
मालवा-निमाड़ अंचल के आदिवासी इलाकों में भगोरिया पर्व की धूम शुरू हो गई है। मादलों की थाप, ढोल-नगाड़ों की गूंज और उड़ते गुलाल के बीच आदिवासी समुदाय पारंपरिक नृत्य और उल्लास में डूब गया है। यह पर्व धार, झाबुआ, आलीराजपुर, खरगोन और बड़वानी जिलों में विशेष रूप से मनाया जाता है और इसे होली से पहले का सबसे बड़ा आदिवासी उत्सव माना जाता है।
भगोरिया: परंपरा, संस्कृति और प्रेम का उत्सव
भगोरिया महज एक मेला नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय की परंपरा, प्रेम और आनंद का संगम है। यह पर्व फसल कटाई के बाद उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें युवा से लेकर बुजुर्ग तक सभी रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजकर शामिल होते हैं।
इस मेले में आदिवासी युवक-युवतियां अपने जीवनसाथी का चयन भी करते हैं। इसे लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं—
अगर कोई युवक किसी युवती को पान खिलाता है और वह स्वीकार कर लेती है, तो इसे सहमति माना जाता है।
गुलाल मलकर भी युवक-युवतियां एक-दूसरे को अपनी पसंद जाहिर करते हैं।
एक जैसी पोशाक पहनकर युवक-युवतियां भगोरिया में आते हैं, जिससे उनके रिश्ते तय होने के संकेत मिलते हैं।
हालांकि, अब शिक्षित युवा इस परंपरा को कम मानते हैं, लेकिन आदिवासी समाज में यह रिवाज अभी भी जिंदा है।
रंग-बिरंगे परिधानों और नृत्य से सजी भगोरिया हाट
भगोरिया पर्व में महिलाएं पारंपरिक गहनों से सजी होती हैं, तो पुरुष सिर पर साफा या पगड़ी पहनकर आकर्षक वेशभूषा में नजर आते हैं। युवतियां चांदी के आभूषण, घुंघरू और रंगीन रुमाल लिए गोल घेरा बनाकर पारंपरिक नृत्य करती हैं।
यहां जगह-जगह बड़े ढोल-मांदल बजाए जाते हैं, जिनकी थाप पर पुरुष और महिलाएं जमकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक भी पहुंचते हैं। प्रशासन ने अब विदेशी पर्यटकों के लिए कैंप की व्यवस्था भी शुरू कर दी है।
आधुनिकता की छाप: भगोरिया का बदलता स्वरूप
समय के साथ भगोरिया का स्वरूप भी बदल रहा है। पहले जहां पारंपरिक वेशभूषा का बोलबाला था, वहीं अब युवाओं में जींस, टी-शर्ट और डिजाइनर टैटू का क्रेज बढ़ा है।
- अब युवा मोबाइल से फोटो-वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने लगे हैं।
- भगोरिया में अब झूले, खाने-पीने की दुकानें, गोदना (टैटू) और इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकानें भी सजने लगी हैं।
- प्रशासन ने भी सीसीटीवी कैमरों से निगरानी शुरू कर दी है, ताकि मेले में कोई अव्यवस्था न हो।
राजनीति भी जुड़ी भगोरिया से
भगोरिया अब सिर्फ आदिवासियों का त्योहार नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी जनता से जुड़ने का अवसर बन चुका है। भाजपा और कांग्रेस के नेता अपने समर्थकों के साथ भगोरिया में गेर निकालते हैं, झंडे लहराते हैं और अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। वहीं, प्रशासनिक अधिकारी भी ड्यूटी के साथ-साथ भगोरिया का आनंद लेते नजर आते हैं।