सर्वार्थ सिद्धि योग में देव प्रबोधिनी एकादशी, जानिये इसका महत्व और पूजा का मुहुर्त


ग्यारह नवंबर के दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी, जिसमें खूब शहनाई बजेगी। इस दिन से 35 से अधिक विवाह मुहूर्त होंगे, जिसमें तुलसी विवाह का मुख्य आकर्षण रहेगा, देव उठनी एकादशी व्रत के दिन, जिसे छह शुभ योगों में मनाया जाता है, पूजा-अर्चना से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।


आशीष यादव
धार Updated On :
देवप्रबोधनी एकादशी २०२४

देवउठनी एकादशी के दिन, देवों का योग निद्रा से जागना होता है और फिर सभी शुभ काम प्रारंभ होते हैं। हिंदू धर्म में, इस दिन को देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी को देवी लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा दिन माना जाता है। उनके प्रभाव से बड़े से बड़े पाप भी क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं। हिंदू धर्म में देवी देवताओं का आशीर्वाद किसी भी शुभ काम के लिए जरूरी होता है। हालांकि, हर साल वृंदा को दिए गए वरदान के कारण, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से योग निद्रा में जाते हैं और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। तब तक हिंदू धर्म में मुंडन, शादी, विवाह जैसे शुभ कार्य बंद रहते हैं।

चातुर्मास का समापन, मांगलिक कार्यों की शुरुआत

ज्योतिषाचार्य अशोक शास्त्री के अनुसार, देवउठनी एकादशी से ग्रहों की अनुकूलता और सूर्य के संचार के नियमों के आधार पर विवाह, यज्ञोपवित और नूतन गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों के मुहूर्त आरंभ हो जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंप देते हैं और इसी के साथ राजा बलि का अतिथि सत्कार पूर्ण होता है।

तैयारी में लगे बैंड मास्टर और हलवाई

जैसे-जैसे विवाह के मोहर्त नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे ही टेंट, हवाई और अन्य काम करने वाले शादी के लिए तैयारियों में लगे हुए हैं। बैंड मास्टर मेहबूब भाई मालवा दरबार ने बताया कि इस बार शादियों के ऑर्डर अच्छे आए हैं। वहीं, इस बार शादियों की संख्या अधिक होने से सीजन भी अच्छा होने वाला है।

देवप्रबोधिनी एकादशी की तिथी और समय

यह तिथि 11 नवंबर की शाम 6.46 बजे आरंभ होगी और 12 नवंबर की शाम 4.04 बजे समाप्त होगी। इस दिन को देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, जिस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं।

सनातन धर्म के अनुसार, इस दिन से सभी शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है, क्योंकि यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कार्तिक मास में किए गए स्नान, दान और तुलसी पूजा से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, एकादशी के दिन द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में तुलसी-सालिगराम विवाह की भव्य रस्म आयोजित की जाती है, जहाँ भगवान का दूल्हा रूप में श्रृंगार किया जाता है।

इस अवधि में गीता का पाठ, अन्नदान, दीपदान, और तुलसी पूजन जैसे धार्मिक कर्मों से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है, जिससे भक्तों पर कुबेर महाराज की कृपा बनी रहती है। इस महीने में विवाह, गृह प्रवेश, नए व्यापार या दुकान की शुरुआत, मुंडन और परिणय संस्कार जैसे अन्य शुभ कार्य भी संपन्न किए जा सकते हैं। इसके साथ ही, भगवान को शंख से स्नान कराना और तुलसी के सम्मुख दीपक जलाना भी इस महीने के धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल है।

देव प्रबोधिनी एकादशी पूजन विधि

  1. प्रातःकालीन विधि: देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके दिन की शुरुआत करें।
  2. सूर्य अर्घ्य और संकल्प: स्नान के पश्चात, सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का संकल्प लें।
  3. भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु को बेल पत्र, शमी पत्र, और तुलसी अर्पित करें।
  4. व्रत का पालन: पूरे दिन उपवास रखें और संध्याकाल में भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत खोलें।
  5. रात्रि जागरण: देवउठनी एकादशी की रात को सोने की मनाही है, इसलिए भजन-कीर्तन के माध्यम से जागरण करते हैं।

एकादशी की व्रत कथा

पौराणिक कथानुसार, एक समय माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वे नियमित रूप से प्रति वर्ष निद्रा लिया करें ताकि देवताओं को कष्ट न हो और उन्हें भी विश्राम मिल सके। भगवान विष्णु ने सहमति व्यक्त की और कहा कि वे प्रति वर्ष चार महीने के लिए शयन करेंगे जिससे सभी को अवकाश मिलेगा और इसके पश्चात् सभी शुभ कार्य पुनः आरंभ होंगे।

एक दूसरी कथा

राजा के राज्य में सभी निवासी एकादशी का व्रत रखते थे, जिसमें एकादशी के दिन अन्न का सेवन वर्जित था। एक दिन, एक नवागंतुक ने राजा से नौकरी की मांग की जिसके लिए राजा ने एकादशी पर अन्न न खाने की शर्त रखी। व्यक्ति ने स्वीकार किया परंतु एकादशी के दिन भूख से व्याकुल होकर अन्न की मांग की। राजा ने उसे अन्न दिया और वह व्यक्ति नदी किनारे जाकर भोजन पकाने लगा। भोजन के समय उसने भगवान को आमंत्रित किया और भगवान विष्णु वास्तव में प्रकट होकर उसके साथ भोजन किया। जब अगली एकादशी आई, तो व्यक्ति ने राजा से और अधिक सामग्री की मांग की क्योंकि भगवान भी उसके साथ खाते थे। राजा को विश्वास न होने पर उसने छिपकर देखा और जब भगवान नहीं आए तो उस व्यक्ति ने नदी में कूदकर प्राण त्यागने की धमकी दी। इस पर भगवान प्रकट हुए और उसे अपने साथ ले गए, जिससे राजा को बड़ी शिक्षा मिली और उसने मन से व्रत-उपवास करना शुरू किया।

 


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