धार। केन्द्र सरकार की नरेगा योजना में न्यूनतम मजदूरी ने धार जिले में योजना के क्रियान्वयन में दिक्कतें खड़ी कर दी है।
नरेगा के तहत होने वाले कामों को जनपद और पंचायतें क्रियान्वित तो कर रहे हैं, किंतु हकीकत यह है कि नरेगा में मजदूर और मशीन दोनों की मदद से काम करवाया जा रहा है।
कागजों पर शत प्रतिशत मजदूरी आधारित काम दर्शाना पड़ रहा है। दरअसल इस तरह की स्थिति इसलिए निर्मित हो रही है कि महज 204 रुपये की प्रतिदिन की मजदूरी में 8 घंटे काम करना मजदूरों को वर्तमान की स्थिति में मुश्किल हो रहा है।
देश के अन्य राज्यों की तुलना में मप्र में सबसे कम नरेगा मजदूरी है। इस पर धार जिला मजदूर बाहुल्य जिला है। करीब 10 लाख के लगभग यहां पर मजदूर हैं, जिन्हें रोजगार की जिले में ही गारंटी होने के बावजूद कम मजदूरी के कारण दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है।
मजबूरी में हो रहे गलत काम –
न्यूनतम मजदूरी दर के कारण सिर्फ मजदूर ही परेशान नहीं हो रहे हैं। नरेगा के क्रियान्वयन में जनपद और पंचायत को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। नरेगा के तहत होने वाले कामों में जॉबकार्डधारियों को काम के लिए बुलाया जाता है।
अत्यधिक जरूरतमंद और क्षेत्र छोड़कर अन्यत्र काम करने के लिए ना जा पाने की स्थिति वाले मजदूर ही मजबूरी में काम कर रहे है। कार्य के तहत पूर्ण जॉबकार्डधारी उपलब्ध ना होने पर भी काम पूर्ण हो रहे हैं।
अलग-अलग जगह से जानकारी जुटाई गई तो यह बात सामने आई है कि जहां पूर्ण संख्या में मजदूर नहीं मिल रहे हैं वहां मशीनों और गैर जॉबकार्डधारियों से काम करवाया जा रहा है।
इनकी मजदूरी देने के लिए जॉबकार्डधारियों के मस्टर भरे जाते हैं और उनसे राशि लेकर मशीन और दूसरे मजदूरों को पैसा दिया जा रहा है।
प्रारंभिक दृष्टि से यह पूर्ण रूप से फर्जी तरीके से की जा रही प्रक्रिया है, किंतु नरेगा के क्रियान्वयन का दबाव, मजदूर ना मिलने की मजबूरी और मजदूर को सही मजदूरी ना मिलने की दिक्कतों ने इससे जुड़े लोगों को मजबूरी में गलत काम के लिए मजबूर कर दिया है।
फटकार का डर, कैसे बताएं मजदूर नहीं –
जिले में नरेगा के तहत होने वाले कार्यों में कभी मृतक के नाम पर मजदूरी राशि जारी करने, कभी काम नहीं किया और काम करना दर्शाते हुए मजदूरी निकाली, इस तरह की शिकायतें लगातार जिला प्रशासन के अधिकारियों के समक्ष आती है।
इन शिकायतों का दूसरा चेहरा ‘नीतिगत दिक्कतें’ हैं। जिले में जितने जॉबकार्ड बनाए गए है उनमें 30 प्रतिशत लोगों ने सिर्फ कार्ड बनवाए हैं, उन्हें काम की आवश्यकता ही नहीं है।
वहीं 70 प्रतिशत ऐसे मजदूर हैं जो काम तो करना चाहते हैं, लेकिन मजदूरी कम है। तमाम दिक्कतों के बीच जनपद पर नरेगा के काम करवाने का दबाव रहता है। वह पंचायतों को जिम्मेदारी सौंप देते हैं जिसके बाद पंचायत मजदूर ना मिलने पर नरेगा को क्रियान्वित करने में कई जोखिम उठाती है।
पहली बार बढ़े वह भी 7 रुपये –
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जिसे मनरेगा नाम दिया गया। बाद में इसे नरेगा कर दिया गया। इसके तहत एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूर रोजगार प्रदान करना और ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका सुरक्षा बढ़ाना उद्देश्य था।
197 रुपये इसकी मजदूरी तय की गई थी। पिछले वर्ष कई वर्षों बाद इसकी मजदूरी दर बढ़ाकर 204 रुपये की गई है। महज 7 रुपये बढ़े हैं। इसकी तुलना में महंगाई सहित अन्य जरूरतों की चीजें डेढ़ गुना महंगी हो गई है।
हालत यह है कि धार जिले के हजारों मजदूर प्रभावित हो रहे हैं। उन्हें काम के लिए जिला छोड़कर दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है। वहां पर उन्हें प्रायवेट सेक्टर में डेढ़ से दो गुना मजदूरी ज्यादा मिल रही है।
हालात यह हैं कि सिर्फ गुजरात और महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि केरल, कर्नाटक तक धार के मजदूर काम करने के लिए जा रहे हैं।
25 हजार को आज भी काम –
नरेगा के क्रियान्वयन में आ रही दिक्कतों को लेकर शासन स्तरीय नीति परिवर्तन या नीति निर्धारण की आवश्यकता है जिसमें नरेगा की मजदूरी बढ़ाना सबसे महत्वपूर्ण विषय है।
इसमें जॉबकार्डधारी मांग के अनुरुप ना मिलने पर अन्य साधनों के उपयोग की छूट मिलना जरूरी है अन्यथा योजना की सफलता दर्शाने और क्रियान्वयन के चक्कर में कई पंचायतकर्मी मजदूर ना मिलने की मजबूरी में काम कराने के लिए कई दांव-पेंच करते रहेंगे, जिसमें निर्दोष होने के बाद भी गलत काम के दोषी माने जाएंगे।
वर्तमान में जिले में अभी भी 25 से 30 हजार मजदूर नरेगा के तहत प्रचलित कार्यों में काम कर रहे हैं। एक-एक साईट की मॉनिटरिंग की जाए तो दिक्कतें नजर आएगी।