दसवीं शताब्दी की परमार कालीन गणेश प्रतिमा का तेल-सिंदूर से किया विशेष श्रृंगार


दूर-दूर ग्रामीण अंचलों में जैसे-जैसे खबर लग रही है लोग गणेश की प्रतिमा का दर्शन करने पहुंच रहे हैं। गणेश उत्सव के दौरान गणेश प्रतिमा का विशेष श्रृंगार पूजन और आरती का आयोजन ग्रामीण कर रहे हैं।


आशीष यादव
धार Published On :
dhar ganesh pratima

धार। पर्यटन नगरी मांडू प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक वैभव एवं धार्मिक समृद्ध संस्कृति के साथ अपने गोद में कई रहस्यों को संजोए हुए है। मांडू में कई सारे प्राचीन मंदिर एवं प्रतिमाएं हैं जो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।

साथ ही कई सारे मंदिर, स्थल हैं जो पौराणिक कथाओं से संबंधित हैं। उन्हीं में से एक है बूढ़ी मांडू में स्थित लगभग 7 फीट की गणेश प्रतिमा।

बूढ़ी मांडू के गणेश की प्रतिमा लगभग 1300 वर्ष पुरानी है और यह प्रतिमा कई जगह से खंडित है, लेकिन हाल ही में नजदीक रहने वाले ग्रामीण अंचलों के आदिवासियों ने इस प्रतिमा को मूर्त रूप देने की ठानी और प्रतिमा के लिए एक आसन तैयार किया एवं प्रतिमा का जब तेल-सिंदूर से श्रृंगार किया तो प्रतिमा अद्भुत रूप में दिखाई दी।

प्रतिमा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी और प्रतिमा ऐसी लग रही थी मानो अभी ही इसे तैयार किया गया हो। दूर-दूर ग्रामीण अंचलों में जैसे-जैसे खबर लग रही है लोग गणेश की प्रतिमा का दर्शन करने पहुंच रहे हैं। गणेश उत्सव के दौरान गणेश प्रतिमा का विशेष श्रृंगार पूजन और आरती का आयोजन ग्रामीण कर रहे हैं।

परमार कालीन है प्रतिमा –

इतिहास के जानकारों की माने तो यह गणेश प्रतिमा आठवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच में परमार कालीन राजवंशों द्वारा बनाई गई है। वर्तमान मांडू से पहले नजदीक खाई में बूढ़ी मांडू हुआ करती थी।

परमार कालीन राजवंश द्वारा पहले कहीं भी महल या इमारतें बनाई जाती थी तो गणेश जी की प्रतिमा पहले विराजित कर कार्य की शुरुआत की जाती थी।

साथ ही महलों में दीवारों व दरवाजों पर भगवान की मूर्तियां भी लगाने का चलन उस जमाने में था। बूढ़ी मांडू में सैकड़ों की संख्या में भगवानों की मूर्तियों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

गदा, फरसा, लड्डू और आशीर्वाद मुद्रा में गणेश –

गणेश प्रतिमा चार भुजाधारी है। हाथ में गदा, फरसा, लड्डू और आशीर्वाद की मुद्रा में भगवान गणेश विराजमान हैं। बरखेड़ा हनुमान मंदिर महंत प्रेमदास और बिल्लू महाराज ने इस प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया।

उन्होंने बताया कि ग्रामीणों की मदद से प्रतिमा को एक जगह स्थापित कर श्रृंगार, पूजन, आरती वगैरह की जा रही है और लोग दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।

कैसे पहुंचे बूढ़ी मांडू –

यूं तो बूढ़ी मांडू मांडू से लगा हुआ है, लेकिन सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए मांडू 10 किलोमीटर पहले नालछा से पूर्व की ओर 18 किलोमीटर सफर करने के बाद सोडपुर मोगराभाव होते हुए बूढ़ी मांडू गणेश प्रतिमा दर्शन के लिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह काफी मनोरम स्थल है और प्राकृतिक संपदा और से घिरा हुआ है।


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