शराब दुकान के चार ग्रुप बचे लेकिन रुचि नहीं दिखा रहे ठेकेदार, फिर होगी नीलामी की प्रक्रिया


एक अप्रैल से शराब की दुकानों का रिन्यू होना था, लेकिन शराब ठेकेदारों ने नई आबकारी नीति के विरोध में रिन्यू नहीं कराया।


DeshGaon
धार Published On :
dhar excise office

धार। शराब ठेकों को लेकर विभाग से लेकर ठेकेदारों मैं इस बार चिंता बनी हुई है क्योंकि इस बार चुनावी साल होने से ठेकेदार दुकान लेने में रुचि नहीं ले रहे हैं। कभी शराब ठेका लेने के लिए खरीदारों की लाइन लगती थी। अब ऐसा नहीं है।

सरकार की पॉलिसी के चलते अब शराब ठेकों का कारोबार घाटे का सौदा साबित हो रहा है। पहले 10 समूह की 88 शराब दुकानों को किसी ठेकेदार ने नहीं लिया था। खूब मान मनुहार के बावजूद ठेके नहीं बिके।

बाद में आबकारी 24 छोटे समूह बनाकर टेंडर भी बुलाए मगर उसके बाद भी इक्का-दुक्का दुकानें गई हैं। एक अप्रैल से शराब की दुकानों का रिन्यू होना था, लेकिन शराब ठेकेदारों ने नई आबकारी नीति के विरोध में रिन्यू नहीं कराया।

एक-एक दुकान के लिए आते थे कई आवेदन –

पहले शराब दुकान की लॉटरी जिसके नाम से निकलती थी। उसे बड़ा ही भाग्यशाली समझा जाता था। सरकार की नई आबकारी नीति के कारण ठेकेदार शराब की दुकानों में अब रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

कभी शराब की दुकानों के लिए बड़ी-बड़ी लाइनें लगती थीं, लेकिन अब विभाग में कर्मचारियों के अलावा गिने-चुने ठेकेदार ही दिख रहे हैं क्योंकि सरकार द्वारा हर 10 प्रतिशत बढ़ाकर दुकानें देना होता है।

हालांकि, इसबार कोई भी ठेकेदार इसमें रुचि नहीं दिखाई और धार जिले में लंबे समय बाद टेंडर प्रकिया से दुकानें आवंटित हो रही हैं।

अहाते हुए बंद तो सड़कों पर बढ़ेगा सिरदर्द –

सरकार द्वारा नई नीति के तहत अहाते बंद किए गए हैं जिससे सड़कों पर सिरदर्द बढ़ने की टेंशन है। अहातों में बैठकर शराब पीने वाले लोगों के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। हालांकि ब्रांडेड शराब के लिए बीयर बार होंगे।

आबकारी विभाग के अफसरों से लेकर अमला शराब ठेकेदारों को रोज समझा भी रहा है कि एक अप्रैल से अहाते नहीं चलेंगे इसलिए बंद करने की पूरी तैयारी कर लें।

अभी तक शहर में सड़कों पर खुलेआम व कारों में शराब पीने वालों की कमी नहीं है। आए दिन पुलिस अभियान भी चलाएगी तो भी पीने वाले पीना बंद नहीं करेंगे, लेकिन यह परेशानी आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है।

शराब की दुकानों के चार ग्रुप बचे हैं –

इन्हें ठेकेदार सस्ते में खरीदना चाहते हैं। उनकी मंशा है कि सरकारी बोली से कम कीमत पर ठेका उठाया जाए। चूंकि अधिकांश ग्रुप बड़े हैं जिसके चलते सभी बड़े ठेकेदार ही हाथ डाल सकते हैं जिसका वे फायदा उठा रहे हैं।

इधर, पिछले साल बड़े घाटे की वजह से भी कोई नहीं लेना चाह रहा है। जिले में बगदुन समूह, धामनोद समूह, कुक्षी समूह, डही समूह बचे हुए ग्रुप हैं।



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