आज के समय में मधुमेह की शिकायत समान्य हो चुकी है। इसका वजह है गलत खान-पान और गतिहीन दिनचर्चा। हर दिन बढ़ती सुविधाओं के वजह से अब हर चीज घर बैठे ही ही उपलब्ध हो जाती है। मोबाइल और ऑनलाइन गेम्स के वजह से बच्चे आउटडोर गेम्स नहीं खेलते हैं। ऐसे में हर उम्र के लोग डायबिटीज के चपेट में आ रहे हैं। विगत कुछ वर्षों में बदलती जीवनशैली तथा आधुनिक संसाधनों में टीवी, मोबाइल तथा प्रोसेस्ड फूड की उपलब्धता तथा अविकसित से विकासशील व फिर विकसित होता भारत चाहे अनचाहे मोटापे व मधुमेह की तरफ बढ़ता जा रहा है। मधुमेह यानी डायबिटीज व मोटापे ओबेसिटी का इतना गहरा संबंध है कि एक नया शब्द डायबीसिटी प्रचलन में आ गया है।
यह बात रविवार को पत्रकारवार्ता में जिले के प्रसिद्ध हार्ट व मधुमेेह रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक जैन ने कही। उन्होंने बताया जागरूकता से ही हम बच सकते हैं। एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में मोटे व्यक्ति को मधुमेह होने का जोखिम 80 गुना ज्यादा होता है। मोटापा इंसुलिन बनाने वाली पेन्क्रीयाज की बीटा सेल्ज को खराब करने व इंसुलिन की कार्यक्षमता में कमी के लिए जिम्मेदार है। मधुमेह ही की जकड़न में आम व्यक्ति के साथ साथ गर्भवती महिलाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है, आज क़रीब 10 प्रतिशत से ज़्यादा गर्भवती महिलाओं को गर्भ के दौरान मधुमेह की संभावना हो रही है और यह संभावना अन्य रिस्क फैक्टर जैसे अधिक उम्र में गर्भधारण, पिछला गर्भकालीन मधुमेह अधिक मोटापा व गर्भावस्था के दौरान अधिक वज़न बढ़ना शारीरिक निष्क्रियता या इंसुलिन रेजिस्टेंस की अन्य अवस्था होने पर मधुमेह की संभावना बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है।
गर्भावस्था के तीसरी तिमाही में सामान्यता इन्सुलिन प्रतिरोधी हार्मोन्स की अधिकता हो जाती है ,फलस्वरूप क़रीब 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में रक्त शुगर सामान्य से ज़्यादा हो जाता है व जेस्टेशनल डायबिटीज़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जो कि प्रसव पश्चात सामान्य तौर पर ठीक भी हो जाती है।
अनियंत्रित जेस्टेशनल डायबिटीज़ यानी महिला के रक्त में ग्लूकोज की अधिकता व फलस्वरूप बच्चे में भी रक्त शुगर की अधिकता से बच्चे में अधिक इंसुलिन का स्त्राव होता है जिससे बच्चे में अधिक प्रोटीन व फ़ैट का संचय हो जाता है और बच्चे का आकार व वज़न असामान्य रूप से बढ़ जाता है ,जो कि गर्भावस्था व सामान्य प्रसव मैं जटिलताएं उत्पन्न करता है।
लोगों में बढ़ने लगी जागरूकता: मधुमेह से बचाव के लिए अब लोगों में जागरूकता भी देखने को मिल रही है। पहले जहां लोग नियमित रूप से खाने में मीठा शामिल करते थे, वहीं अब रोज के भोजन से मीठा हटा लिया है और चाय भी फीकी पीने लगे हैं। ऐसा करने वालों में खासतौर पर उन परिवारों के लोग शामिल हैं, जिनके परिवार में मधुमेह का कोई न कोई मरीज है। डाक्टरों का कहना है कि यदि कम उम्र में ही मोटापे को नियंत्रित कर लिया जाए, तो मधुमेह सहित अन्य बीमारियों से बचा जा सकता है।
खानपान में नियंत्रण से हो सकता है बचावः डॉ अशोक जैन ने बताया कि मधुमेह आनुवांशिक बीमारी है। हालांकि खराब जीवनशैली और खानपान की बिगड़ी आदत से यह उन्हें भी हो जाती है, इससे बचने के लिए खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
जेस्टेशनल डायबिटीज़ के मां पर दुष्प्रभावः
- भविष्य में पुनः जेस्टेशनल डायबिटीज़ की संभावना।
- प्रसव उपरांत भी मधुमेह का बने रहना या भविष्य में मधुमेह होने की संभावना,उच्च रक्तचाप।
- प्रसव सामान्य न होकर जटिल होने की संभावना।
- ऑपरेशन द्वारा प्रसव की संभावना।
- भ्रूण ( बच्चे) संबंधी जटिलता।
- मैक्रोसोमिया— बच्चे के आकार व वजन में आसामान्य अधिकता।
- जन्मजात विकृतियां
- स्वतः गर्भपात
- मृत जन्म ( स्टील बर्थ )
- बच्चे के अधिक आकार के कारण जटिल प्रसव।
- प्रसव के दौरान बच्चे का फँसना या चोटिल होना।
- नवजात शिशु को हाइपोग्लाइसीमिया होना।
- बच्चे को भविष्य में मोटापे व मधुमेह अधिक संभावना।
- जेस्टेशनल डायबिटीज़ रोकथाम व निवारण।
- गर्भकालीन मधुमेह से बचने व नियंत्रित करने के उपाय।
- तनाव रहित दिनचर्या।
- संतुलित आहार।
- गर्भावस्था में भी चिकित्सकीय परामर्श से नियमित व्यायाम।
- आदर्श वज़न बनाए रखना।
नियमित रक्त शुगर की जाँच करना व चिकित्सक द्वारा दिए गए परामर्श से नियमित दवाइयों या इंसुलिन के सेवन से जेस्टेशनल डायबिटीज़ होने को कुछ हद तक रोका जा सकता है या इसे नियंत्रित किया जाकर इससे होने वाली जटिलताओं व दुष्प्रभावों से महिला वो बच्चे दोनों को स्वस्थ रखा जा सकता है।