प्रदेश के बहुचर्चित कुक्षी शराब कांड में फरार चल रहे सुखराम डावर ने एकाएक न्यायालय में सरेंडर कर दिया। सरेंडर करने से पहले तक पुलिस रिकार्ड में सुखराम फरार था। शराब कांड के बाद से सुखराम फरार था, जो 323 दिन बाद अचानक कोर्ट पहुंचा और सरेंडर कर दिया। इसके बाद कोर्ट ने पुलिस को दो दिन की रिमांड पर सुखराम को सौंपा है। बताया जा रहा है कि रिमांड पर आने के बाद सुखराम की तबीयत बिगड़ गई, जिसके चलते उसे कुक्षी अस्पताल में भर्ती करवाया गया। जहां से उसे बड़वानी रेफर कर दिया है।
यह सब तब हुआ जब इस शराब कांड को उजागर करने वाले IAS अफसर कुक्षी एसडीएम नवजीवन पंवार का ट्रांसफर हुआ। एसडीएम पवार के रहते सुखराम पुलिस के हाथ नहीं आया लेकिन जैसे ही उनका ट्रांसफर हुआ वैसे ही उसने सरेंडर कर दिया। पुलिस को भी इस सरेंडर की भनक लग पाई। ऐसे में यह पूरा सरेंडर कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रहा है। इधर शराब माफिया का इस तरह का सरेंडर दूसरे शराब माफियाओं के लिए भी नया रास्ता तैयार कर सकता है।
सागौर में अवैध शराब केस में फरार चल रहे राजगढ़ के कांग्रेस नेता व सफेदपोश शराब माफिया सिद्धार्थ जायसवाल को फरारी काटते हुए एक साल हो रहा है। वहीं गंधवानी की गिट्टी खदान से पकड़ाए शराब के ट्रक में फरार कांग्रेस के जनपद सदस्य व शराब माफिया विक्की डोडवे भी अब तक फरार है। इस तरह के कई छोटे-बड़े शराब माफिया है जो पुलिस की नजरों से अब तक बचने में सफल रहे है।
दरअसल 13 सितंबर 2022 को एसडीएम नवजीवन पंवार को सूचना मिली थी कि बड़वानी से शराब से भरकर ट्रक गुजरात जा रहा है। सूचना के आधार पर एसडीएम पंवार ने ट्रक का पीछा किया और शराब से भरे ट्रक को आलीराजपुर रोड पर रोक लिया। इस बीच ट्रक को कवर देते हुए चल रही शराब माफिया सुखराम की स्कार्पियों मौके पर पहुंची और एसडीएम पंवार और नायब तहसीलदार राजेश भिड़े पर हमला कर दिया।
सुखराम के साथ पूरी गैंग थी। जिसने ट्रक को छुड़वाने का प्रयास किया और अधिकारी पर हमला किया। इस दौरान फायरिंग भी हुई। इसके साथ ही नायब तहसीलदार राजेश भिडे को बंधक बना लिया। हालांकि कुछ ही देर बाद आरोपी अपने साथियों के साथ अधिकारियों को छोड़कर फरार हो गया था। इसके बाद पुलिस ने सुखराम डावर सहित उसके साथियों पर केस दर्ज किया था तब से ही सुखराम फरार था।
शराब कारोबारी तक पहुंची थी आंच : कुक्षी के एसडीएम पंवार पर हुए हमले के बाद मामला पूरे प्रदेश में चर्चित था। इसके लिए मजिस्ट्रियल जांच के आदेश जारी किए गए और धार एडीएम को जांच का जिम्मा सौंपा गया था। इसके बाद इसकी आंच शराब कारोबारी व बड़वानी में उस वक्त लाइसेंसी ठेका चला रहे रिंकू भाटिया तक पहुंची थी। जिस पर रिंकू भाटिया की पुलिस ने गिरफ्तारी की थी लेकिन आबकारी के जिम्मेदार अफसर इस पूरे मामले में सिर्फ ट्रांसफर की कार्रवाई तक सीमित रहकर बच गए। जबकि अवैध शराब कारोबार पर रोकथाम की जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी लेकिन अवैध शराब का कारोबार न तो कभी बंद हुआ और न ही इस पर कभी रोक लग पाई।