150 मीटर की अड़चन में अटका 204 किमी लंबा इंदौर-दाहोद रेल प्रोजेक्ट, आदिवासी अंचल की उम्मीदें अधर में


इंदौर-दाहोद रेल लाइन परियोजना एक किसान की 150 मीटर जमीन और खरमोर अभयारण्य की बाधा में उलझी। जानिए प्रोजेक्ट की प्रगति और चुनौतियां।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Updated On :

मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल को रेल नेटवर्क से जोड़ने वाला बहुप्रतीक्षित इंदौर-दाहोद रेल लाइन प्रोजेक्ट अब महज 150 मीटर जमीन के विवाद में अटक गया है। 204.76 किलोमीटर लंबी यह परियोजना पिछले कई वर्षों से निर्माणाधीन है, लेकिन धार जिले के एकलदुना गांव में एक किसान की जमीन अधिग्रहण को लेकर आपत्ति ने पूरे प्रोजेक्ट की गति पर ब्रेक लगा दिया है।

 

कहां अटका है प्रोजेक्ट?

रेलवे विभाग ने सागौर-गुनावद रेलखंड के बीच की अधिकांश लाइन बिछा दी है। लेकिन एकलदुना गांव के किसान विक्रम सिंह लाड की 150 मीटर जमीन अधिग्रहण में सहमति नहीं बनने के कारण रेल लाइन बिछ नहीं पाई है। रेलवे इस जमीन को सीधी क्रय नीति के तहत खरीदने को तैयार है, लेकिन किसान इसके लिए तैयार नहीं हो रहे। अफसरों के अनुसार बातचीत अंतिम चरण में है और समाधान की उम्मीद है।

प्रोजेक्ट की प्रगति

  • 204.76 किमी लंबा यह प्रोजेक्ट 2008 में स्वीकृत हुआ था और 2013 में काम शुरू हुआ था।
  • इसमें से 21 किमी गुजरात में और 183.76 किमी मध्यप्रदेश में है।
  • अब तक इंदौर से टीही तक 21 किमी और दाहोद से कठवाड़ा तक 16 किमी लाइन बिछ चुकी है।
  • कुल 331 पुल (41 बड़े और 290 छोटे) और 32 स्टेशन प्रस्तावित हैं।
  • रेलवे का लक्ष्य है कि मार्च 2025 तक इंदौर-धार सेक्शन में ट्रेन चलाई जा सके।

 

खरमोर अभयारण्य बना दूसरा बड़ा रोड़ा

इस परियोजना को दूसरी बड़ी बाधा धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र में मिल रही है। यहां खरमोर पक्षी अभयारण्य के कारण रेल लाइन का काम अटका हुआ है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अब तक जरूरी स्वीकृति नहीं मिली है। इस कारण झाबुआ और सरदारपुर के बीच का सेक्शन भी अटका है।

सरकार ने समाधान के लिए रेल लाइन को बायपास कराने की योजना बनाई है, लेकिन यह 8 किमी अतिरिक्त लाइन बनवानी होगी जिससे प्रोजेक्ट की लागत करीब 200 करोड़ बढ़ेगी। पहले जहां इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 2000 करोड़ थी, अब यह बढ़कर 6500 करोड़ रुपए तक जा सकती है।

 

आदिवासी अंचल की आशाएं

यह प्रोजेक्ट धार, झाबुआ, अलीराजपुर जैसे आदिवासी बहुल जिलों के विकास की नई राह खोल सकता है। नए स्टेशन और बेहतर कनेक्टिविटी से व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में व्यापक सुधार की उम्मीद है। सोगार, गुनावद, नौगांव, झाबुआ, पिटोल में स्टेशन निर्माण तेजी से चल रहा है। लेकिन जब तक जमीन और पर्यावरणीय स्वीकृतियों की बाधाएं दूर नहीं होतीं, आदिवासी अंचल की रेल से जुड़ने की आकांक्षा अधूरी ही बनी रहेगी।

 

प्रोजेक्ट एक नजर में:

  • स्वीकृति वर्ष: 2008
  • कार्य प्रारंभ: 2013
  • कुल लंबाई: 204.76 किमी
  • रेलवे स्टेशन: 32 प्रस्तावित
  • पुल: 331 (41 बड़े, 290 छोटे)
  • लागत: 2000 करोड़ से बढ़कर 6500 करोड़ अनुमानित
  • लक्ष्य पूर्णता: वर्ष 2027

 



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