पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क के लिए भूमि अधिग्रहण पर किसानों का विरोध, मुआवजे में असमानता को लेकर नाराजगी


1110.6 करोड़ की लागत से बनने वाले पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क के लिए 255 एकड़ जमीन का अधिग्रहण। किसानों ने मुआवजा नीति में भेदभाव का आरोप लगाया है।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क, किसान कर रहे जमीन अधिग्रहण में भेदभाव की शिकायत

धार ज़िले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क (MMLP) का निर्माण तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इस परियोजना के तहत 255 एकड़ निजी भूमि का अधिग्रहण किया गया है। सरकार ने इसके लिए 1110.6 करोड़ रुपए का निवेश निर्धारित किया है। राज्य सरकार और एमपीआईडीसी (मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) द्वारा इस परियोजना को तीव्र गति से पूरा करने के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क को लेकर किसानों ने मुआवजा नीति पर सवाल उठाए हैं। इस भूमि अधिग्रहण ने स्थानीय किसानों के बीच भारी असंतोष पैदा कर दिया है। किसानों का कहना है कि उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है। ग्राम जामोदी के 85 किसानों को स्पेशल पैकेज के तहत 30 करोड़ रुपए से अधिक की राशि मंजूर की गई थी, लेकिन किसानों का दावा है कि यह राशि अभी तक उन्हें नहीं मिली है।

किसानों का विरोध और प्रशासन की कार्रवाई

पीथमपुर के सेक्टर 1 में जब प्रशासनिक दल सोमवार सुबह जमीन अधिग्रहण के लिए पहुँचा, तो किसानों ने विरोध किया। प्रशासनिक अधिकारियों ने पुलिस बल के साथ पहुँचकर भूमि पर कब्जा लिया और वहां के खेतों को समतल करने के लिए 5 बुलडोजर लगाए गए। किसानों का आरोप है कि प्रशासन ने उनकी सहमति के बिना उनकी उपजाऊ जमीनें जबरदस्ती अधिग्रहित कर ली हैं। इसके विरोध में किसानों ने अपने परिवार के सदस्यों को खेतों में बैठा दिया और प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया।

विरोध के दौरान कई किसानों को पुलिस ने हिरासत में लिया। किसानों ने आरोप लगाया कि प्रशासन द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और विरोध करने पर उन्हें गुंडा एक्ट 151 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा है। कुछ किसानों ने दावा किया कि उन्हें पाँच दिनों तक हिरासत में रखा गया और जमानत भी नहीं दी गई।

पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क के लिेए जमीन अधिग्रहण का काम जारी है।
पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क के लिेए जमीन अधिग्रहण का काम जारी है।

मुआवजे को लेकर किसानों की नाराजगी

किसानों का कहना है कि उनकी जमीन के लिए शासन ने 80 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा तय किया है, जबकि किसानों की मांग 1 करोड़ रुपए प्रति हेक्टेयर की है। इस मामले को लेकर किसानों ने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की है, जिसकी सुनवाई 2 दिसंबर को होने वाली है। इसके बावजूद, प्रशासन ने बिना किसी सुनवाई के भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी रखी है।

किसानों का यह भी आरोप है कि प्रशासन ने उनके खेतों में खड़ी फसलें नष्ट कर दी हैं और बिना मुआवजा दिए जमीन कब्जा कर ली गई है। किसानों का कहना है कि इस अधिग्रहण से उनकी आजीविका बुरी तरह प्रभावित हो रही है और सरकार उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है।

 

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पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क का महत्व और लाभ

मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क का निर्माण पीथमपुर के औद्योगिक क्षेत्र में किया जा रहा है, जो देश के महत्वपूर्ण औद्योगिक हब में से एक है। यह पार्क इंदौर-टीही-दाहोद रेल लाइन और प्रस्तावित महू रिंग रोड के नजदीक स्थित है, जिससे इसकी भौगोलिक स्थिति व्यापार और परिवहन के लिए अत्यधिक फायदेमंद है।

पीथमपुर लॉजिस्टिक पार्क का डिजाइन

इस परियोजना के पूरा होने से परिवहन लागत में 20% तक की कमी आने की उम्मीद है और देश के चारों दिशाओं में माल ढुलाई आसान हो जाएगी। इंदौर एयरपोर्ट से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह पार्क माल ढुलाई के लिए रेलवे और सड़क दोनों माध्यमों से जुड़ा होगा। इसके तहत 10 किलोमीटर का रेलवे ट्रैक और 80 मीटर चौड़ी सड़क भी बनाई जा रही है।

 

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किसानों के लिए मुआवजा स्थिति: भूमि अधिग्रहण का विवरण

ग्राम का नाम कुल रकबा (हेक्टेयर) अवार्ड जारी करने की तिथि
जामोदी 63.581 30-09-2024
खेड़ा 23.397 03-10-2023
अकोलिया 0.190 25-09-2023
सागौर 3.000 25-09-2023
कुल निजी भूमि 90.168
शासकीय भूमि (पूर्व में आवंटित) 22.432
महायोग 112.60

बच्चों और परिवारों का संघर्ष

इस भूमि अधिग्रहण के कारण स्थानीय किसान परिवारों में भारी निराशा और असंतोष है। कई बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए। महिलाओं और बुजुर्गों ने भी अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष किया। उनका कहना है कि सरकार उनकी पुश्तैनी जमीन छीन रही है और उनकी रोजी-रोटी पर संकट खड़ा कर रही है।

विकास बनाम किसानों के अधिकार

विकास की आड़ में किसानों की आवाज को दबाने के आरोपों के बीच सरकार इस परियोजना को तेजी से पूरा करने में जुटी है। सरकार का दावा है कि यह परियोजना क्षेत्र की औद्योगिक प्रगति में मील का पत्थर साबित होगी और इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हालांकि, दूसरी ओर किसान अपने अधिकारों और जमीन की सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। इस समय किसानों और प्रशासन के बीच टकराव चरम पर है। जहां एक ओर सरकार आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर किसानों की आवाज और उनके अधिकारों की अनदेखी की जा रही है। अब सबकी नजरें आगामी 2 दिसंबर को होने वाली हाईकोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जो इस विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभा सकती है।

 



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