सीताफल पर संकटः मौसम की मार और मंडी का आभाव, सड़क किनारे ही आमदनी कमा रहे आदिवासी किसान


धार जिले में सीताफल की पैदावार पर बारिश का कहर बरपा है, जिससे आदिवासी किसानों की चिंता बढ़ गई है। लगातार वर्षा और मौसमी बदलाव के कारण फल काले पड़ने लगे हैं, जिससे उत्पादन और उनकी आय पर गहरा असर पड़ा है। मंडी की अनुपस्थिति में किसान अपने उत्पाद को सड़क किनारे कम कीमतों में बेचने को मजबूर हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर दोहरी मार पड़ी है।


आशीष यादव
धार Updated On :
धार जिले में सीताफल की पैदावर पर मौसम के बदलावों का असर पड़ा है। Deshgaon news
धार जिले में सीताफल की पैदावर पर मौसम के बदलावों का असर पड़ा है।


विंध्य की पहाड़ियों पर हर साल ठंड की मौसम में अपनी मिठास बिखेरने वाला सीताफल उगाने वाले आदिवासी किसानों के चेहरे फीके हैं। लगातार बारिश और मौसम में बदलाव के कारण सीताफल के फल काले पड़ने लगे हैं, जिससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। धार जिले के मांडू, नालछा और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सीताफल होता है, जिसे ‘शरीफा’ के नाम से भी जाना जाता है। धार और आसपास के इन क्षेत्रों का सीताफल दूर-दूर तक प्रसिद्ध है, लेकिन किसान और व्यापारी दोनों ही इस बार कम हुई सीताफल की पैदावार से चिंतित हैं।

मंडी नहीं होने से ग्रामीणों को हो रहा नुकसान
धार जिले में भले ही सीताफल अच्छा होता है लेकिन इसके बावजूद यहां इस फल के लिए मंडी नहीं है। ऐसे में  किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। आमतौर पर फसलें मंडी में बेची जाती हैं, लेकिन सीताफल के लिए कोई मंडी व्यवस्था न होने के कारण किसान इसे टोकरियों में भरकर सड़क किनारे बेचने को मजबूर हैं। बस स्टैंड, मोहन टॉकीज, पाटीदार चौराहा और अन्य स्थानों पर किसान सुबह-सुबह अपने सीताफल लेकर पहुंच जाते हैं, लेकिन उन्हें सही कीमत नहीं मिल पाती। एक टोकरी के लिए उन्हें मात्र ₹200-₹500 तक मिलते हैं, जो कि उनकी मेहनत और फसल की कीमत के हिसाब से बहुत कम है।

सीताफल की पैदावार कम हुई है और मंडी न होने की वजह से आदिवासी किसान सड़क किनारे इसे बेचते हैं।

काले पड़ रहे हैं फल, उत्पादन पर बुरा असर
मौसम परिवर्तन और लगातार बारिश की वजह से इस साल सीताफल के फल काले पड़ने लगे हैं, जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ा है। व्यापारी और किसान दोनों मानते हैं कि इस बार सीताफल की बहार बेहद कम है। सामान्य रूप से, मांडू और आसपास के क्षेत्रों में सीताफल की भारी पैदावार होती है, जिसे गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी भेजा जाता है। लेकिन इस बार कम उत्पादन के कारण इस व्यापार को बड़ा झटका लगा है।

ग्रामीणों के लिए आय का जरिया
सीताफल की बिक्री ग्रामीण इलाकों में एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत होती है। आदिवासी किसान इसे बड़ी संख्या में बेचते हैं। इसकी फसल के अक्टूबर में आती है और इस दौरान इलाके के ये आदिवासी और किसान अपने घरों और जंगलों से सुबह-सुबह सीताफल तोड़कर बाजार में बेचने आते हैं, जिससे वे अपने छोटे-मोटे खर्चे पूरे कर पाते हैं। लेकिन मंडी नहीं होने और फसल की गुणवत्ता में कमी के चलते इस बार यह आय भी प्रभावित हो रही है।

गुणों से भरपूर है सीताफल
सीताफल न केवल स्वाद में मीठा होता है, बल्कि इसमें फाइबर, विटामिन सी, आयरन, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा, इसकी पत्तियों में भी कई औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माने जाते हैं।

सीताफल

कुलमिलाकर इस बार मौसम और मंडी की कमी ने  इस शानदार फल पर गहरा असर डाला है और इससे पैदावार और कीमत, दोनों पर बुरा असर डाला है। किसानों को उचित दाम न मिल पाने के कारण उनका आर्थिक नुकसान हो रहा है। अगर मंडी की सुविधा उपलब्ध होती, तो शायद किसानों को अपनी फसल का सही मूल्य मिल पाता और सीताफल की मिठास दूर-दूर तक पहुंच पाती।


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