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प्रदेश में सरकारी डॉक्टरों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन शुरू कर दिया है। गुरुवार से राज्यभर में लगभग 15,000 डॉक्टर काली पट्टी बांधकर विरोध जता रहे हैं। यह विरोध प्रदेश के 52 जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और मेडिकल कॉलेजों तक फैल चुका है।
डॉक्टर्स की क्या हैं मांगें?
चिकित्सक महासंघ के मुख्य संयोजक डॉ. राकेश मालवीया के अनुसार, यह आंदोलन किसी नई मांग को लेकर नहीं, बल्कि वर्षों से लंबित मांगों को लेकर किया जा रहा है। प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं—
1. उच्च न्यायालय के आदेशानुसार उच्च स्तरीय समिति का गठन।
2. DACP (डायनामिक एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन) और NPA (नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस) का सही क्रियान्वयन।
3. सातवें वेतनमान का वास्तविक लाभ।
4. चिकित्सा क्षेत्र में प्रशासनिक हस्तक्षेप को रोकना।
डॉक्टरों का कहना है कि इन मांगों को लेकर सरकार ने कई बार आश्वासन दिए, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
आंदोलन का चरणबद्ध कार्यक्रम
डॉक्टरों ने अपने विरोध प्रदर्शन को क्रमबद्ध तरीके से करने की योजना बनाई है—
21 फरवरी तक – सभी डॉक्टर काली पट्टी बांधकर कार्य करेंगे।
22 फरवरी – आधे घंटे तक कार्यस्थल के बाहर टोकन प्रदर्शन किया जाएगा।
24 फरवरी – प्रदेशव्यापी सामूहिक उपवास रखा जाएगा, जिसमें डॉक्टर अन्न-जल त्याग कर विरोध करेंगे।
25 फरवरी – प्रदेशव्यापी हड़ताल होगी, जिससे अस्पतालों की ओपीडी और अन्य सेवाएं ठप हो सकती हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर क्या होगा असर?
सरकारी डॉक्टरों के इस आंदोलन से प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, खासकर 25 फरवरी को जब वे पूरी तरह काम बंद कर देंगे। हालांकि, आपातकालीन सेवाएं चालू रखने का आश्वासन दिया गया है, लेकिन नियमित ओपीडी, सर्जरी और अन्य सेवाओं पर असर पड़ना तय है।
सरकार का क्या कहना है?
अभी तक राज्य सरकार की ओर से इस आंदोलन पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। माना जा रहा है कि सरकार डॉक्टरों से बातचीत कर हल निकालने की कोशिश कर सकती है, लेकिन अगर जल्द कोई समाधान नहीं निकला तो स्वास्थ्य सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं।
सरकार और डॉक्टर्स के बीच बातचीत सफल होती है या आंदोलन और तेज होगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।