धार। धार के रघुनाथपुरा क्षेत्र में स्थित चौहान हॉस्पिटल में गुरुवार दोपहर के समय बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर नाराज परिजनों से हंगामा कर दिया।
परिजनों का आरोप था कि डिलीवरी के बाद जन्म बच्चे के एनस की जगह ओपन नहीं थी। इस बात की जानकारी अस्पताल प्रबंधन के द्वारा समय पर नहीं दी गई, जिसके कारण अब बच्चें का पेट फूल चुका है।
इंदौर जैसे बड़े शहरों में ले जाने पर लाखों रुपये खर्च आ रहा है, ऐसे में परिजनों ने हंगामे के दौरान अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की मांग रखी। साथ ही बच्चे के उपचार की उचित व्यवस्था भी अस्पताल के माध्यम से करवाने की बात रखी।
हंगामे की सूचना के बाद कोतवाली पुलिस टीम मौके पर पहुंची व परिजनों को समझाने की कोशिश की गई। पिछले ढाई घंटे से अस्पताल में हंगामा हो रहा है, खबर लिखे जाने तक परिजन अस्पताल परिसर में ही मौजूद हैं।
प्रीमैच्योर डिलीवरी के बाद जन्म बालक –
धार के हटवाडा निवासी महिला शिवानी (20) पति शुभम को गर्भवती होने के दौरान परिजनों द्वारा चौहान अस्पताल में चेकअप करवाया गया था। इस दौरान एक मर्तबा महिला की सोनोग्राफी भी हुई जिसमें बच्चे के स्वस्थ होने की जानकारी अस्पताल की ओर से दी गई थी, किंतु पिछले माह 25 नवंबर को अचानक महिला को घर पर दर्द होने लगा, इसके बाद परिजन नजदीक के निजी अस्पताल लेकर पहुंचे।
यहां पर चेकअप के दौरान अस्पताल प्रबंधन की ओर से जानकारी दी गई कि महिला की बच्चेदानी का मुंह 3 अंगुल खुल चुका था, ऐसे में प्रीमैच्योर डिलीवरी की आवश्यकता के चलते परिजनों की सहमति पर महिला की डिलीवरी करवाई गई।
इस दौरान महिला ने करीब 1 किलो 700 ग्राम के बालक को जन्म दिया। अस्पताल के डॉक्टर अवकाश पर होने के चलते प्रबंधन ने धार के जिला अस्पताल से बच्चे की डॉक्टर को बुलवाकर नवजात का चेकअप करवाया था। महिला की डिलीवरी 27 नवंबर को हुई, जिसके बाद से ही नवजात आईसीयू में भर्ती है।
एनस बंद होने की नहीं दी जानकारी –
निजी अस्पताल में हंगामे के दौरान महिला के परिजनों ने आरोप लगाया कि बच्चे के जन्म के दौरान ड्यूटी पर मौजूद नर्स सहित अन्य स्टाफ से बच्चे की पोटी को लेकर पूछा गया था, तब बच्चे के पोटी होने की जानकारी दी गई थी।
गंभीर अवस्था में बताकर एक दिन पूर्व जिला अस्पताल जाने का बोल दिया गया, परिजन जिला अस्पताल पहुंचे तो यहां से इंदौर जाने का बोल दिया गया। इधर शासकीय अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे का एनस बंद हैं, जिसके कारण ही बच्चे का पेट खाली नहीं हो पा रहा है।
हंगामे के दौरान परिजनों ने बताया कि एनस के बंद होने की कोई जानकारी अस्पताल प्रबंधन ने नहीं दी, साथ ही इस मामले में समझौता करने के लिए रुपये देने की बात कही। परिजनों के आरोप के बीच कोतवाली पुलिस सभी को समझाती रही व मामले में शिकायत सीएमएचओ कार्यालय में जाकर करने की बात कही।
इधर अस्पताल की ओर से महिला व बच्चे को दिए गए उपचार संबंधित सभी कागजात की कॉपी भी परिजनों को सौंप दी गई है।
उपचार में लाखों का खर्च –
इधर निजी अस्पताल से शासकीय अस्पताल के बाद परिजन इंदौर भी नवजात को लेकर पहुंचे, जहां पर इंदौर के एक निजी अस्पताल में प्रतिदिन का खर्च करीब 70 हजार रुपये बताया गया है। साथ ही परिजनों से उपचार संबंधित खर्चा पूरा करीब 25 लाख रुपये होने इंदौर के डॉक्टर ने बताया है।
इस कारण ही परिजन बच्चे को धार पुनः लेकर आए हैं, इधर जिला अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार बच्चे को सर्जरी की आवश्यकता है। ऐसे में अब नवजात अस्पताल के एसएनसीयू में जिंदगी व मौत के बीच संघर्ष कर रहा है।
लापरवाही नहीं हुई –
अस्पताल प्रबंधन की ओर से कमल चौहान ने इस पूरे प्रकरण में जानकारी देते हुए बताया कि महिला शिवानी का गर्भवती होने के दौरान ही उपचार अस्पताल में चल रहा था, साढ़े पांच माह में सोनोग्राफी के लिए कहा गया था। किंतु नहीं करवाई गई।
25 नवंबर को घर पर दर्द होने के दौरान परिजन महिला को लेकर आए थे। बच्चेदानी का मुंह 3 अंगुल तक खुल गया था, जिसके कारण 8 माह में प्रीमैच्योर डिलीवरी हुई थी। बच्चे का एनस बंद होने के कारण ही इंदौर ले जाने की सलाह दी गई थी, जिसके बारे में लिखित सूचना मौजूद है, अस्पताल की ओर से कोई लापरवाही नहीं की गई।