जाते-जाते मानसून ने किसानों के चेहरे पर मुस्कान ला दी है, जिससे इस वर्ष गेहूं का रकबा बढ़ने की संभावना है। पर्याप्त बारिश के बाद किसान गेहूं की बोवनी और खेत तैयार करने में जुट गए हैं। इस बार रबी सीजन में किसान गेहूं और लहसुन की फसल की ओर अधिक रुचि दिखा रहे हैं। किसानों ने अपने खेतों को अच्छी तरह तैयार कर लिया है और कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन कर रहे हैं।
क्षेत्र में बढ़ी गेहूं की बोवनी
इस बार लगातार बारिश की वजह से बोवनी का समय थोड़ा विलंबित हो गया था, लेकिन अब खेतों में नमी होने के कारण 1 लाख 7 हजार हेक्टेयर में गेहूं की बोवनी पूरी हो चुकी है। किसान अब बिना सिंचाई के ही बीज बो रहे हैं, जो अंकुरित हो चुके हैं। जल्द ही पानी छोड़ा जाएगा ताकि फसल अच्छी तरह पनप सके।
फसल रकबा (हेक्टेयर)
खाद की मांग में वृद्धि
किसानों द्वारा गेहूं की बोवनी के समय एनपीके और डीएपी खाद की मांग तेजी से बढ़ी है। हालांकि सरकार द्वारा भरपूर प्रयासों के बावजूद खाद की किल्लत बनी हुई है। जिले के विभिन्न विकासखंडों में किसान खाद खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़े नजर आ रहे हैं। गेहूं की बोवनी के 12 से 15 दिन बाद यूरिया की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए किसान पहले से तैयारी कर रहे हैं।
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रबी फसलों की बोवनी में प्रगति:
कृषि विभाग के अनुसार, इस वर्ष अब तक 37% बोवनी का कार्य पूरा हो चुका है। किसानों ने बताया कि जो अगेती फसलें बोई गई थीं, उनकी निंदाई और गुड़ाई का कार्य जारी है।
खाद की समस्या:
किसान किशोर यादव का कहना है, “हमें इस समय डीएपी और एनपीके की सबसे ज्यादा जरूरत है, लेकिन सोसायटियों में पर्याप्त खाद उपलब्ध नहीं हो रहा है। लंबे इंतजार के बाद एनपीके खाद आया था, परंतु वह भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिला। जब फसल की जरूरत का खाद नहीं मिलेगा, तो खेती को लाभकारी व्यवसाय कैसे बनाएंगे?”
गेहूं और चने का बढ़ता रकबा:
इस बार अच्छी बारिश के चलते किसानों ने गेहूं और चने का रकबा बढ़ाया है। अब तक 1 लाख हेक्टेयर में गेहूं और 12 हजार हेक्टेयर में चने की बोवनी की जा चुकी है। उपसंचालक कृषि ज्ञानसिंह मोहनिया ने बताया कि इस वर्ष खाद की स्थिति बेहतर है और नियमित रूप से खाद की रैक जिले में आ रही हैं।
फसलों की बोवनी की प्रगति (रकबा हेक्टेयर में)
इस बार क्षेत्र में किसानों का रुझान गेहूं और लहसुन की फसल की ओर अधिक है, जो इस सीजन की अच्छी बारिश का परिणाम है। अब देखना यह है कि इन फसलों से किसान कितनी उपज प्राप्त कर पाते हैं।