समर्थन मूल्य पर सोयाबीन खरीदी में किसानों की रुचि कम, अब तक 820 क्विंटल की खरीद


कई किसान सरकार द्वारा तय एमएसपी पर फसल बेचने के बजाय अपनी उपज को 2-3 महीने तक भंडारण करने की योजना बना रहे हैं।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Updated On :

मध्य प्रदेश में इस साल पहली बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सोयाबीन खरीदी की जा रही है। इसके बावजूद किसान इस योजना में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। 25 अक्टूबर से प्रदेशभर में सोयाबीन खरीदी शुरू हो चुकी है, लेकिन धार जिले के 10 उपार्जन केंद्रों में से केवल 3 केंद्रों पर ही अब तक 37 किसानों ने अपनी फसल बेची है। कुल 820 क्विंटल सोयाबीन की खरीदी हुई है, जबकि 7,000 से अधिक किसानों ने पंजीयन कराया था।

सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, लेकिन किसानों को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में बाजार में कीमतें इससे अधिक होंगी। इसी उम्मीद में किसान अपनी फसल को बेचने के बजाय भंडारण करने पर जोर दे रहे हैं।

सोयाबीन की बुवाई और उत्पादन

इस साल धार जिले में 3 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई की गई थी। किसानों ने इस फसल पर भरोसा जताया, लेकिन उत्पादन लागत बढ़ने और मंडी में भाव घटने से वे परेशान हैं। जिले में इस बार मौसम के उतार-चढ़ाव, जैसे कटाई के समय बारिश, ने फसल की गुणवत्ता पर असर डाला है।

कई किसान सरकार द्वारा तय एमएसपी पर फसल बेचने के बजाय अपनी उपज को 2-3 महीने तक भंडारण करने की योजना बना रहे हैं। मौजूदा समय में मंडियों में सोयाबीन की औसत कीमत करीब 5,000 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही है, जबकि बीज क्वालिटी की सोयाबीन के लिए कीमत 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है।

सरकारी खरीदी में रुचि क्यों कम?

सरकारी उपार्जन केंद्रों पर किसानों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि खरीदी प्रक्रिया में समय बर्बाद होता है और उपज का वजन घटने जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इसके अलावा, भुगतान में देरी भी किसानों की हताशा का एक बड़ा कारण है।

किसानों का कहना है कि समर्थन मूल्य पर उपज बेचने की तुलना में मंडियों में फसल बेचना अधिक आसान और सुविधाजनक है।

सोयाबीन की कीमतें बढ़ने की संभावना

किसानों को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में सोयाबीन की कीमतें एमएसपी से ऊपर जाएंगी। इसके पीछे कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कारण हैं:

  1. अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति पर असर:
    ब्राज़ील में बाढ़ और अमेरिका में सोयाबीन तेल की बढ़ती मांग ने वैश्विक आपूर्ति को प्रभावित किया है। डियोइल्ड केक (डीओसी) और अन्य सोयाबीन उत्पादों की मांग बढ़ने से कीमतों में इजाफा होने की संभावना है।
  2. घरेलू बाजार की मांग:
    भारत में त्योहारी और शादी के सीजन के बाद सोयाबीन उत्पादों की मांग में तेजी देखी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी 2025 तक सोयाबीन की कीमतें ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी।

 

सरकार का प्रयास और किसानों की प्रतिक्रिया

सरकार ने इस बार उपार्जन केंद्रों पर व्यवस्था के लिए लाखों रुपये खर्च किए हैं। लेकिन किसानों में इसका सकारात्मक असर नहीं दिखा। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर किसानों को समर्थन मूल्य पर फसल बेचने के लिए बेहतर सुविधाएं और समय पर भुगतान मिले, तो उनकी रुचि बढ़ सकती है। कुल मिलाकर, सोयाबीन के बेहतर दाम की उम्मीद ने किसानों को सरकारी खरीदी से दूर कर दिया है। अब देखना होगा कि सरकार कैसे इस स्थिति को संभालती है और किसानों को एमएसपी योजना से जोड़ने में सफल होती है।



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