भोपाल। शराब और नशाबंदी को लेकर आए पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के बयानों का असर अब नज़र आ रहा है। प्रदेश में नई आबकारी नीति तो बन गई है लेकिन इसे नगरीय निकाया और पंतायत चुनावों के बाद ही लागू किया जाएगा।
ऐसे में साफ है कि सरकार चुनावों से पहले अपनी छवि पर कोई सवाल नहीं चाहती है। यही वजह है कि नई नीति को लेकर सरकार फिलहाल कुछ पीछे हटती नज़र आ रही है।
नई आबकारी नीति तीन महीने के लिए टाली जा रही है अब इसे एक अप्रैल की बजाए एक जुलाई से लागू किया जाएगा। इस बीच निकाय और पंचायत चुनाव भी खत्म हो जाएंगे।
इस नीति का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास भेजा जा चुका है और अब से पहले उम्मीद थी कि वित्तीय वर्ष को देखते हुए हर साल की तरह इस बार भी पंद्रह मार्च तक टेंडर प्रक्रिया पूरी हो जाएगी लेकिन ऐसा अब ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है।
इस नई नीति के तहत प्रदेश में शराब दुकानें बढ़ाने की तैयारी है। प्रदेश में अब तक 3506 शराब की दुकानें हैं। बीते दस साल में 790 नई शराब दुकानें शुरु की गई हैं। अब संभव है कि जुलाई के बाद सरकार इनमें और भी बढ़ोत्तरी करे।
हालांकि इसके बारे में दो अलग-अलग बयान आ चुके हैं। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पहले कहा था कि शराब दुकानों की संख्या बढ़ाई जाएगी लेकिन इस पर जब विवाद बढ़ा तो मुख्यमंत्री शिवराज ने इससे इंकार कर दिया।
ज़ाहिर है शराब दुकानें बढ़ाए जाने से सरकार को ज़्यादा राजस्व की कमाई होगी। जिसकी कोरोना के बाद कुछ ज़्यादा ही ज़रूरत महसूस हो रही है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि अगर शराब की उपलब्धता होगी तो लोग फैक्ट्री के बाहर बनी हुई गुणवत्ताहीन शराब से दूर रहेंगे और ज़हरीली शराब से होने वाली मौतों में कमी आएगी।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रदेश के मुरैना में ज़हरीली शराब पीने से पच्चीस लोगों की मौत हुई थी। इससे पहले उज्जैन में भी ऐसी ही घटना हुई थी।
शराब दुकानों को लेकर सरकार अपनी ही अहम साथी और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से भी परेशान है। जिन्होंने शराबबंदी की मांग उठाई है और इसके लिए चार फरवरी से आंदोलन तक शुरु कर दिया है।
इसके बाद शराब दुकानों को लेकर चर्चा गर्म है। जिसमें कांग्रेसी नेताओं ने भी अपना योगदान दिया है। कांग्रेसी नेता पीसी शर्मा ने उमा के इस अभियान का साथ देने की बात कही थी। ज़ाहिर है यह टकराव भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।