी नियम कानून ताक पर रख दिये गए हैं।

यही नहीं स्मारक समिति के पास केवल चौकीदार का वेतन और कुछ छोटे-मोटे दूसरे खर्चे देने का दायित्व है इसके अलावा बाकि सारी राशि शासन उपलब्ध कराता है।

वाकोड़े ने और भी कई गंभीर आरोप लगाए हैं उनके मुताबिक समिति को 2019 में जो दान मिला था वह शासन के पास जमा हो चुका था। वह राशि करीब चार लाख रुपये कुछ समय पहले जनवरी के महीने में ही नई समिति के सदस्यों को शासकीय कोषालय से मिले हैं। यह राशि आचार संहिता उल्लघंन के मामले में जब्त की गई थी।

वहीं स्मारक की पेटियों में करीब सात लाख रुपये और होने चाहिये। इसके अलावा समिति के बैंक खाते में भी इतनी ही रकम पहले से मौजूद है। ऐसे में स्मारक समिति के द्वारा यह पैसा कहां खर्च हो रहा है इसकी जांच की जानी चाहिए।

वाकोड़े के इन आरोपों पर गौर किया जाए तो कुछ बातें सही भी नज़र आती हैं। अब तक आंबेडकर स्मारक समिति के दानपात्रों के ताले बिना प्रशासन की अनुमति लिये और अधिकारियों की गैरमौजूदगी में नहीं खोले गए हैं। यही नहीं यह भी पहली बार ही हुआ है जब आंबेडकर जयंती से पहले ही दान पेटियों के ताले खोले गए हैं।

स्मारक समिति में पिछले करीब चार सालों से कई विवाद सामने आते रहे हैं। इनमें महू से मोहन राव वाकोड़े और इंदौर के राजेश वानखेड़े के बीच मतभेद आम रहे हैं। वाकोड़े स्मारक में करीब दो दशकों से काम कर रहे हैं और हर अहम मौके पर अब तक वे ही जिम्मेदारी संभालते रहे हैं।

यहां आने वाली सभी प्रमुख हस्तियों के साथ मोहन राव वाकोड़े ही नज़र आते रहे हैं। बताया जाता है कि यही बात उनके विरोध में भी जाती रही।

मामले में एसडीएम अभिलाष मिश्रा के मुताबिक उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है कि दानपेटियों के ताले खोले जाने के समय प्रशासनिक लोगों के मौजूद रहने की भी ज़रूरत होती है। मिश्रा के मुताबिक समिति के नियमों में यह नहीं लिखा है।

हालांकि मोहन राव वाकोड़े के मुताबिक 2008 में प्रशासन द्वारा जारी एक निर्देश के मुताबिक हर बार ऐसा ही होता रहा है जिसका उल्लेख हर साल अख़बारी ख़बरों में होता है।

वाकोड़े के मुताबिक डॉ. भीमराव आंबेडकर भारत रत्न हैं और उनका नाम केवल स्मारक समिति तक सीमित नहीं है। उनके अनुयायी देश के कौने-कौने और विश्वभर में हैं जो यहां आते रहते हैं ऐसे में उनके नाम पर मिलने वाली राशि का उपयोग भी पूरी पारदर्शिता के साथ होना चाहिये। इस बात को समिति से जुड़े केवल कुछ चोरी-छिपे अंजाम नहीं दे सकते।

वहीं इस मामले में समिति के सचिव राजेश वानखेड़े से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने वाकोड़े के आरोपों पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया।

उल्लेखनीय है कि समिति के विवाद पिछले काफी समय से जारी हैं। इनमें सबसे ज्यादा विवादित समिति के पूर्व अध्यक्ष भंते संघशील रहे। 2019 में उनके खिलाफ समाज के कई लोगों ने खुला विरोध किया।

उनकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जिसके बाद करीब एक साल पहले उन्होंने आत्महत्या कर ली। समिति के सदस्यों की संख्या को लेकर एक विवाद हुआ। जिसके बारे में हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई गई है।


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