भोपाल। पिछले काफी समय से अपनी मांग पर सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश करते रहे संविदा स्वास्थ्य कर्मी अब हड़ताल पर हैं। वहीं सरकार से नाराज़ चल रहे दूसरे आउटसोर्स तथा नियमित कर्मचारी भी 21 दिसंबर से हड़ताल पर जाने की धमकी दे रहे हैं। इसके बाद प्रदेश के तमाम सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों का इलाज मुश्किल होगा या यूं कहें कि इलाज बंद भी हो सकता है। सरकार से अपना विरोध जताते हुए इन कर्मियों ने प्रदेश भर में अपनी मांगों को पूरा करने के लिए ज्ञापन दिये हैं और प्रदर्शन भी किया है। दमोह जिले में हुए प्रदर्शन में इन संविदाकर्मियों ने अपने खून से सरकार को पत्र लिखकर प्रदर्शन किया।
प्रदेश के 32 हज़ार संविदा स्वास्थ्य कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इसके चलते प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में खासी परेशानी हो रही है। अस्पतालों में जारी कर्मचारियों की इस हड़ताल से प्रदेश के ग्रामीण इलाकों के अस्पताल सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं जहां लोगों को इलाज नहीं मिल रहा है। रीवा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मनिकवार में एक प्रसूता की डिलेवरी एंबुलेंस में ही हो गई और नवजात बच्ची का निधन हो गया। दमोह जहां कर्मचारियों ने अपने खून से सरकार को पत्र लिखे वहां भी कई अस्पतालों में व्यवस्था खासी बिगड़ी हुई है।
इस तरह स्वास्थ्य विभाग सहित चिकित्सा शिक्षा और आयुष की तीनों विधाओं की अलग-अलग स्वास्थ्य संस्थाओं में सेवाएं दे रहे और अलग-अलग श्रेणी में काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मी इस हड़ताल में शामिल हैं। ज़ाहिर है कि अगर ये सभी कर्मचारी एक साथ हड़ताल पर गए तो अस्पतालों में इलाज के लिए केवल डॉक्टर ही बचेंगे।
इन सभी कर्मियों की संस्था ने मिलकर एक कर्मचारी महासंघ बनाया है। महासंघ ने अपनी मांगें मनवाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन शुरु किया है और कहा है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो 21 दिसंबर से कामबंद हड़ताल की जाएगी।
कर्मचारी संगठनों के इस महासंघ के द्वारा सरकार से अपनी 41 सूत्रीय मांगें जगह जगह ज्ञापन देकर सौंपी जा रहीं हैं। इन मांगों के अलावा कर्मचारियों ने तय किया है कि अब हर जिले से 1-1 हजार कर्मचारी आएंगे और मुख्यमंत्री से बात करेंगे। महासंघ में शामिल संगठनों ने बताया कि बड़े अधिकारी कर्मचारियों की मांगों के प्रति उदासीन ही रहे हैं और उनसे बात करने से अब कोई लाभ नहीं क्योंकि वे ये बातें मुख्यमंत्री और सरकार तक गंभीरता से नहीं पहुंचाते हैं। ऐसे में अब चाहिए कि सीधे प्रदेश के मुखिया से ही संवाद कर उन्हें कर्मचारियों की स्थिति की सचाई बताई जाए।
ये हैं मांगें…
- संविदा स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित किया जाए।
- आउटसोर्स और रोगी कल्याण समिति में कार्यरत कर्मचारियों को रिक्त पदों पर समायोजित करें।
- विभागों में सीधी भर्ती से पदपूर्ति की जाए।
- पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाए।
- नर्सिंग ऑफिसर को ग्रेड टू वेतनमान दिया जाए।
- चिकित्सा शिक्षा विभाग में स्वशासी में कार्यरत कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ वर्ष 2016 से दिया जाए।
- प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों में नर्सिंग ऑफिसर को तीन और चार वेतन वृद्धि दी जाए।
- सीधी भर्ती में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को परिवीक्षा अवधि में 70-80-90 प्रतिशत वेतन की व्यवस्था समाप्त की जाए।
- नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ को रात्रिकालीन आकस्मिक चिकित्सा भत्ता दिया जाए।