मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग (SCPCR) की टीम ने रतलाम जिले में संचालित एक अवैध मदरसे में छापा मारा, जहां सैकड़ों बच्चियां बेहद बुरी स्थिति में पाई गईं। इस मदरसे का नाम ‘दारुल उलूम आयशा सिद्दीका लिलबिनात’ है, जहां पांच से पंद्रह साल तक की बच्चियों को दीन की तालीम के नाम पर अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया है।
बच्चियों की दयनीय स्थिति
एक कमरे में 30-35 बच्चियां संगमरमर के ठंडे फर्श पर सो रही थीं, जिनमें से कुछ बच्चियां बिना किसी चटाई के पाई गईं। SCPCR की सदस्य, डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि बच्चियों की हालत देखकर वह बहुत आक्रोशित और भावुक हो गईं। एक बच्ची को तेज बुखार होने के बावजूद बिना चटाई के फर्श पर दर्द से कराहते हुए देखा गया।
अवैध मदरसा
मदरसे का संचालन बिना किसी सरकारी मान्यता के हो रहा था। SCPCR की जांच में यह भी सामने आया कि इस मदरसे को महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले की जामिया इस्लामिया इशाअतुल उलूम अक्लकुआ संस्था से जुड़कर संचालित किया जा रहा था। मदरसा संचालकों ने आयोग को बताया कि उन्हें सरकार से किसी प्रकार की मान्यता प्राप्त नहीं है और फंडिंग के स्रोतों के बारे में भी स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई।
बच्चियों की निगरानी और शिक्षा का अभाव
मदरसे के प्राइवेट कक्षों में कैमरे लगे हुए पाए गए, जिनकी निगरानी पुरुष कर रहे थे। डॉ. निवेदिता शर्मा ने कहा कि यह बहुत ही आपत्तिजनक है कि बच्चियों की प्राइवेट जिंदगी पर नजर रखी जा रही है। इसके अलावा, अधिकांश बच्चियां आधुनिक शिक्षा से वंचित थीं, जो शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन है। मदरसे में कुल 100 बच्चियों में से केवल 40 बच्चियां ही पढ़ाई कर रही थीं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का उल्लंघन
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। लेकिन इस मदरसे में बच्चियों को आधुनिक शिक्षा से दूर रखा जा रहा था। SCPCR ने इस मदरसे के मामले को गंभीरता से लिया है और शासन को लिखकर बच्चियों के भविष्य के लिए उचित कदम उठाने की सिफारिश की है।
स्थानीय अधिकारियों की प्रतिक्रिया
जब जिला शिक्षा अधिकारी रतलाम कृष्ण चंद्र शर्मा और जिला मदरसा संचालक प्रमुख इनामुर शैख से संपर्क किया गया, तो दोनों के मोबाइल बंद पाए गए। यह घटना राज्य में बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा के प्रति गंभीर चिंता का विषय बन गई है।