सोयाबीन को पहले पानी नहीं मिला और फिर जब बारिश हुई तो खेतों में पानी भर गया, धार जिले में काफी नुकसान
किसानों को उम्मीद थी कि इस वर्ष सोयाबीन का बेहतर उत्पादन होगा, लेकिन उम्मीद से कम सोयाबीन निकलने से किसानों में मायूसी है। किसानों का कहना है कि जिस समय सोयाबीन को पानी चाहिए था, उस समय वर्षा नहीं हुई। इससे सोयाबीन जल्दी सूख गई और दाने छोटे रहने के साथ ही दागी हो गए। जब कुछ दिन बाद वर्षा हुई तो सूखी हुई सोयाबीन की फसलों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। इस कारण लगभग 40 से 50 प्रतिशत सोयाबीन के दाने दागी एवं काले पड़ गए हैं, जिससे किसानों को नुकसान झेलना पड़ा है। इन दिनों सोयाबीन कटाई का काम पूरा हो गया। कुछ किसानों द्वारा खेतों की अगली फसल बोने की तैयार की जा रही है।
बारिश कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ा: इस बार मौसम अनुकूल रहने के बाद भी किसानों ने पिछले साल के मुकाबले इस बार सोयाबीन की बुआई ज्यादा रकबे में की थी। इस बार धार जिले में 2 लाख 90 हजार हेक्टेयर मैं बोवनी की गई थी। मौसम ने किसानों का साथ दिया। इससे किसानों को उम्मीद थी कि इस साल फसल अच्छी होगी शुरुआती बारिश के बाद लंबी खेंच के कारण जिले के कई क्षेत्रों में फसल में अफलन, पीला मोजेक सहित कीड़े लगने की बीमारी और फिर अति वर्षा से भी सोयाबीन को नुकसान पहुंचा है। जुलाई माह के अंत से बारिश की लंबी खेंच ने सबसे ज्यादा असर सोयाबीन फसल पर डाला। जब फसल पक कर तैयार होने लगी तो सितंबर में बार-बार रुक-रुककर हुई बारिश ने खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाया।
उत्पादन 50 प्रतिशत कम हुआः किसान लाखन डोडिया का कहना है कि इस वर्ष सोयाबीन फसल से किसान काफी हद तक नुकसान में है। जब फसल में पानी की आवश्यकता थी, तब वर्षा नहीं हुई और जब सोयाबीन सूखने को आ गई, तब बहुत अधिक वर्षा हुई, जिससे कई खेतों में तालाब की तरह लबालब पानी भर गया। वे कहते हैं कि प्रति बीघा चार से पांच क्विंटल निकलना चाहिए था, लेकिन ढाई से तीन क्विंटल ही सोयाबीन की पकत हुई है। इससे करीब 50 प्रतिशत उत्पादन कम बैठा है।
प्रति बीघा 2 क्विंटल कम उत्पादन हुआः किसान पप्पू लववंशी ने कहा कि उनका सात बीघा का खेत है। अतिवृष्टि के कारण खेतों में पानी भर गया था। इस कारण प्रति बीघा तीन क्विंटल ही पकत हो पाई है। लववंशी का कहना है कि सोयाबीन बोने से लेकर कटाई एवं निकलाई का खर्चा ज्यादा हो जाता है। इसमें ट्रैक्टर का भाड़ा, बीज, दवाइयां, खाद, फसल काटने की मजदूरी तक और निकालने की मजदूरी व थ्रेशर का खर्चा ज्यादा हो गया है। इस बार सोयाबीन की फसल ने किसानों की कमर तोड़ दी है। सोयाबीन के भाव भी अच्छे नहीं है। दागी सोयाबीन के उचित दाम भी नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में इस वर्ष तो किसानों को नुकसान ही हुआ है।