मध्यप्रदेश में रबी सीजन की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन किसानों को अब भी डीएपी और एनपीके खाद के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जिले के अधिकांश सहकारी समितियों में खाद का स्टॉक खत्म हो चुका है, जिसके चलते किसान नगद वितरण केंद्रों और निजी दुकानों पर कतार में लगकर खाद खरीदने को मजबूर हैं। जमीन स्तर पर खाद की किल्लत है और प्रशासन की ओर से पर्याप्त स्टॉक होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
किसानों की समस्या: खाद की भारी किल्लत
धार जिले के किसानों की शिकायत है कि रबी सीजन की बोवनी के लिए जरूरी डीएपी और एनपीके खाद समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। प्रशासन का दावा है कि पर्याप्त मात्रा में खाद मौजूद है, लेकिन सहकारी समितियों के गोदाम खाली पड़े हैं। किसानों का कहना है कि बाजार में मिलने वाला खाद भी ऊंची कीमतों पर बेचा जा रहा है।
गांव से शहर की ओर दौड़ लगा रहे किसान
खाद के लिए परेशान किसान गांवों से शहर तक दौड़-भाग कर रहे हैं। किसान रतनलाल यादव बताते हैं कि जिले की 94 सहकारी समितियों में यूरिया तो मिल रहा है, लेकिन डीएपी और एनपीके की भारी कमी है। कुछ समितियों में यह खाद केवल पंजीकृत किसानों को ही मिल रहा है, जबकि अन्य किसान नगद वितरण केंद्रों पर सुबह से कतार में खड़े हैं। धार, बदनावर, तिरला और सरदारपुर जैसे इलाकों में डीएपी की मांग अधिक होने के कारण यहां आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है।
बोवनी के लिए 5 लाख हेक्टेयर भूमि तैयार
जिले में रबी सीजन के दौरान 5 लाख हेक्टेयर भूमि पर बोवनी की जा रही है, जिसमें 3.2 लाख हेक्टेयर में गेहूं, 65 हजार हेक्टेयर में चना और 10 हजार हेक्टेयर में मक्का बोने का लक्ष्य है। इन फसलों के लिए डीएपी और एनपीके खाद की जरूरत होती है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने के कारण किसान चिंतित हैं।
नकली कीटनाशक बनी एक और मुसीबत
डीएपी और एनपीके खाद के अभाव में नकली खाद की बिक्री भी बढ़ गई है। किसानों का कहना है कि पिछले साल सोयाबीन की बोवनी के दौरान भी नकली खाद बेचा गया था, जिस पर कार्रवाई करते हुए पंजाब में एफआईआर दर्ज हुई थी। अब, वही समस्या फिर से सामने आ रही है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं?
राजनीतिक खेल: जहां चुनाव, वहां पर्याप्त खाद
प्रदेश में जहां विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं, उन क्षेत्रों में खाद की आपूर्ति सामान्य है।
किसान राहुल भाकर ने आरोप लगाया कि चुनावी क्षेत्रों में राज्य सरकार द्वारा खाद की आपूर्ति ठीक की जा रही है, जबकि अन्य जगहों पर किसान परेशान हैं। किसानों का कहना है कि यदि गेहूं की बोवनी के बाद खाद मिले, तो उसका कोई उपयोग नहीं रहेगा।
केंद्रों पर लंबी कतारें, किसान बेहाल
शहर के घोड़ा चौपाटी स्थित मार्कफेड के नकद काउंटर पर किसानों की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं।
किसान कमलकिशोर यादव ने बताया कि गोदाम से समय पर खाद नहीं पहुंचने के कारण उन्हें दिनभर इंतजार करना पड़ता है। अगर प्रशासन समय पर खाद की आपूर्ति सुनिश्चित करे, तो किसानों की परेशानी कम हो सकती है।
खाद की किल्लत ही है सच्चाई…
मध्यप्रदेश में रबी सीजन की बोवनी के समय खाद की किल्लत किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। प्रशासनिक दावों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। अगर समय पर इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो प्रदेश के किसानों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।