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ऐतिहासिक भोजशाला परिसर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अहम सुनवाई होनी है। इसमें हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से नई दलीलें पेश की जाएंगी। संगठन का कहना है कि यह मामला काशी, मथुरा और अयोध्या जैसा ही है और इसे धर्मस्थल उपासना अधिनियम 1991 से अलग रखा जाना चाहिए। साथ ही, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर लगी रोक को हटाने की भी मांग की जाएगी।
याचिका और सुनवाई
कमाल मौला वेलफेयर सोसाइटी की ओर से अब्दुल समद द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर 17 फरवरी को सुनवाई होगी, जिसमें हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से आशीष गोयल और अन्य याचिकाकर्ता अपने पक्ष को नए तर्कों के साथ पेश करेंगे। उनका कहना है कि भोजशाला का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अन्य विवादित स्थलों की तरह ही है और इसे धर्मस्थल उपासना अधिनियम से बाहर रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले दिए गए निर्देश
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल 2024 को आदेश दिया था कि हाई कोर्ट के निर्देशानुसार सर्वे तो जारी रहेगा, लेकिन भोजशाला के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। साथ ही, ASI को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया, लेकिन हाई कोर्ट को इस पर आगे कोई कार्रवाई करने से रोक दिया गया था।
ASI ने 15 जुलाई 2024 को अपनी सर्वे रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी, लेकिन इसके क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। अब हिंदू पक्ष चाहता है कि यह रोक हटाई जाए ताकि रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई हो सके।
100 दिन चला था ASI सर्वे
भोजशाला परिसर को लेकर हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने 2022 में इंदौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने पूरे परिसर को हिंदू समाज को सौंपने और सर्वे करवाने की मांग की थी। इस पर कोर्ट ने ASI को सर्वे का आदेश दिया था, जो 22 मार्च 2024 से शुरू हुआ और 100 दिन तक चला।
सर्वे की रिपोर्ट आने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा रखी है। हिंदू पक्ष चाहता है कि यह मामला मथुरा और काशी से अलग सुना जाए और इस पर जल्द से जल्द फैसला लिया जाए।
क्यों नहीं लागू होता उपासना अधिनियम?
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस का तर्क है कि 1991 में बनाए गए धर्मस्थल उपासना अधिनियम के तहत भोजशाला परिसर नहीं आता। इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि ASI द्वारा संरक्षित इमारतों पर यह कानून लागू नहीं होता। चूंकि भोजशाला का संरक्षण ASI द्वारा किया जा रहा है, इसलिए इस मामले को उपासना अधिनियम से बाहर रखा जाना चाहिए।
क्या हो सकता है आगे?
अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई महत्वपूर्ण होगी। यदि कोर्ट सर्वे रिपोर्ट पर लगी रोक हटाता है, तो इससे हिंदू पक्ष को बड़ा फायदा मिल सकता है। वहीं, मुस्लिम पक्ष यह दावा करता रहा है कि यह स्थल मस्जिद रहा है और वहां उनकी उपासना का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए।
सभी पक्षों की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह तय करेगा कि भोजशाला विवाद आगे किस दिशा में जाएगा।