धार। कृषि उपज मंडी धार में इन दिनों ईमानदार सचिव के आने से व्यवस्थाएं नियमों में लाई जा रही हैं। इसका असर उन कर्मचारियों पर पड़ा है, जिनके नाम से अब तक पूरी मंडी का साम्राज्य चलता है।
ईमानदार अधिकारी की सख्त कार्यप्रणाली के कारण कर्मचारियों को जब सेवा नियम की याद दिलाई गई तो कर्मचारी वर्ग नाराज हो गए और प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए प्रशासन की शरण में पहुंच गए।
इतना ही नहीं मंडी सचिव के खिलाफ ही प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए मंडी के भारसाधक अधिकारी के नाम पर ज्ञापन दे आए। अब देखना यह है कि क्या मंडी में कर्मचारियों का सिंडीकेट खत्म होता है या फिर ईमानदार अधिकारी पर दबाव बनाने में एक बार फिर कर्मचारियों का सिंडीकेट सफल रहता है।
बात करें मंडी कर्मचारियों की तो हर साल सीजन में सिर फुटव्वल वाली स्थिति बनने और मंडी में अतिक्रमण को बढ़ावा देने का काम अब तक कर्मचारियों के सिंडीकेट से खूब फला-फूला है।
मंडी की भारसाधक अधिकारी और धार एसडीएम दीपाश्री गुप्ता ने पहली बार अतिक्रमण की जानकारी मिलने पर तत्काल कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण हटवाया था।
इसके बाद एसडीएम धार ने सभी अतिक्रमणधारियों को नोटिस भी जारी किए, लेकिन कर्मचारियों के सिंडीकेट ने दबाव बनाकर व्यापारियों को आगे किया और फिर मंडी को अतिक्रमणमुक्त होने से बचा लिया। मुहिम खत्म हुई तो मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।
नए सचिव केके नरगावे के आने के बाद जब एक-एक कर्मचारी के पास जो आधा दर्जन से अधिक शाखाओं के प्रभार थे, उनमें फेरबदल करने के आदेश जारी हुए। यही कारण था कि कर्मचारियों को अपनी हुकूमत हिलती नजर आई और उन्होंने सचिव का विरोध करते हुए ज्ञापन सौंप दिया।
यह है ज्ञापन :
मंडी कर्मचारियों ने एकमत होकर सोमवार को एसडीएम और भारसाधक अधिकारी के नाम एक ज्ञापन सौंपा जिसमें मंडी स्टाफ में शामिल महिला कर्मचारियों की ड्यूटी लगाने और अवकाश के दिन बुलाने के नाम पर प्रताडि़त करने का आरोप लगाया है।
क्रय सामग्री वक्त पर खरीदी नहीं करने की भी शिकायत की गई है। वेतन सहित अन्य सुविधाओं की अनदेखी करने के आरोप सचिव पर लगाए गए हैं। शासकीय बैठकों में शामिल नहीं होने व जानकारी उपलब्ध नहीं करवाने की बात कहते हुए कार्रवाई की बात कही है।
जिनकी ड्यूटी वे निभा लें तो सुधर जाएंगे हालात :
बात करें मंडी की व्यवस्थाओं की तो जिनके जिम्मे मंडी में व्यवस्थाएं सुधारने की जिम्मेदारी है, वे ही यदि अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभा लें तो मंडी की व्यवस्थाएं काफी हद तक सुधर जाएंगी।
मंडी की सुरक्षा में तैनात मंडी निरीक्षकों द्वारा बीते कई सालों से एक भी बगैर बिल्टी के निकलने वाले अनाज के ट्रकों पर कार्रवाई नहीं की गई है और न ही मंडी में होने वाले असामाजिक गतिविधियों को रोकने के लिए कोई कार्रवाई अब तक की है जबकि मंडी की सुरक्षा की अहम जिम्मेदारी इनके पास होती है।
सीजन के दौरान भी मंडी में व्यवस्था बनाने का काम सिर्फ प्राइवेट सुरक्षा गार्ड ही निभाते नजर आते हैं जबकि मंडी निरीक्षक गेट से लेकर मंडी परिसर तक में नजर नहीं आते है और न ही व्यवस्था बनाते नजर आते हैं।
मंडी कार्यालय की व्यवस्था सुधरने का डर :
इस ज्ञापन के पीछे का सच सूत्र बताते हैं कि मंडी कार्यालय में नए सचिव के आने से लंबे समय से एक ही शाखा का प्रभार संभालने वाले बाबुओं को अपने पावर छिन जाने का डर सताने लगा है।
व्यवस्था में सुधार होता है तो कई बाबुओं के अधिकार छिन जाएंगे और उन अधिकारों से होने वाली कुर्सी के नीचे की आय भी खत्म हो जाएगी। यहीं कारण है जो कर्मचारियों को सचिव के खिलाफ खड़ा कर रहा है।
इसके पहले भी कई सचिव आए हैं, लेकिन वे हर काम में बाबुओं को बढ़ावा देने में लगे रहे, जिसके कारण व्यवस्थाओं को बदलने की कभी नौबत नहीं आई। अब व्यवस्था सुधारने की कोशिश हुई है तो कर्मचारी विरोध में उतर आए हैं।
विरोध के पीछे के कई कारण :
सूत्र बताते हैं कि इस विरोध के पीछे के कई कारण है। कार्यालय में व्यवस्था बदलाव के कारण बाबुओं के काले चिट्ठे सामने आने की आशंका है। इसकी शिकायतें कई बार भोपाल मंडी कार्यालय तक पहुंची हैं, लेकिन हर बार मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
मंडी परिसर में सामग्री खरीदी से लेकर, रिपेयरिंग, संसाधन और आउटसोर्स पर कर्मचारी रखने और वेतन भुगतान करवाने के नाम पर कई अनियिमितता के दस्तावेज इस रिपोर्टर को उपलब्ध करवाने के दावे किए हैं।
यदि यह दस्तावेज सार्वजनिक स्तर पर मीडिया के समक्ष आते हैं तो इस पूरे विरोध की हवा निकलकर बाबुओं की वाइट कॉलर काली हो सकती है। इतना ही नहीं कईयों को जेल यात्रा पर भी जाना पड़ सकता है।
इधर इस मामले में मंडी सचिव केके नरगावे ने बताया कि
प्रताड़ित करने जैसी बात नहीं है। नियमानुसार कार्य विभाजन होता है जिसका जो काम है वह करना होता है। इसी कारण यह आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं।