मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और इस पर चल रही अतिशेष शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया ने विवाद को और बढ़ा दिया है। शिक्षक संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा इसका विरोध जारी है।
राज्य के सरकारी स्कूलों में लगभग 70,000 पद खाली हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 28,815 अतिशेष शिक्षक हैं। कई स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, और 6,858 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे हैं।
इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस नेता अरुण यादव ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यादव ने कहा कि अतिशेष शिक्षकों की सूची में फर्जीवाड़ा हुआ है और मांग की कि सरकार पूरी पारदर्शिता के साथ होल्ड पदों की जानकारी सार्वजनिक करे। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ऐसा नहीं करती, तो वे आरटीआई और विधानसभा के जरिए इस मुद्दे को उजागर करेंगे।
शिक्षा व्यवस्था पर संकट
प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर इस शिक्षकीय संकट का असर स्पष्ट रूप से दिख रहा है। हाल ही में अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार, 1,275 स्कूलों में कोई शिक्षक नहीं है, और करीब 43 स्कूलों में एक ही शिक्षक पहली से पांचवीं तक के सभी विषय पढ़ा रहे हैं। यह स्थिति राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्ष्यों के विपरीत है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर जोर देती है।
विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी से हालात और भी खराब हैं। रिपोर्टों के अनुसार, सिंगरौली, रीवा, शिवपुरी, और छतरपुर जैसे जिलों में बड़ी संख्या में स्कूल शिक्षक विहीन हैं। वहीं, शहरी क्षेत्रों में भोपाल, इंदौर, और ग्वालियर जैसे शहरों में अतिशेष शिक्षक तैनात हैं, लेकिन उनका समायोजन नहीं हो पा रहा है।
अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति पर योजना
स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. संजय गोयल ने कहा कि जिन स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं या सिर्फ एक शिक्षक हैं, वहां अतिशेष शिक्षकों को भेजा जाएगा। इसके बाद खाली पदों पर अतिथि शिक्षकों की भर्ती की जाएगी। हालांकि, यह प्रक्रिया कई स्तरों पर धीमी हो रही है, जिससे सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावित हो रही है।
शिक्षकों की कमी से जूझते बड़े शहर
भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, और जबलपुर जैसे बड़े शहरों के सरकारी स्कूल भी शिक्षकों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। भोपाल के 43 स्कूलों में एक ही शिक्षक सभी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वहीं, जबलपुर, ग्वालियर, और इंदौर में कई स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षकों की अनुपलब्धता के कारण बच्चों की शिक्षा बाधित हो रही है।
सुझाव और नीतिगत हस्तक्षेप
विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षकों की इस कमी को दूर करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप और भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षकों का उचित वितरण सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।