धार। धार के लोकप्रिय मधुमेह व हदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक जैन के द्वारा कोरोना के मरीज़ों के इलाज के संबंध में किया गया पुनरावलोकन अध्ययन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा है।
मैनेजमेंट ऑफ मॉडरेट टू सीवियर कोविड-19 केसेस इन ए नॉन आईसीयू सेटिंग इन रूरल इंडिया शीर्षक पर केंद्रित अध्ययन का प्रकाशन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ मेडिकल एंड हेल्थ रिसर्च में हुआ है।
सितंबर 2020 से जनवरी 2021 में डॉ. अशोक जैन द्वारा क़रीब सौ से ज़्यादा कोरोना के मरीज़ों का इलाज किया गया था। इसमें से 46 मरीज़ मध्यम व गंभीर रूप से पीड़ित थे। इस शोध लेखन में डॉक्टर अमित शर्मा पैथोलॉजिस्ट धार का विशेष सहयोग रहा।
अध्ययन का मुख्य उद्देश्य था कि किस तरह से सीमित जांचों, सीमित संसाधनों से कोरोना के मरीज़ों की चिकित्सा बिना आईसीयू व बिना वेंटिलेटर के सफलतापूर्वक संभव है।
मरीज़ों की चिकित्सा पाटीदार चिकित्सा सेवा संस्थान के आइसोलेशन वार्ड में की गई। अध्ययन में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मानदंडों के अनुसार मध्यम व गंभीर श्रेणी के मरीज़ों को सम्मिलित किया गया, जिसका आधार- मरीज के लक्षण, भर्ती करते समय ऑक्सीजन पर्सेंट लेवल, एक्स-रे व सीटी स्कैन रिपोर्ट रहे।
इलाज में विशेष जांच जैसे ऐबीजी, आईएल-6, डी डायमर, सीरम फेरिटीन, एलडीएच जैसी महंगी व अनुपलब्ध जांचों पर न्यूनतम निर्भरता रही।
अध्ययन व चिकित्सा में मरीज़ों की सतत निगरानी व कोरोना के साथ लगी अन्य बीमारियों जैसे मधुमेह, ब्लड प्रेशर, किडनी डिसीज आदि के बेहतर नियंत्रण पर विशेष ध्यान दिया गया।
चिकित्सा व शोध में यह भी सामने आया कि बेहतर संवाद व कर्मचारियों के सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार से मरीज़ों में डर, डिप्रेशन व अकेलेपन की भावना को दूर कर उनमें बीमारी व इलाज के प्रति सकारात्मक रवैया उत्पन्न किया जा सकता है जो कि चिकित्सा व अच्छे परिणाम के लिए सहायक है।
चिकित्सा के दौरान मरीज के परिजनों को भी सावधानी के साथ मिलने दिया गया। साथ ही घर का भोजन भी उपलब्ध कराया गया।
अध्ययन के खास बिंदू –
- मरीजों की उम्र 32 से 92 वर्ष के मध्य।
- 30 से ज़्यादा मरीज़ों को दूसरी बीमारियां ख़ासकर डायबिटीज़, हाइपरटेंशन व किडनी संबंधी रोग थे।
- भर्ती करते वक्त उनका ऑक्सीजन लेवल बहुत कम 30% से अधिकतम 94% रहा।
- सीटी स्कैन में फेफड़ों के प्रभावित होने का प्रतिशत 25 या कम से 90% तक थी।
- सिर्फ़ उपलब्ध सुविधाओं व जांच में उनका इलाज किया।
- कुल 46 में से केवल दो मरीज़ दूसरी जगह (रेफ़र) किए गए। बाक़ी सभी 44 ठीक होकर घर गए।