भोपाल के रवीन्द्र भवन में उत्कर्ष और अन्मेष उत्सव का शुभारंभग हुआ। गुरुवार को इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु भी शामिल हुईं। संस्कृति मंत्रालय के संगीत नाटक एवं साहित्य अकादमी के द्वारा आयोजित किया जा रहा है। इसके तहत ‘उत्कर्ष उत्सव’ 3 से 5 अगस्त और ‘उन्मेष उत्सव’ 3 से 6 अगस्त तक चलेगा। इस कार्यक्रम में देशभर के 500 कलाकार इस कार्यक्रम में नृत्य प्रस्तुति देंगे। कार्यक्रम के दौरान कई रंगारंग प्रस्तुतियां हुईं।
कार्यक्रम में पहुंची राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने अपने भाषण में कहा कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे ज्यादा यात्राएं मप्र में ही हुई हैं और यह उनकी पांचवीं यात्रा है। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा में यत्र विश्वम् भवति एक नीडम् की भावना प्राचीनकाल से है। राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का संगम हमारे देश में दिखाई देता रहता है। राष्ट्रपति ने यहां गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की एक कविता का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि साहित्य ने मानवता को आईना दिखाया है और बचाया तथा आगे भी बढ़ाया है।
हमारी परंपरा में "यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्" की भावना प्राचीन काल से आधुनिक युग तक निरंतर उपयुक्त होती जा रही है: महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी@rashtrapatibhvn pic.twitter.com/boPt76sXsN
— Chief Minister, MP (@CMMadhyaPradesh) August 3, 2023
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य और कला ने मानवता को बचाए रखा है। साहित्य जुड़ता भी है और लोगों को जोड़ता भी है। आज 140 करोड़ देशवासियों का मेरा परिवार है और सभी भाषाएं और बोलियां मेरी अपनी हैं। उन्होंने कहा कि हमारा सामूहिक प्रयास अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। हमारे जनजाती समुदाय के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।
इस अवसर पर पहुंचे राज्यपाल डॉ. मंगू भाई पटेल ने कहा कि दिल, दिमाग और आत्मशक्ति के समन्वय से रचना का सृजन होता है। इसके लिए किसी साधन संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है। राज्यपाल ने इस आयोजन के लिए सरकार को बधाई दी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां भारत की संस्कृति और कला के बारे में बात करते हुए कहा कि मप्र प्राचीन काल से ही कला और संस्कृति की धरती रही है। । यह साहित्यकारों की कर्मभूमि और कलाकारों की प्रिय भूमि है। खजुराहो, भीम बैठका आदि इसके प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि यह वो धरती है जिसके ऋषियों ने सब सुखी हों, सब निरोग हों जैसा मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि सब केवल भोजन, रोटी कपटा और मकान से सुखी नहीं हो सकते। मन, बुद्धि और आत्म का सुख भी चाहिए और यह सुख अगर चाहिए तो साहित्य और कला ही देती है।