धार। ‘दिल के अरमान आंसुओं में बह गए’ की तर्ज पर दो दिन पूर्व प्रदेश सरकार द्वारा सरपंचों, जनपद अध्यक्षों एवं जिला पंचायत अध्यक्षों को दिये गये प्रधान के बारे में जारी आदेश समाप्त कर देने से इन लोगों में बेहद मायूसी दिखाई दे रही है।
मध्यप्रदेश में पंचायतों के चुनाव और अधिकार इतने चक्करों में झूलते जा रहे हैं कि जनप्रतिनिधि के साथ-साथ जनता भी उलझ रही है। मंगलवार को प्रदेश के पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को फिर से दिए गए अधिकार 24 घंटों में ही फिर समाप्त हो गए। बुधवार को पुन: प्रदेश सरकार से आदेश आने के बाद जिलों में आदेश जारी करते हुए प्रशासक बहाल कर दिए गए।
मप्र राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा त्रि-स्तरीय पंचायतों के चुनाव घोषित किए थे, तो आचार संहिता लागू की गई थी। इसके तहत ग्राम पंचायतों के बैंक खातों के संचालन की व्यवस्था प्रशासकों को सौंप दी गई थी।
पंचायत चुनाव निरस्त होने के बाद से आचार संहिता खत्म हो गई। इसके बाद मंगलवार को ही पंचायतों में एक बार फिर से वितीय अधिकारी सचिव और ग्राम प्रधान के संयुक्त हस्ताक्षर से होने के आदेश दिए गए थे।
प्रमुख सचिव मप्र शासन के आदेश में जनपद और जिला पंचायतों में भी प्रशासक की बजाय फिर से व्यवस्था जनप्रतिनिधियों को सौंपी गई थी, लेकिन ये खुशी 24 घंटे भी नहीं रह सकी।
बुधवार को ही फिर से आदेश मिलने के बाद अधिकांश जिला प्रशासन ने पत्र जारी किए हैं। इसमें पंचायतों, जनपद और जिला पंचायत में वितीय अधिकार फिर से प्रशासकों के हवाले कर दिए गए हैं।
आदेश में केवल इतना कहा गया है कि मंगलवार के आदेश को निरस्त किया जा रहा है। कुछ जनपद पंचायतों द्वारा भोपाल से दूरभाष से दिए आदेश का हवाला दिया गया है। ऐसे में एक बार फिर से पंचायतों से संबंधित काम अधिकारियों के पास आ गए हैं।
जनता जो लगभग डेढ सालों से नए नेताओं का इंतजार कर रही है और वे प्रत्याशी जो नेतृत्व का सपना देख रहे हैं, दोनों अधोबीच में हैं।
दो साल पहले खत्म हो गया कार्यकाल –
गौरतलब है कि जिला पंचायतों के अंतर्गत 763 ग्राम पंचायतों में विगत सात सालों से यही प्रधान जमे हैं। इसके बावजूद वह अधिकारों को छोड़ने को तैयार नहीं हैं जबकि दो वर्ष पहले इनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है।
चुनाव टलने से वर्ष 2019 में बनाई गई प्रशासकीय समिति के प्रधान के रूप में दो वर्षों से यह मस्ती छान रहे हैं। एक बार फिर उन्हें पुनः वित्तीय अधिकार मिले तो वह भी अब पुनः छीन लिए गए हैं। वहीं कई सचिवों के पंचायतों में जमे होने से विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं।