धार। विशेष न्यायालय ने नाबालिग को शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने वाले आरोपी को दोषी मानते हुए सश्रम आजीवन कारवास की सजा सुनाई है और इसके साथ ही अर्थदंड से दंडित किया है।
लोक अभियोजन अधिकरी अर्चना डांगी ने जानकारी देते हुए बताया कि पीड़िता के पिता ने 1 फरवरी 2022 को पीथमपुर के सेक्टर एक थाने पर मौखिक रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
रिपोर्ट में बताया गया था कि 29 जनवरी 2022 को सुबह के समय वह और उसकी पत्नी दोनों काम पर चले गए थे। घर पर उनका लड़का और बेटी अकेले थे, लौटने पर लड़की घर में नहीं मिली।
पूछताछ करने पर लड़के ने बताया कि वह छत पर जाने का बोलकर गई थी। आसपास तलाश करने के बाद भी वह नहीं मिली तो सेक्टर एक थाने पर उसकी गुमशुदगी की दर्ज कराई।
पुलिस द्वारा 3 फरवरी 2022 को पीड़िता को खोज निकाला और उसका बयान दर्ज किया जिसमें उसने बताया कि अरूण पिता दयाराम उसे शादी का झांसा देकर बहला फुसलाकर ले गया था व साथ रखकर कई बार उसके साथ दुष्कर्म किया।
पुलिस ने उक्त मामले में अरूण पिता दयाराम और रितेश पिता दयाराम पर प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में पेश किया गया था। न्यायालय द्वारा अभियोजन के तर्कों एवं साक्षियों की साक्ष्य से सहमत होकर प्रकरण को संदेह से परे प्रमाणित मानकर आरोपी को दंडित किया गया।
न्यायालय ने आरोपी अरूण पिता दयाराम धारा 363 में पांच साल का सश्रम कारावास व धारा 366 में सात साल का सश्रम कारावास व 500-500 रपये अर्थदंड व एक-एक वर्ष का अतिरिक्त सश्रम कारावास।
धारा 3/4 पॉक्सो एक्ट में आजीवन कारावास का सश्रम कारावास एवं 1000 रुपये अर्थदंड में दो वर्ष का अतिरिक्त सश्रम कारावास से दंडित किया गया एवं आरोपी रितेश पिता दयाराम जिला धार को धारा 363 में पांच साल का सश्रम कारावास व धारा 366 में सात साल का सश्रम कारावास व 500-500 रुपये अर्थदंड व्यतिक्रम में एक वर्ष का अतिरिक्त सश्रम कारावास।
प्रकरण में शासन की ओर से पैरवी अतिरिक्त जिला लोक अभियोजन अधिकारी (विशेष लोक अभियोजक) आरती अग्रवाल द्वारा की गई।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि अभियुक्त के द्वारा अवयस्क 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ घिनौना कृत्य किया है। समाज में बच्चियों एवं महिलाओं के साथ इस प्रकार के अपराध में काफी बढ़ोतरी हो चुकी है और इस प्रकार के अपराध समाज की नैतिकता को प्रभावित करते हैं। आरोपी के कृत्य को दृष्टिगत रखते हुए दंड के संबंध में आरोपी के प्रति उदारता बरता जाना न्यायोचित नहीं है।