भोजशाला में मां वाग्देवी की मूर्ति स्थापना पर सीएम के बयान से धार में माना जश्न, गेट पर फोड़े पटाखे


भोज उत्सव समिति दशकों से कर रही है संघर्ष, सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगी भोजशाला।


आशीष यादव आशीष यादव
धार Published On :
dhar bhojshala vagdevi idol

धार। ऐतिहासिक भोजशाला आज फिर सुर्खियों में है, इसकी वजह मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इंदौर यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव में दिया गया बयान है।

मुख्‍यमंत्री के बयान के बाद हिंदू संगठन के लोगो में खुशी की लहर है, संगठन से जुडे लोग आतिशबाजी कर शिवराज सिंह चौहान के बयान का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ लोग इसे राजनितिक बयान बताकर आगामी विधानसभों को जीतने की रणनीति बता रहे हैं।

मुख्‍यमंत्री चौहान के बयान का असर सोशल मीडिया पर भी देखने को मिला, जहां यूजर्स भोजशाल की पोस्‍ट और कमेंट करते नजर आए।

शनिवार को मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान के बाद हिंदू संगठन और भोज उत्सव समिति के पदाधिकारियों ने भोजशाल के बाहर आतिशबाजी कर जमकर नारेबाजी की।

संगठन से जुडे लोगों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान के बयान से हम सहमत हैं। हिंदू संगठन वर्षों से मां वाग्देवी की प्रतिमा भोजशाला में पुनर्स्थापित हो इसके लिए प्रयासरत है और आंदोलन और सत्याग्रह कर रही है। मां वाग्‍देवी की प्रतिमा को भोजशाला में स्‍थापित करना चाहिए।

भोजशाला संरक्षित स्मारक –

वसंत पंचमी पर हिंदू समुदाय भोजशाला में मां वाग्देवी का तेलचित्र रखकर पूजन करता है। 1909 में धार रियासत द्वारा 1904 के एशियंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट जिल्द में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया।

बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी एएसआई के पास वर्तमान में भोजशाला की देखरेख की जिम्मेदारी है।

इस तरह समझे भोजशाला की पूरी कहानी –

भोजशाला में भोज उत्सव समिति द्वारा प्रतिवर्ष वसंत पंचमी पर मां वाग्देवी का पूजन होता आ रहा है, लेकिन वर्ष 1995 में मामूली विवाद हुआ। इसके बाद 12 मई 1997 को तत्कालीन कलेक्टर ने भोजशाला में लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।

साथ ही मंगलवार को होने वाली पूजा भी रोक दी और हिंदू समुदाय को वसंत पंचमी और मुस्लिम समुदाय को शुक्रवार को नमाज की अनुमति दी गई।

प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा, लेकिन 6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।

2003 से अब तक जारी पूजा –

इसके बाद विवाद और आंदोलनों का दौर चला। स्थानीय हिंदू नेताओं ने भोजशाला के ताले खुलवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। यह वह दौर था जब प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार की विदाई हुई थी, लेकिन इसमें सबसे बड़ा मुद्दा भोजशाला रहा था।

भाजपा नेता और प्रखर हिंदूवादी चेहरा उमा भारती ने भोजशाला आंदोलन पूरे प्रदेश में छेड़ा और इसके बाद भाजपा की प्रदेश में सत्ता काबिज हुई। इस बीच वर्ष 2003 में मंगलवार को फिर से पूजा की अनुमति दे दी गई थी। साथ ही पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोल दिया गया था। तब से अब तक भोजशाला खुली हुई है।

साम्प्रदायिक तनाव भी हुआ –

भोजशाला हिंदू समुदाय के लिए आस्था का प्रतीक है। इस कारण कई बार साम्प्रदायिक तनाव और दंगों की भी स्थिति बनी। 18 फरवरी 2003 को हिंसा फैली। उस वक्त दिग्विजय सरकार और केंद्र की अटल सरकार आमने-सामने हो गई।

केंद्र ने जांच के लिए तीन सांसदों की कमेटी बनाई थी जिसमें वर्तमान सीएम व तत्कालीन सांसद शिवराज सिंह चौहान, एएसएस आहलूवालिया और बलवीर पूंज को शामिल किया था। इसके बाद वर्ष 2013 में भी वसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन आने पर धार में माहौल बिगड़ा था।

भोजशाला से जुड़ा इतिहास –

राजा भोज ने 1010 से 1010 ईसवी तक 44 वर्ष शासन किया। सन 1034 में धार में सरस्वती आराधना के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में मां सरस्वती मंदिर भोजशाला की स्थापना की। राजा भोज के शासन में यहां पर मां वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई।

इतिहासकारों के अनुसार यह प्रतिमा वर्ष 1875 में अंग्रेजों के शासन काल में खुदाई के दौरान निकली थी, लेकिन वर्ष 1880 में भोपावर का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड मूर्ति अपने साथ लंदन ले गया था।

दरगाह का निर्माण –

वर्ष 1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी व दिलावर खां गौरी की सेनाओं से माहलकदेव और गोगादेव के बीच युद्ध लड़ा गया। 1401 से 1531 में मालवा में स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना हुई।

1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया। इसके बाद दोनों पक्ष हिंदू और मुस्लिमों के बीच विवाद है।



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