विधायक ने मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन, कहा, नर्सिंग कॉलेज संचालकों की मुट्ठी में है प्रदेश सरकार


विधायक प्रताप ग्रेवाल ने आदिवासी नर्सिंग विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति और आवास भत्ता पर लगी रोक को हटाने की मांग करते हुए सरकार पर नर्सिंग कॉलेज संचालकों के हाथों की कठपुतली बनने का आरोप लगाया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि छात्रों का हक मारा गया तो विधानसभा में इसकी आवाज बुलंद की जाएगी।


आशीष यादव
धार Published On :

सरदारपुर विधायक प्रताप ग्रेवाल ने मंगलवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपते हुए आदिवासी नर्सिंग विद्यार्थियों के हक की मांग उठाई। उन्होंने कहा कि 2020 से आदिवासी नर्सिंग विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति और आवास भत्ता नहीं मिला है, जिसके चलते उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विधायक ग्रेवाल ने सरकार पर नर्सिंग कॉलेज संचालकों के प्रभाव में काम करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार आदिवासी विद्यार्थियों के अधिकारों की अनदेखी कर रही है और यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो आने वाले विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया जाएगा।

 

विधायक ने अपने ज्ञापन में जोर देकर कहा कि मध्यप्रदेश की समस्त आदिवासी नर्सिंग विद्यार्थियों को पिछले तीन सालों से अवैध रूप से रोकी गई छात्रवृत्ति और आवास भत्ता का भुगतान तत्काल किया जाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार नर्सिंग कॉलेज संचालकों के हाथों की कठपुतली बन चुकी है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने आदिवासी विद्यार्थियों का हक मारा तो इसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

 

साजिश के तहत रोक लगाई गई – एनएसयूआई

एनएसयूआई जिला उपाध्यक्ष महेश कुमावत ने इस मुद्दे पर जानकारी देते हुए बताया कि 11 जुलाई को जनजातीय कार्य विभाग द्वारा आदिवासी नर्सिंग विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति और आवास भत्ता पर अस्थाई रूप से रोक लगाई गई है, जो कि एक साजिश के तहत किया गया है। कुमावत ने कहा कि किसी भी न्यायालय ने इस तरह की रोक का आदेश नहीं दिया है, फिर भी विभाग के अधिकारियों ने जानबूझकर इसे लागू किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कई कॉलेज संचालक विद्यार्थियों के बैंक खातों पर नियंत्रण रखते हैं, जिनकी चेकबुक और एटीएम भी संचालक के पास होते हैं, और छात्रवृत्ति का पैसा गलत तरीके से संचालकों के खाते में जा रहा है।

 

महेश कुमावत ने इसे आदिवासी विद्यार्थियों के मौलिक अधिकारों का हनन बताया और कहा कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।

 


Related





Exit mobile version