धार। आम नागरिकों को पुरातत्व संपदा और इससे जुड़े नियमों का पाठ पढ़ाने वाले केंद्रीय पुरातत्व विभाग राजस्व की जमीन पर अवैध कैंटीन भवन खड़ा कर रहा है। यहा राजस्व विभाग की जमीन पर पुरातत्व विभाग निर्माण कर रहा है। इसके लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गई है। इस नए निर्माण पर विभाग के 70 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि एक ऐतिहासिक महत्वर की इमारत के नज़दीक, अन्य विभाग की जमीन पर बिना अनुमति लिए एक केंद्रीय विभाग इस तरह का निर्माण कैसे कर रहा है।
पुरातत्व विभाग के सुपरिंटेंडेंट खुद यह बात मान रहे हैं कि जिस जमीन पर निर्माण हो रहा है वह उनकी नहीं है और निर्माण गलत हुआ है। इधर राजस्व विभाग ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जिस स्थान पर पुरातत्व विभाग कैंटीन का निर्माण कर रहा है वह चार सर्वे नंबर राजस्व रिकार्ड में दर्ज है। हालांकि इस मामले में कोई कार्रवाई होगी या नहीं इस बारे में फिलहाल अधिकारियों का रवैया कुछ खास निर्णायक नजर नहीं आ रहा है।
इस मामले में नगर परिषद के भवन अनुज्ञा के नियमों का भी खुला उल्लंघन हुआ है और कोई अनुमति नहीं ली गई है। खुद विभाग ही पुरातत्व अवशेष अधिनियम का उल्लंघन कर जहाज महल से सटाकर पक्का निर्माण कार्य कर रहा है। 2016 में काम रुकने के बाद इस वर्ष फिर पुरातत्व विभाग के इंजीनियर वरिष्ठ अधिकारी और कंस्ट्रक्शन कंपनी की मिलीभगत 70 लाख में से 35 लाख रुपए भी स्वीकृत कर दिए हैं।
दरअसल ऐतिहासिक तवेली महल की सीमा से लगकर यहां बड़े क्षेत्र में कैंटीन का निर्माण कार्य चल रहा है। इस कैंटीन के लिए जल शक्ति मंत्रालय भारत शासन ने भी फंड जारी किया है। निर्माण एजेंसी वेब कोर्स द्वारा यहां निर्माण कार्य जारी है। निर्माण कार्य की लागत लगभग 70 लाख रुपए हैं।
जमीन का स्वामित्व नहीं तो कैसे शुरू हो गया अवैध निर्माण:
पुरातत्व विभाग इस मामले में सवालों के घेरे में है। तहसीलदार सुरेश नागर ने बताया की जमीन राजस्व विभाग की है जहां कैंटीन का निर्माण हो रहा है वह राजस्व के सर्वे नंबर 149, 273,274 ,275 है। आज भी राजस्व के रिकॉर्ड में दर्ज है। हालांकि पुरातत्व विभाग ने जमीन आवंटन के लिए आवेदन दिया है पर फिलहाल जमीन आवंटित नहीं की गई है।
सुपरीटेंडेंट बोले संज्ञान में है जमीन राजस्व की है निर्माण हटवा लेंगे: इस मामले में पुरातत्व विभाग भोपाल के सुपरिटेंडेंट मनोज कुर्मी ने बताया कि यह बात हमारे संज्ञान में थी कि जमीन हमारी नहीं है। फिर भी काम शुरू हो गया है। पर्यटन सुविधा और जन सुविधाओं के विस्तार से संबंधित मामला है। जमीन विभाग को आवंटित नहीं हुई है। स्थानीय अधिकारी और ठेकेदार की गलती है। हम निर्माण हटवा लेते हैं।
ना भवन अनुज्ञा ली ना स्वामित्व के कागज पेश किए: इस विषय में नगर परिषद के उपयंत्री बलदेव सिंह ठाकुर ने बताया की तवेली महल के पास जो कैंटीन बन रही है उसके लिए नगर परिषद के नियमों का पालन भी नहीं हुआ है। भवन अनुज्ञा के लिए पुरातत्व विभाग ने कोई कार्यवाही नहीं की है। जमीन के स्वामित्व के दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं ना ही कोई नक्शा पास करवाया है। हमारे पास इसकी कोई जानकारी नहीं है।
शंका के घेरे में पुरातत्व विभाग के अधिकारी और ठेकेदार: इस मामले में विभाग ने नियमों की खुली धज्जियां उड़ाई है। प्रश्न यह उठता है कि जब जमीन आवंटित ही नहीं हुई तो किस नियम के तहत उस जमीन पर निर्माण के लिए टेंडर जारी हुए कैसे स्वामित्व के कागज के बिना नक्शा पास हुआ विभागीय अधिकारियों ने तकनीकी स्वीकृति कैसे दे दी और कैसे निर्माण शुरू हो गया तथा कैसे इस अवैध निर्माण के लिए 35 लाख रुपए जारी कर दिए गए? इस मामले में वरिष्ठ अधिकारी कंस्ट्रक्शन कंपनी को जवाबदार बता रहे हैं जबकि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि सब कुछ ठीक है।
पुरातत्व अधिनियम का खुला उल्लंघन: इस मामले में पुरातत्व विभाग ने अपने ही अधिनियम का खुला उल्लंघन किया है। 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पूर्ण रूप से प्रतिबंधित होने के बाद भी खुद विभाग ने ही अपने महल की दीवार से सटाकर निर्माण कर नियम तोड़ दिए। इधर निर्माण में भी काहे के नियम होते नियम निर्माण की गुणवत्ता भी सवालों में है।
हम से कौन अनुमति लेता है तो हम अनुमतिया लेते फिरे: इस मामले में पुरातत्व विभाग मांडू के संरक्षण सहायक प्रशांत पाटणकर ने कहा कि राजस्व विभाग या नगरपालिका हमसे कौन सी अनुमतिया लेती हैं। फिलहाल नगर परिषद भी अनेक स्थानों पर निर्माण कार्य कर रही है उन्होंने हमसे कौन सी परमिशन ले ली है जो हम उनसे लें। उन्होंने आगे इस बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।