किसानों व संस्था के साथ धोखाधड़ी करने वाले शाखा प्रबंधक व अध्यक्ष पर मामला दर्ज


EOW ने आदिम जाति सेवा सहकारी समिति के प्रबंधक सुनील दर्श एवं तत्कालीन अध्यक्ष अशोकचंद्र यादव के विरुद्ध हेराफेरी और जालसाजी के माध्यम से संस्था, किसानों एवं शासन को आर्थिक हानि पहुंचाने के संबंध में जांच के पश्चात प्रकरण दर्ज किया है।


आशीष यादव
धार Published On :
fir on fraud

धार। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ इंदौर ने धरमपुरी के ग्राम गुलझरा की आदिम जाति सेवा सहकारी समिति के प्रबंधक सुनील दर्श एवं तत्कालीन अध्यक्ष अशोकचंद्र यादव के विरुद्ध हेराफेरी और जालसाजी के माध्यम से संस्था, किसानों एवं शासन को आर्थिक हानि पहुंचाने के संबंध में जांच के पश्चात प्रकरण दर्ज किया है।

ग्राम दहीवर के गणेशचंद्र यादव की शिकायत पर यह जांच की गई थी। करीब नौ लाख रुपये की आर्थिक अनियमिता में शाखा प्रबंधक को दोषी पाया गया है।

पांच लाख खर्च किए, हिसाब नहीं –

जांचकर्ता राजेश गोयल द्वारा जांच के दौरान प्रबंधक, आदिम जाति सेवा सहकारी समिति धामनोद (धार) के द्वारा वर्ष 2015-16 में 250-250 मैट्रिक टन के आईसीडीपी द्वारा स्वीकृत गोदाम निर्माण से संबंधित संस्था के भवन निर्माण से संबंधित समस्त दस्तावेजों का संधारण एवं रखरखाव संस्था प्रबंधक दर्शे को करना था जो उनके द्वारा नहीं किया गया।

तत्कालीन संस्था प्रबंधक दर्शे ने निलंबन के दौरान चार्ज में वर्तमान संस्था प्रबंधक को भी अपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए थे। उक्त कार्य हेतु स्वीकृति राशि 25 लाख से अधिक करीब 3017874 का खर्च किया।

अतिरिक्त खर्च राशि 517874 रुपये से अधिक नवीन भवन के नाम पर संस्था अध्यक्ष अशोकचंद यादव एवं प्रबंधक दर्शे के द्वारा संस्था के खाते से आहरित की गई है। आहरित की गई राशि से संबंधित खर्च के ब्यौरे के संबंध में कोई दस्तावेज संधारित नहीं किए गए हैं।

कई किसानों के साथ छल-कपट –

जांच में पाया गया कि संस्था के सदस्य सुखलाल पिता गणपत निवासी बलवाड़ा तहसील धरमपुरी जिला धार द्वारा वर्ष 2007 में खाता बंद करवाकर पश्चातवर्ती समय में कभी भी संस्था से कोई व्यवहार नहीं किए जाने के बावजूद उसके नाम से संस्था द्वारा नगद राशि व उर्वरक संबंधी व्यवहार अपने अभिलेख में दर्शा रखा है।

इस प्रकार वर्ष 2007 से ही समिति से व्यवहार समाप्त कर लेने के बावजूद वर्ष 2010 में सुनील दर्शे ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सुखलाल पिता गणपत के नाम से फर्जी रूप से 68994 रुपये नगद एवं उर्वरक के रूप में प्राप्त करना पाया गया है।

साथ ही साथ कई कृषकों के आर्थिक एवं अन्य व्यवहार में कूटरचना करते हुए आर्थिक लाभ अर्जित किया गया है।


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