मध्य प्रदेश में निजी मेडिकल कॉलेजों को ज़मीन देने की तैयारी पर उठे सवाल, जन स्वास्थ्य अभियान ने किया विरोध


जन स्वास्थ्य अभियान ने मध्य प्रदेश सरकार के उस फैसले का विरोध किया है जिसमें निजी मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए ज़मीन सांकेतिक दर पर दी जा रही है। यह कदम स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की ओर बढ़ता खतरा है।


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भोपाल Published On :

मध्य प्रदेश सरकार के एक हालिया फैसले ने स्वास्थ्य नीति पर बहस छेड़ दी है। राज्य सरकार अब ज़िला अस्पतालों के समीप निजी मेडिकल कॉलेजों की स्थापना के लिए निजी निवेशकों को 1 रुपये की सांकेतिक दर पर 25 एकड़ तक ज़मीन देने की तैयारी में है। इस फैसले को लेकर जन स्वास्थ्य अभियान, मध्य प्रदेश ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे “जनता को महंगी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर धकेलने” वाला कदम बताया है।

राज्य के लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने 8 अप्रैल को हुए कैबिनेट बैठक के निर्णयों की जानकारी देते हुए इस योजना का खुलासा किया। मंत्री के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य राज्य में चिकित्सा शिक्षा के अवसरों को बढ़ाना और जिला स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करना है। परंतु जन स्वास्थ्य अभियान का मानना है कि यह फैसला सार्वजनिक संसाधनों का निजी हितों के लिए दोहन है।

 

सरकारी जमीन और मरीज, लेकिन मुनाफा निजी हाथों में?

जन स्वास्थ्य अभियान के प्रतिनिधियों — अमूल्य निधि, राजकुमार सिन्हा, एस. आर. आज़ाद, सुधा तिवारी और राहुल यादव — ने संयुक्त बयान में कहा कि यह मॉडल न केवल असफल है बल्कि सामाजिक रूप से भी अनुचित है। उनका तर्क है कि जब अस्पताल और ज़मीन दोनों सरकार की हैं तो मेडिकल कॉलेज भी सरकारी हो। इसके बजाय निजी निवेशकों को सरकारी ज़मीन देकर मुनाफा कमाने का रास्ता बनाना जनता के साथ अन्याय है।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्तावित मॉडल में यह दावा किया जा रहा है कि आयुष्मान कार्डधारकों को 75% तक मुफ्त इलाज मिलेगा, जबकि वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में 100% मुफ्त इलाज उपलब्ध है। ऐसे में यह सौदा निजीकरण की ओर एक और खतरनाक कदम है।

 

राष्ट्रीय अनुभव और सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी

जन स्वास्थ्य अभियान ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि देशभर में इस तरह के पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल स्वास्थ्य सेवाओं में कारगर साबित नहीं हुए हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को लीज़ समझौते के उल्लंघन के मामले में फटकार लगाई थी और यह चेतावनी दी थी कि गरीबों को मुफ्त इलाज नहीं मिला तो अस्पताल को AIIMS के अधीन लाया जाएगा। इस मामले को उदाहरण बनाकर अभियान के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि मध्य प्रदेश सरकार इस असफल मॉडल को क्यों दोहराना चाहती है?

 

मांगें और सुझाव

अभियान ने राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है कि आखिर किस मजबूरी में वह सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं खोल पा रही है? साथ ही, उन्होंने मांग की है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में केवल सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल हो और निजीकरण की योजनाओं को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए।

जन स्वास्थ्य अभियान ने यह स्पष्ट किया है कि वह इस नीति के खिलाफ प्रदेशभर में जनजागरूकता अभियान चलाएगा और सरकार पर दबाव बनाएगा कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।

 



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