धार। कोरोना के बाद जिले का बड़ा पहला आयोजन मांडू उत्सव के साथ होगा। राजा भोज की स्थापित ऐतिहासिक नगरी और मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थल मांडू में तीन दिवसीय मांडू उत्सव की शुरुआत 13 फ़रवरी से 15 फरवरी तक आयोजित होगा। ट्राइबल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रयासों के तहत यह फेस्टिवल हो रहा है।
शनिवार से शुरू हो रहे मांडू उत्सव में आदिवासी संस्कृति और सभ्यता के रंग दिखाई देंगे, जिसका मकसद देश-दुनिया में पश्चिमी मालवा निमाड़ की आदिवासी शैली को नई पहचान दिलाना है।
जिले के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मांडू में 13 से 15 फरवरी तक तीन दिवसीय मांडू उत्सव का आयोजन मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। इस बार कोरोना प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए पूरा आयोजन खुले में किया जा रहा है।
हर वर्ष दिसंबर में होने वाला यह आयोजन कोरोना के चलते दो माह विलंब से किया जा रहा है। 13 फरवरी को सुबह 11 बजे फूड कोर्ट के शुभारंभ के साथ ही मांडू उत्सव की शुरुआत होगी जो कि 15 फरवरी के दोपहर तक चलेगा।
13 फरवरी को आयोजन शुरू होने के साथ ही पूरे दिन भर हेरिटेज वॉक, साइकिलिंग ट्रेल, योग सत्र और हॉर्स ट्रेल जैसी गतिविधियां होंगी और शाम को कबीर कैफे द्वारा बैंड की प्रस्तुति दी जाएगी। इसी के साथ ही स्थानीय कलाकारों के गीत-संगीत के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
कोरोना के कारण इस बार पूरे मांडव उत्सव को फेसबुक, यूट्यूब तथा अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से इस बार लाइव दिखाया जाएगा, ताकि जो लोग मांडू नहीं पहुंच पा रहे हैं, वो घर बैठे ही उत्सव का आनंद ले सकें।
मांडू उत्सव का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को मांडव की ओर आकर्षित करना तथा यहां की संस्कृति से रूबरू करवाना है। कलेक्टर आलोक कुमार सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मांडू उत्सव की जानकारी दी।
बैठक में कलेक्टर आलोक सिंह, एसपी आदित्य प्रताप सिंह, जिला पंचायत सीईओ संतोष वर्मा, एसडीएम सत्य नारायण दरों, प्रवीण शर्मा, आदि अधिकारी मौजूद थे।
रानी रूपमती और राजा बाज बहादुर की अमर प्रेम कहानी –
रानी रूपमती और राजा बाज बहादुर की अमर प्रेम गाथा के लिए मांडू को खुशियों का शहर कहा जाता है। मांडू में नर्मदा नदी बहती नहीं है, लेकिन मांडू को मां नर्मदा का प्राकट्य स्थल माना जाता है।
पुराणों में और मां नर्मदा की आरती में मांडू का जिक्र है। इसके साथ ही जब कोई मां नर्मदा की परिक्रमा करता है, तो बिना मांडू के रेवा कुंड आए उसकी परिक्रमा अधूरी मानी जाती है। मां नर्मदा के मांडू में प्रकट होने को लेकर कई मत हैं।
किवदंती है कि ऋषि मार्कंडेय ने इसी स्थान पर मां नर्मदा की तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर मां नर्मदा रेवा कुंड में प्रकट हुई थीं, तभी से इसे मां नर्मदा का प्राकट्य स्थल माना जाता है। मान्यता है कि गर्मी हो या सूखा पड़ जाए, लेकिन रेवा कुंड का पानी कभी सूखता नहीं है।
कहते हैं कि रानी रूपमती नर्मदा नदी को देखे बिना भोजन ग्रहण नहीं करती थीं इसलिए राजा बाज बहादुर ने रानी रूपमती की इच्छा का ध्यान रखते हुए रानी रूपमती किले का निर्माण करवाया था।
मांडू उत्सव को देखने के लिए देश-दुनिया के पर्यटक पहुंचे हैं। पूरे दिन मांडू के इतिहास से जुड़े पुरातन स्मारकों में इतिहास और संस्कृति से रूबरू होने को मिलेगा बल्कि मांडू उत्सव के कार्यक्रमों का भी आनंद उठाया जा सकता है। इस दौरान ट्राइबल फैशन शो के जरिये उन्हें आदिवासी संस्कृति देखने को मिलेगी।
सागर तालाब में वाटर स्पोर्ट्स के आयोजन होंगे। हॉट एयर बैलून और साइकिलिंग का लुत्फ भी पर्यटक ले सकेंगे। मालीपुरा, बूढ़ी मांडू आदि जगह घुमने का लुप्त उठा सकते हैं।