मांडू के एक मकान में विलायती बहू के कारण नजर आने लगा फ्रांस


प्राकृतिक संसाधनों से बने इस मकान का काम लगभग 90 फ़ीसदी पूरा हो चुका है, जिससे पर्यटन नगरी मांडव के इस मकान में फ्रांस की झलक नजर आने लगी है। इस मकान में ना तो सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है और ना ही रेत आदि का। मारी के पति और नेशनल गाइड धीरज चौधरी के अनुसार दो हजार स्क्वायर फीट के प्लाट पर बनने वाले इस प्राकृतिक मकान का आने वाले दिनों में पर्यटक भी लाभ ले सकेंगे।


आशीष यादव
धार Updated On :
mandu-france-house

– सात समंदर पार से मांडव में ब्याही विलायती बहुरानी प्राकृतिक संसाधनों से बना रही अपने सपनों का आशियाना।

धार। लगभग 8 साल पहले सात समंदर पार से मध्यप्रदेश के मांडव में ब्याही फ्रांस की विलायती बहुरानी अब पर्यटक स्थल मांडव में भी फ्रांस दिखाने की कोशिश में लगी है। दरअसल फ्रांस में ज्यादातर मकान प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करके बनाए जाते हैं, जिससे वे हर मौसम के माकूल होते हैं। मतलब इन मकानों में ठंड में ठंड का और गर्मी में तपती धूप का असर कम होता है। इसी तकनीक का इस्तेमाल करके धार में ब्याही फ्रांस की मारी चौधरी अपने सपनों का आशियाना बना रही हैं।

प्राकृतिक संसाधनों से बने इस मकान का काम लगभग 90 फ़ीसदी पूरा हो चुका है, जिससे पर्यटन नगरी मांडव के इस मकान में फ्रांस की झलक नजर आने लगी है। इस मकान में ना तो सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है और ना ही रेत आदि का। मारी के पति और नेशनल गाइड धीरज चौधरी के अनुसार दो हजार स्क्वायर फीट के प्लाट पर बनने वाले इस प्राकृतिक मकान का आने वाले दिनों में पर्यटक भी लाभ ले सकेंगे।

क्षेत्र में पहला ऐसा है मकान जो प्रेरित कर रहा लोगों को प्रकृति से जुड़ना का –

पर्यटक नगरी माण्डू में यू तो कई पुराने महलों को आज भी देखा जाता है पर आज जो संस्कृति और पर्यावरण प्रेमियों की चाह रहती वैसे मकान का मिलना मुश्किल हो चुका है। आधुनिकता के साथ मकान बनाने के लिए भी सीमेंट केमिकलों का उपयोग कर रहे हैं जो कि हमारे पर्यावरण के साथ ही हमारी सेहत के अनुकूल नहीं हैं जो हजारों ऐसी बीमारियों को जन्म दे रही हैं। इसीलिए कहते हैं कि जमाना आधुनिक हो रहा है लेकिन इंसान की उम्र कम हो रही है। ऐसे ही पर्यटन नगरी माण्डू में लुप्त हो रही ऐसी तकनीक का मकान पर्यावरण प्रेमी माण्डू के धीरज चौधरी और उनकी पत्नी मारी चौधरी बना रहे हैं। मकान की खासियत यह है कि यह पुराने जमाने की तकनीक और पूर्णतः मिट्टी और चूने से बन रहा है।

न तो एसी जरूरत होगी न ही हीटर की –

मारी जब से माण्डू में आकर बसी है उसने हर जगह यहां पर सीमेंट कंक्रीट के मकानों को बनते देखा। तभी धीरज और मारी ने फैसला लिया कि हम माण्डू में अपना आशियाना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर बनाएंगे। जिससे न तो पर्यावरण को न ही प्रकति को नुकसान पहुचेगा। इसके लिए दोनों ने फ्रांस में छुट्टियों में जाकर कई नैचरल बिल्डिंग प्रोजेक्ट विजिट किये ओर तकनीकों को समझा।

फिर भारत आकर यहां आर्किटेक्ट सत्येंद्र भगत ओर अनंत नारायण ने इस सपने को साकार करने में शामिल हुए। धीरज और मारी पिछले दो साल से अपने मकान को पूरा करने में लगे रहे, जिसे देखने के लिए आसपास व अन्य प्रदेशों के पर्यटक भी आते हैं। इन्हें खुशी है कि हमारे मकान को देखकर लोग प्रेरित होंगे और इस प्रकार से अपने मकान को बनाकर पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा करेंगे।

इन प्राकृतिक संसाधनों से बन रहे मकान –

अपने प्रोजेक्ट के आसपास से ही लाल मिट्टी और काली मिट्टी का सैंपल लेकर मिट्टी का परीक्षण कर के उसे दीवारों ओर प्लास्टर करवा कर भूसा ओर चुरी मिलाकर उसे उपयोग लिया। वहीं जहां पर पानी का उपयोग ज्यादा उस जगह पर टाइलों ओर पत्थर की जगह बाथरूम ओर अन्य हिस्सों में चूने का जापानी प्लास्टर किया जिसे टेडलेक्ट कहते हैं, जो पूरी तरह वाटरप्रूफ होता है।

अधिकतम लाल मिट्टी को गूंध कर बनाई गई दीवार जिसे कोब वाल कहा जाता है। वहीं मकान में लगी लकड़ियां भी पुरानी इमारतों से निकली लकड़ियों से दरवाजे-खिड़की ओर चौखट का निर्माण करवाया गया है। खिड़की-दरवाजों को सुरक्षित रखने के लिए काजू शेल का तेल और अलसी के तेल को मिलाकर लगाया गया है जिससे सालो-साल लकड़ियों में दीमक ओर कीट लगने से बचाये रखेगा। दीवारों के साथ साथ छत में भी लकड़ियों का उपयोग कर प्राकृतिक संसाधन को छत में भरके उस पर देशी कवेलू (नलिये) रखेंगे जिससे घर मे दीवारों के साथ-साथ छत भी ठंडक बनाए रखेगी।

नहीं होगा टीवी और एसी –

बदलते जमाने के साथ मानसिक शांति और शारीरिक बीमारियों को जन्म देने वाली टीवी और एसी दोनों इस मकान की डिक्शनरी से बाहर हैं। मारी का मानना है कि प्रकृति के द्वारा दी गयी हवा शरीर को शक्ति प्रदान करती है और ज्यादा टीवी देखने से मानसिक संतुलन ठीक नहीं होता इसलिए धीरज ओर मारी ने इन दोनों उपकरणों के लिए घर मे कोई व्यवस्था नहीं दी।

लोगों को अपनी ओर खींच रहा यह घर –

माण्डू के सुंदर से एक कोने में यह मकान अपने अंतिम स्वरूप में है लेकिन लोगों की उत्सुकता उन्हें वहां खींच ले जाती है। कई सारे लोग उसे देखने प्रतिदिन वहां पहुंचते हैं और इन्हें देखकर अचंभित हो जाते हैं कि मिट्टी से कैसे दोमंजिला बंगला बन सकता है। लेकिन, कई ऐसे लोग ओर वीआईपी हैं जो इस मकान को देखकर अपने खुद के आशियाने इस प्रकार से बनाने के सपने देखकर अपने आर्किटेक्ट लेकर इस मकान को विजिट कर रहे हैं।

इंदौर संभाग में पहला होगा ऐसा मकान –

आसपास के क्षेत्र में ऐसा पहला मकान है जो बिजली, पानी, किचन, फर्नीचर सर्वसुविधायुक्त होगा। 1500 सौ वर्गफ़ीट पर बन रहे इस मकान में एक हॉल, अमेरिकन किचन, चैर बेडरूम बालकनी, ओपन थियेटर के साथ मकान के बीचोंबीच एक छोटा सा गार्डन जिसमें दो बड़े पेड़ों को संजोकर रखा गया है।

लुप्त हो रही पुरातन संस्कृति को बनाए रखना है –

धीरज चौधरी ने बताया कि लुप्त होते जा रही संस्कृति को वापस से बनाए रखने के लिए आईडिया आया था। वहीं एमपी टूरिज्म भी इस मकान से प्रभावित होकर ट्राइबल टूरिज्म के लिए इस प्रकार के मकानों को बनाने की योजना ला रही है, जो होम स्टे के रूप में उपयोग में आएंगे।

नई पहल है – 

ऐसे प्रयासों को हम एप्रिशिएट करते हैं। साथ ही जिला प्रशासन भी व्यापक पैमाने पर मांडू प्रमोशन के लिए जुटा है। जल्द ही इस तरह की योजना क्षेत्र में प्रभावी होगी। – आलोक कुमार सिंह, कलेक्टर, धार

आगे के प्रोग्राम मे कर सकते हैं उपयोग – 

यह मारी का काफी सराहनीय प्रयास है। हम आपसी सहमति से अपने आगे के प्रोग्राम में इस मकान को मॉडल और पर्यटकों के रुकने के रूप में उपयोग कर सकते हैं। – प्रवीण शर्मा, प्रभारी अधिकारी, जिला पुरातत्व एवं पर्यटन परिषद


Related





Exit mobile version